अरुण चन्द्र रॉय की दो कविताएँ

रचनाकार परिचय
नाम : अरुण चन्द्र रॉय
पेशे से कॉपीरायटर तथा विज्ञापन व ब्रांड सलाहकार. दिल्ली और एन सी आर की कई विज्ञापन एजेंसियों के लिए और कई नामी गिरामी ब्रांडो के साथ काम करने के बाद स्वयं की विज्ञापन एजेंसी तथा डिजाईन स्टूडियो - ज्योतिपर्व का सञ्चालन. अपने देश, समाज व लोगों से सरोकार को बनाये रखने के लिए कविता को माध्यम बनाया है.
ब्लॉग : www.aruncroy.blogspot.com
1.

एलेक्ट्रोन

एलेक्ट्रोन
अतृप्त होते हैं
अकेले होते हैं


और वे ही हैं
इस धरती के संबंधो
के आधार ।

रासायनिक गठबंधन के लिए
नए निर्माण के लिए
नए सृजन के लिए
नई उर्जा के लिए
नई सम्भावना के लिए
जरुरी है
अतृप्त होना
अकेले होना
विचरते रहना
एलेक्ट्रोन की तरह


एलेक्ट्रोन हैं हम
एलेक्ट्रोन हो तुम
चलो रचे नई सम्भावना !


2.

तुम्हारा अंक

तालिकाओं में
खोये
आकड़ों के जाल में
उलझे उलझे
हम
मानो अंक
अंक ना हो...
तुम्हारा अंक हो !

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19 Responses to अरुण चन्द्र रॉय की दो कविताएँ

  1. रासायनिक गठबंधन के लिए
    नए निर्माण के लिए
    नए सृजन के लिए
    नई उर्जा के लिए
    नई सम्भावना के लिए
    जरुरी है
    अतृप्त होना
    अकेले होना
    विचरते रहना
    एलेक्ट्रोन की तरह

    kya baat hai...achi lagi rachnaye

    ReplyDelete
  2. अगर मैं कहूं कि पहली कविता केवल विज्ञान जानने वालों के लिए है तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। कव‍ि का दायित्‍व बनता है कि वह जिस बिम्‍ब का चयन कर रहा है वह बिम्‍ब ऐसा होना चाहिए जो हर पाठक को समझ आए। या फिर उस बिम्‍ब को कविता में स्‍थापित भी करना चाहिए। मेरी जानकारी में शब्‍द इलेक्‍ट्रान है न कि कि एलेक्‍ट्रान।

    दूसरी कविता में भी जिस बिम्‍ब के साथ साम्‍यता खोजी गई है वह कुछ जमता नहीं है। प्रेयसी का अंक और अंकों की दुनिया दो अलग चीजें हैं। अरुण जी विज्ञापन की दुनिया से संबंध रखते हैं अगर उनका इशारा 34-23-36 जैसे अंकों से है तो फिर बात अलग है।
    (अरुण भी और अन्‍य पाठकगण भी माफ करें। मेरा अरुण जी के साथ कुछ इस तरह का रिश्‍ता बन गया है कि जहां भी मुझे उनकी कविता मिलती है मैं उसके बारे में इसी तरह बात करता हूं। वह इसलिए कि मुझे उनमें एक उम्‍दा कवि नजर आता है,पर वह कभी कभी बहुत उतावला होता है। जिस दिन उनका यह उतावलापन थोड़ा ठहर जाएगा,वे भी पाठक के अंदर बहुत समय ठहरने लायक योग्‍यता हासिल कर लेंगे।)

    लगे हाथ कहता चलूं कि कल ही मैने यहां आखरकलश पर पहले प्रकाशित उनकी तीन कविताएं पढ़ीं । उनमें से पहली दो बहुत ही अच्‍छी हैं। पर तीसरी में वे फिर गोता खा गए । जहां उन्‍हें अपनी प्रेयसी में माडल नजर आती हैं।

    ReplyDelete
  3. अंक में डूबा है जो वो खो गया
    दूर रहकर चार पल जी लीजिये।

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  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    ReplyDelete
  5. swchhndta vad ki jhlk liye kvitaye kvi ke atript mans ki dyotk hai
    kvi ka adhikar hai vh kya vishy chune pr "akn " shbd doosri bar preysi ke ank se samy sthapit krta sa prtit nhi ho rha bhai rajesh ji ne bhi yhi khi haismbhvt
    doosri bat ye tino hi alg 2 nhi ek hi sthan pr snchrn krte hai in ki visheshta hi snchrn hai elektron 2 nhi apitu us ke sath proton milta hai yani nkaratmk +skaratmk ++-tb rchna hoti hai
    pr aap miln ki bat krte hai achchha hai
    bdhai

    ReplyDelete
  6. विज्ञान और गणित के तथ्य और शब्दों के ढांचे में आपने कोमल कविता का सृजन किया है, और वह भी पूरे काव्यगत सौंदर्य के साथ,...अपने आप में अनोखी और यथार्थपरक रचना...बधाई

    ReplyDelete
  7. बिल्कुल अलग और खूबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुत की गई रचना...
    बहुत अच्छी लगी...बधाई.

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  8. "नई सम्भावना के लिए
    जरुरी है
    अतृप्त होना"

    अरुण राय जी की रचनाएँ अपनी अलग पहचान रखती हैं और प्रभावित करती हैं ये दोनों रचनाएँ भी मेरे उसी विश्वास को दृढ करती है.

    ReplyDelete
  9. विज्ञान के विषयों पर लिखी कवितायें या इन बिम्बों पर लिखी कवितायें मुझे बेहद पसन्द हैं ।
    यहाँ भी देखेंhttp://wwwsharadkokas.blogspot.com/

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  10. एलेक्ट्रोन हैं हम
    एलेक्ट्रोन हो तुम
    चलो रचे नई सम्भावना !
    बहुत सुन्दर एलेक्ट्रोनिक सम्भावना ..

    कभी मैनें भी एलेक्ट्रोनिक सम्भावना को निहारा था :
    http://verma8829.blogspot.com/2009/07/blog-post_11.html

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  11. राय साहब की विज्ञान की पृष्ठभूमि लगती है, जो विज्ञान के विद्यार्थी हैं, जैसा राजेश ने कहा, उनकी समझ में तो यह अभिव्यक्ति आसानी से आ जायेगी लेकिन फिर भी जो सम्वेदन राय साहब हम तक पहुंचाना चाहते हैं, वह पहुंच रहा है, मुक्ति रचना के द्वार खोल देती है, मुक्ति वह नहीं जो हमारे साधु संत गाते फिरते हैं बल्कि वह जो स्वतंत्र दृष्टि प्रदान करती है.

    ReplyDelete
  12. bahut hi sundar kavitayein....
    मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
    क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
    अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
    http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html

    ReplyDelete
  13. aap ki dono hi rachnayen behad pasand aayeen ....santushti aadmi ko nishkriya hi bana deti hai ..sahi kaha hai aapne kee nayi sambhaavnaayen rachne ke liye atriptta zaroori hai ...doosri kavita me ank aur ank dono ka jaadooo chal gaya ......

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर, कुछ अलग अंदाज़ लिए रचनाए!

    ReplyDelete
  15. kuch shabd apni pahchaan her din gahri karte jate hain aur aakarshit karte hain

    ReplyDelete
  16. Arunji ki donon hi kavitaayen bahut achchhi hain . nootan vimb ka prayog kiya hai jo ki aapki kavita ki pahchan banta ja raha hai. aam jiwan se uthaya gaya achhoota vishay, anootha vimb prayog, parimarjit shaili aapki kavitaaon ko naya aayam de rahi hai. shubhkamna sweekar kare.

    ReplyDelete

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