प्रेम
जो भी करता है
उसे अपना ही एक अर्थ देता है
किसी के लिए
राधा-श्याम, मीरा-गिरधर,
सोहनी-महिवाल, हीर-रांझा,
ढोला-मरवण है प्रेम
किसी के लिए
किसी को देखना भर प्रेम है
किसी को
किसी का अच्छा लगना
किसी के लिए
किसी की जान प्रेम है
तो किसी के लिए
किसी के साथ सोने की चाह भर है प्रेम
जितने प्रेम
उतने अर्थ
कुछ अनमोल
कुछ व्यर्थ
किसी के लिए ईश्वर
किसी के लिए भक्ति
किसी के लिए आसक्ति
किसी के लिए विरक्ति है प्रेम
मेरे लिए
प्रेम है एक आश्चर्य
शब्द व्यक्त से परे
एक ऐसा आश्चर्य
जो सिर्फ होता है
होता है
कहीं भी
कभी भी
***
(२)
प्रेम
तुम केवल प्रेम क्यूं नहीं हो
क्यूं है तुम्हारे साथ
तुम्हारी चाह
तुम्हारी आह
क्य बेकल है हर कोई
जानने के लिए
तुम्हारी थाह
ओ प्रेम!
आखिर क्या है
तुम्हारा रूप, स्वरूप
तुम!
मौन
वाचाल
भीतर
बाहर
व्यक्त
अव्यक्त
निज
सार्वजनिक
क्या हो तुम?
क्या है तुम्हारी पहचान
कहां है तुम्हारा
उद्भव, अवसान
प्रेम!
कहां कहां हो तुम
और कहां नहीं
सब करते हैं तुम्हारी बडाईयां
न जाने कितने
जीत, हार चुके तुम्हारे दम, बूते
अपनी जीवन लडाईयां
झेल चुके रुस्वाईयां
और आज भी
जारी है अनवरत
न जाने कहां कहां
किस किस रूप में
तुम्हारे लिए कितने संग्राम
कितने कत्ल-ए-आम
प्रेम!
तुम्हें शत् शत् प्रणाम
कितना छोटा
और आसान है
तुम्हारा नाम
पर कितनी दुरूह,
दुर्लभ
दुर्गम है तुम्हारी राह
तुम्हारी चाह!
कितनी अथाह!
जो पाए, बोराए
क्या क्या स्वांग रचाए
रंग में तेरे, रंग रंग जाए
प्रेम की गूढता को बखूबी अभिव्यक्त किया है ! सच है प्रेम की परिभाषा और उसकी उपादेयता हर एक के लिये अलग होती है और उसे देखने सराहने का दृष्टिकोण भी सबका अलग होता है ! सुन्दर रचनाएं ! आभार !
ReplyDeleteप्रेम में डूब कर लिखी गयी रचना .. बहुत गंभीर थापी सहज रचना !
ReplyDeleteकिसी के लिए ईश्वर
ReplyDeleteकिसी के लिए भक्ति
किसी के लिए आसक्ति
किसी के लिए विरक्ति है प्रेम
प्रेम को बड़ी सुन्दरता से परिभाषित किया है नवनीत जी ने ....
प्रेम ईश्वर का ही एक रूप है ....
दोनों ही रचनायें सराहनीय हैं ...!!
प्रेम अनंत, प्रेम कथा अनंता।
ReplyDeleteप्रेम पर कहने चला तो जाने क्या क्या कह गया
प्रेम के भावों की नदिया में सभी कुछ बह गया।
दोनों ही रचनाएँ बहुत पसंद आईं. आभार.
ReplyDeleteBahut badhiya paribhashit kiya hai ji!
ReplyDeletesach me prem ko ek pyaree abhivyakti ke dwara aapne sanjoya hai, badhai.........
ReplyDeleteकिसी के लिए ईश्वर
ReplyDeleteकिसी के लिए भक्ति
किसी के लिए आसक्ति
किसी के लिए विरक्ति है प्रेम
बढिया है ......
प्रेम के विभिन्न रूप के दर्शन कराती रचनाएं ... सच में प्रेम क्या है पता नहीं ...
ReplyDeleteअच्छी लगी दोनों रचनाएं ...
Donon rachnaon mein Viratta ka aabhaas hua, jo man ke bahut hi kareeb laga. Shabdavali apna parichay aap de rahi hai. Shubhkamnaon ke saath
ReplyDeleteDonon
sundar kavitaen!
ReplyDeleteओ प्रेम!
ReplyDeleteआखिर क्या है
तुम्हारा रूप, स्वरूप
तुम!
मौन
वाचाल
भीतर
बाहर
व्यक्त
अव्यक्त
निज
सार्वजनिक
क्या हो तुम?
क्या है तुम्हारी पहचान
कहां है तुम्हारा
उद्भव, अवसान...
behadd sunder kavita.
badhai sweekar karen .