सुमन सारस्वत की दो कविताएँ

लेखिका सुमन सारस्वत ने पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबी पारी पूरी की. मुंबई से दैनिक जनसत्ता का संस्करण बंद हुआ तो सुमन ने भी अखबारी नौकरी छोडकर घर की जिम्मेदारी संभाल ली. मगर एक रचनाकार कभी खाली नहीं बैठता. अखबारी लेखन के बजाय सुमन कहानी में कलम चलाने लगी. पत्रकार के भीतर छुपी कथाकार अखबारी फीचर्स में भी झलकता था. बहुत कम लिखने वाली सुमन सारस्वत की ‘बालू घडी’ कहानी बहुत चर्चित रही. उनकी नई कहानी ‘मादा’ बहुत पसंद की गई . एक आम औरत के खास जजबात को स्वर देने वाली इस कथा को मूलतः विद्रोह की कहानी कहा जा सकता है. यह कथा ‘आधी दुनिया’ के पीडाभोग को रेखांकित ही नहीं करती बल्कि उसे ऐसे मुकाम तक ले जाती है जहां अनिर्णय से जुझती महिलाओं को एकाएक निर्णय लेने की ताकत मिल जाती है . लंबी कहानी ‘मादा’ वर्तमान दौर की बेहद महत्वपूर्ण गाथा है . सुमन सारस्वत की कहानियों में स्त्री विमर्श के साथ साथ एक औरत के पल-पल बदलते मनोभाव का सूक्ष्म विवेचन मिलता है.
email : sumansaraswat@gmail.com

जिंदगी कितनी मुश्किल हो जाती है

जिंदगी
कितनी मुश्किल हो जाती है
जिंदगी
कितनी भारी हो जाती है
जब तुम सब कुछ हाथों में
पकड कर रखो...
जकड कर रखो...
इसलिए ,
खोल दो मुट्ठियों को
खोल दो ग्रंथियों को
सब कुछ निकल जाने दो
सब कुछ बिछल जाने दो
फूंक-फूंक कर उडा दो
थूक-थूक कर बहा दो
कूडा-करकट ,
गर्दा-वर्दा
फिर
मैल न जमने पाए
फिर
हाथ न फैलने पाए
कि तुम
लौट आओ अपने में
कि तुम
सिमट जाओ सपने में
अब तुम कसो मुट्ठियों को
सिर्फ कर्म करने के लिए
क्योंकि
सिर्फ करने पर
होगा तुम्हारा अख्तियार
....और
वही होगा
तुम्हारा पुरस्कार.......
***

मैं अपने आंसू नहीं गिराना चाहूंगी

मैं अपने आंसू नहीं गिराना चाहूंगी
दहकते कोयलों पर
मैं अपने आंसू नहीं चुआना चाहूंगी
बुझी राख पर
तुम अपनी हथेलियां सरका देना
मैं अपने आंसू ढरका दूंगी
फिर तुम अहसास करना
अपनी हथेलियों पर एक बूंद का
जिसमें समाया है खारा पानी
जो वेगवान है महासमुद्र से भी ज्यादा
तुम अपनी हथेलियों पर सहेजना
इस बूंद को...
जिसमें समाया है एक पिंड
जिसमें समा जाना है एक दिन
इस ब्रह्मांड को
इस कायनात को...
इस अहसास को तुम महसूस करो
इस पिंड में समाए हो तुम
और मैं भी....
फिर यह पिंड समा जाएगा
उस पिंड में जहा....
न यह ब्रह्मांड बचेगा
न यह कायनात रहेगी कायम
जहां खो जाएंगे अर्थ....
‘मैं’ और ‘तुम’ के
...तो पिंड होने से पहले
अहसास कर लो अपने होने का
अहसास कर लो मुझे जीने का
इसीलिए यह जो बूंद है तुह्मारी हथेली पर
इसे तुम छुओं अपनी ऊंगली से
तुम्हारी आंच से कहीं
उड न जाए भाप बनकर
उससे पहले इसे लगा लो
अपनी आंखों में
गंगाजल की बूंद की तरह
जहां सद्गति पा जाएं
मेरे सारे भाव...
तर जाएं मेरी शापित इच्छाएं
फिर मैं कहलाऊं मोक्षदा
***

Posted in . Bookmark the permalink. RSS feed for this post.

14 Responses to सुमन सारस्वत की दो कविताएँ

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. सुमन जी की ‘...आँसू..’ शीर्षक रचना बहुत पसंद आयी।
    उन्हें हार्दिक बधाई!

    ReplyDelete
  3. लौट आओ अपने में
    कि तुम
    सिमट जाओ सपने में
    अब तुम कसो मुट्ठियों को
    सिर्फ कर्म करने के लिए

    * * * * *

    दोनों रचनाएँ लाजवाब !

    ReplyDelete
  4. जिन्‍दगी आसान कब रही है। लेकिन इसी तरह जीने का नाम जिन्‍दगी है।

    ReplyDelete
  5. दोनों रचनाएँ सुन्दर....हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  6. सुमन जी, दोनों रचनाएं दिल को छूने वाली हैं.

    ReplyDelete
  7. ताजगी का अहसास कराती बेहतरीन कविताएँ!

    ReplyDelete
  8. बहुत बेहतरीन रचनाएँ...


    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

    ReplyDelete
  9. अर्थपूर्ण रचनाएँ

    ReplyDelete
  10. सुमन की कविताओं में मानवीय रिश्‍तों की अहमियत को बहुत खूबसूरत शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया गया है। दो प्राणियों के रिश्‍ते में जो व्‍याकता है, उसे भी बहुत सटीक शब्‍दों बांधने का प्रयत्‍न किया गया है। इन अच्‍छी कविताओं के लिए बधाई।

    ReplyDelete
  11. दोनों ही कविताएं आत्‍मीय रिश्‍तों की गहराई को समझने का आग्रह लेकर सामने आती हैं और इस बंधन के भीतर जो खुलापन और समर्पण अपेक्षित है, उसे बहुत सघन आवेग के साथ अनुभव करने पर बल देती है। एक स्‍त्री के आंसू या किसी भी इन्‍सान के आंसू का क्‍या महत्‍व है, इस कवयित्री सुमन के इन शब्‍दों में बखूबी समझा जा सकता है - "इस बूंद को.../जिसमें समाया है एक पिंड /जिसमें समा जाना है एक दिन /इस ब्रह्मांड को /इस कायनात को.../इस अहसास को तुम महसूस करो /इस पिंड में समाए हो तुम /और मैं भी...." यानी ये आंसू महज आंख से निकल आया साधारण जल नहीं हैं, इनके भीतर जो पीड़ा और अन्‍तरंगता छुपी है, उसी को बचाकर ही हम जीवन को बचा सकते हैं। मानवीय रिश्‍तों पर दोनों अच्‍छी कविताएं हैं। बधाई।

    ReplyDelete
  12. दोनों ही कविताएं आत्‍मीय रिश्‍तों की गहराई को समझने का आग्रह लेकर सामने आती हैं और इस बंधन के भीतर जो खुलापन और समर्पण अपेक्षित है, उसे बहुत सघन आवेग के साथ अनुभव करने पर बल देती है। एक स्‍त्री के आंसू या किसी भी इन्‍सान के आंसू का क्‍या महत्‍व है, इस कवयित्री सुमन के इन शब्‍दों में बखूबी समझा जा सकता है - "इस बूंद को.../जिसमें समाया है एक पिंड /जिसमें समा जाना है एक दिन /इस ब्रह्मांड को /इस कायनात को.../इस अहसास को तुम महसूस करो /इस पिंड में समाए हो तुम /और मैं भी...." यानी ये आंसू महज आंख से निकल आया साधारण जल नहीं हैं, इनके भीतर जो पीड़ा और अन्‍तरंगता छुपी है, उसी को बचाकर ही हम जीवन को बचा सकते हैं। मानवीय रिश्‍तों पर दोनों अच्‍छी कविताएं हैं। बधाई।

    ReplyDelete
  13. दोनों ही कविताएं आत्‍मीय रिश्‍तों की गहराई को समझने का आग्रह लेकर सामने आती हैं और इस बंधन के भीतर जो खुलापन और समर्पण अपेक्षित है, उसे बहुत सघन आवेग के साथ अनुभव करने पर बल देती है। एक स्‍त्री के आंसू या किसी भी इन्‍सान के आंसू का क्‍या महत्‍व है, इस कवयित्री सुमन के इन शब्‍दों में बखूबी समझा जा सकता है - "इस बूंद को.../जिसमें समाया है एक पिंड /जिसमें समा जाना है एक दिन /इस ब्रह्मांड को /इस कायनात को.../इस अहसास को तुम महसूस करो /इस पिंड में समाए हो तुम /और मैं भी...." यानी ये आंसू महज आंख से निकल आया साधारण जल नहीं हैं, इनके भीतर जो पीड़ा और अन्‍तरंगता छुपी है, उसी को बचाकर ही हम जीवन को बचा सकते हैं। मानवीय रिश्‍तों पर दोनों अच्‍छी कविताएं हैं। बधाई।

    ReplyDelete

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए कोटिशः धन्यवाद और आभार !
कृपया गौर फरमाइयेगा- स्पैम, (वायरस, ट्रोज़न और रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त) टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन ना चाहते हुवे भी लागू है, अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है. कृपया अपना सहयोग बनाए रखें. धन्यवाद !
विशेष-: असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.