श्यामल सुमन की पाँच रचनाएँ

परिचय
नाम : श्यामल किशोर झा
लेखकीय नाम : श्यामल सुमन
जन्म तिथि: 10.01.1960
जन्म स्थान : चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार
शिक्षा : स्नातक, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र एवं अँग्रेज़ी
तकनीकी शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा
वर्तमान पेशा : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर
साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय समाचार पत्रों सहित देश के कई पत्रिकाओं में अनेक समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित
स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन।
अंतरजाल पत्रिका "अनुभूति, हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, साहित्य शिल्पी आदि में सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशित।
गीत ग़ज़ल संकलन "रेत में जगती नदी" कला मंदिर प्रकाशन में शीघ्र प्रकाशनार्थ
रुचि के विषय : नैतिक मानवीय मूल्य एवं सम्वेदना

यह जीवन श्रृंगार प्रभु

सबकी है सरकार प्रभु
क्या सबको अधिकार प्रभु

आमलोग जीते मुश्कल से
इतना अत्याचार प्रभु

साफ छवि लाजिम है जिनकी
करते भ्रष्टाचार प्रभु

मँहगाई, आतंकी डर से
दिल्ली है लाचार प्रभु

रिश्ते-नाते आज बने क्यों
कच्चा-सा व्यापार प्रभु

अवसर सबको मिले बराबर
यह जीवन श्रृंगार प्रभु

लोग खोजते अब जीवन में
जीने का आधार प्रभु
देव-भूमि भारत में अब तो
लगता सब बेकार प्रभु

सुना युगों से करते आये
जुल्मों का संहार प्रभु

सुमन आस है, नहीं डरोगे
क्या लोगे अवतार प्रभु
***
क्या बात है

अपनों के आस पास है तो क्या बात है
यदि कोई उसमें खास है तो क्या बात है
मजबूरियों से जिन्दगी का वास्ता बहुत,
दिल में अगर विश्वास है तो क्या बात है

आँखों से आँसू बह गए तो क्या बात है
बिन बोले बात कह गए तो क्या बात है
मुमकिन नहीं है बात हरेक बोल के कहना,
भावों के साथ रह गए तो क्या बात है

इन्सान बन के जी सके तो क्या बात है
मेहमान बन के पी सके तो क्या बात है
कपड़े की तरह जिन्दगी में आसमां फटे,
गर आसमान सी सके तो क्या बात है

जो जीतते हैं वोट से तो क्या बात है
जो चीखते हैं नोट से तो क्या बात है
जो राजनीति चल रही कि लुट गया सुमन,
जो सीखते हैं चोट से तो क्या बात है
***
मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ

तेरे प्यार में अभी तक मैं जहान ढ़ूढ़ता हूँ
दीदार हो सका न क्यूँ निशान ढ़ूढ़ता हूँ

जब मतलबी ये दुनिया रिश्तों से क्या है मतलब
इन मतलबों से हटकर इन्सान ढ़ूढ़ता हूँ

खोया है इश्क में सब आगे है और खोना
खुद को मिटाने वाला नादान ढ़ूढ़ता हूँ

एहसास उनका सच्चा गिरकर जो सम्भलते जो
अनुभूति ऐसी अपनी पहचान ढ़ूढ़ता हूँ

कभी घर था एक अपना जो मकान बन गया है
फिर से सुमन के घर में मुस्कान ढ़ूढ़ता हूँ
***

दूजा नया सफर है

निकला हूँ मैं अकेला अनजान सी डगर है
कोई साथ आये, छूटे मंजिल पे बस नजर है

महफिल में मुस्कुराना मुश्किल नहीं है यारो
जो घर में मुस्कुराये समझो उसे जिगर है

पी करके लड़खड़ाना और गिर के सम्भल जाना
इक मौत जिन्दगी की दूजा नया सफर है

जब सोचने की ताकत और हाथ भी सलामत
फिर बन गए क्यों बेबस किस बात की कसर है

हम जानवर से आदम कैसे बने ये सोचो
क्यों चल पड़े उधर हम पशुता सुमन जहर है
***
दिल्ली से गाँव तक

अंदाज उनका कैसे बिन्दास हो गया
महफिल में आम कलतक वो खास हो गया
जिसे कैद में होना था संसद चले गए,
क्या चाल सियासत की आभास हो गया

रुकते ही कदम जिन्दगी मौत हो गयी
प्रतिभा जो होश में थी क्यों आज सो गयी
कल पीढ़ियाँ करेंगी इतिहास से सवाल,
क्यों मुल्क बचाने की नीयत ही खो गयी

मरते हैं लोग भूखे बिल्कुल अजीब है
सड़ते हैं वो अनाज जो बिल्कुल सजीव है
जल्दी से लूट बन्द हो दिल्ली से गाँव तक,
फिर कोई कैसे कह सके भारत गरीब है

आतंकियों का मतलब विस्तार से यारो
शासन की कोशिशे भी संहार से यारो
फिर भी हैं लोग खौफ में तो सोचता सुमन,
नक्सल से अधिक डर है सरकार से यारो
*******

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2 Responses to श्यामल सुमन की पाँच रचनाएँ

  1. सभी रचनाएं दिल को छूने वाली हैं...
    दीपोत्सव की हार्दिक बधाई.

    ReplyDelete
  2. साफ छवि लाजिम है जिनकी
    करते भ्रष्टाचार प्रभु
    छवि का ही खेल रह गया है।

    ReplyDelete

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