राजेश उत्साही मप्र की अग्रणी शैक्षिक संस्था एकलव्य में 1982 से 2008 तक कार्यरत रहे हैं। संस्था की बाल विज्ञान पत्रिका ‘चकमक’ का 17 साल तक कुशल संपादन किया है। वे मप्र शिक्षा विभाग की पत्रिका ‘गुल्लक’ तथा ‘पलाश’ के संपादन से भी जुड़े रहे हैं। नालंदा,रुमटूरीड तथा मप्रशिक्षा विभाग के लिए बच्चों के लिए साहित्य निमार्ण कार्यशालाओं में स्रोतव्यक्ति के रूप में भी सम्मिलित रहे। उन्होंने गद्य-पद्य की समस्त विधाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज की है, जिनमें कविताएँ, कहानी,लघुकथाएं, व्यंग्यलेखन आदि शामिल हैं। राजेश उत्साही को बच्चों के लिए साहित्य रचने, रचे गए को पढ़ने और उसकी समीक्षा करने में गहन रुचि रही है। यही कारण है कि उनके काव्य में मासूमियत, जिज्ञासा और नए अनुसन्धान की उत्कंठा स्पष्टतः झलकती है, जो उनके जिज्ञासु, निर्मल और सच्चे उदगार की प्रतीक है। मगर जैसे कविता उनमें जीती है। अपने अलग अंदाज़ से काव्य को नयापन देने वाले उत्साही जी की दो कविताएँ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं। इनमें कल्पना की उड़ान भर नहीं है बल्कि जीवन के पहलुओं एवं खासियत को तुलनात्मकता से देखने और दिखाने की जद्दोजहद भी है। भात और दाल के प्रतीक से वे कवि के अंदर की छटपटाहट को ‘सशर्त’ समझने की चुनौती देते हैं। डॉन और कवि की विभावना और सम्भावनाओं से भी हमें परिचित करवाते हैं। आशा है ‘आखर कलश’ के पाठकों को उनकी तीखी कलम से निकली प्रवाहिता पसंद आएगी। -
पंकज त्रिवेदी १.
कवि भी एक कविता है
पढ़ो
कि कवि भी
एक कविता है
कवि
जो महसूस करता है
अंतस में अपने
वही
उतारता है
शब्दों में ढाल कर
कवि
जो महसूस करता है
वह दौड़ता है उसकी रगों में
वही उभरता है उसके चेहरे पर
कविता
जब तक पक नहीं जाती
(बेशक वह कवि का भात है)
या कि
जब तक वह उबल नहीं जाती
(बेशक वह कवि की दाल है)
या कि
जब तक वह पल नहीं जाती
(बेशक वह कवि की संतान है)
तब तक
छटपटाती है
कवि के अंतस में
छलकती है चेहरे पर
झांकती है आंखों से
इसलिए
पढ़ो
कि कवि
स्वयं भी एक कविता है
बशर्ते कि तुम्हें पढ़ना आता हो!
*******
२.
कविता बिना कवि
कविता
के बिना
एक कवि का आना
मैदान में
शायद
उतना ही बड़ा आश्चर्य है
जितना
बिना हथियार के
घूमना ‘डॉन’ का
डॉन
शरीर पर चोट
पहुंचाता है
कवि
शरीर नहीं
आत्मा पर वार करता है
शरीर की चोट
घंटों,दिनों,हफ्तों या कि
महीनों में भर जाती है
आत्मा
पर लगी चोट
सालती है
वर्षों नहीं, सदियों तक
इसलिए
कवि को आश्चर्य
नहीं होना चाहिए
कि उससे पूछा जाए
कहां है उसकी कविता ?
***
सम्पर्क :
मोबाइल 09611027788,
ब्लाग
http://gullakapni.blogspot.com गुलमोहर
छटपटाती है
ReplyDeleteकवि के अंतस में
छलकती है चेहरे पर
झांकती है आंखों से
बहुत ही गूढ़ बात कही है, दोनों कविताओं में
सचमुच कवि स्वयं भी एक कविता है ...और कवि की बातें ..आत्मा को झिंझोड़ डालती हैं.
Rajesh yar ek achchhee see tippadee dalee thee magar na jane kahaan ud gayee. kya pata vah bhee aa jaye.
ReplyDeletedonon hee kavitaayen behtareen. kavi aur kavita kee vyaakhya karatee huee. yah jeevanaanubhav Rajesh ka hokar bhee bahuton ka hai, jo sahee maayane men kavita se jude hue hain. in kavitaaon ke liye badhaai.
बाऊ जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
अगर कविताओं का कोई निहितार्थ है तो उसकी गूढता मुझे समझ नहीं आयी!
(इसमें कौन सा नयी बात है?!!!!)
लेकिन सतही तौर पे अपने लेवल के हिसाब से देखूं तो बेहद सीधे और सरल शब्दों में आपने अपनी बात कही है....
सही है कवि भी कविता है....
सादर,
आशीष
राजेश जी आपकी दोनों रचनाएँ अप्रतिम हैं...प्रशंशा के शब्दों से परे हैं...सच्ची और सार्थक हैं...धन्य है आपकी लेखनी...
ReplyDeleteनीरज
आशीष भाई सही कहा आपने नया कुछ भी नहीं है। बस मुझे लगा कि मैंने जानी पहचानी बात को नए तरह से कहा है। आखिर हम कवि लोग और करते क्या हैं? वैसे कविता आपको जितनी समझ आई,उतनी ही है।
ReplyDeleteआभारी हूं नरेन्द्र व्यास जी और आखर कलश टीम का कि उन्होंने बहुत सुंदर तरीके से मेरी रचनाओं को प्रस्तुत किया है। कविताओं के साथ प्रकाशित की गई पेटिंग भी अच्छी हैं। संभव हो तो इनके कलाकार का नाम भी प्रकाशित करें।
मैं अपनी बात कहने देर से आता या शायद आता ही नहीं। यहां कही दो बातों में से दूसरी बात के लिए मुझे जल्दी आना पड़ा।
sudar kavitaayein...badhai.
ReplyDelete"इसलिए
ReplyDeleteपढ़ो
कि कवि
स्वयं भी एक कविता है
बशर्ते कि तुम्हें पढ़ना आता हो!"
"आत्मा
पर लगी चोट
सालती है
वर्षों नहीं, सदियों तक
इसलिए
कवि को आश्चर्य
नहीं होना चाहिए
कि उससे पूछा जाए
कहां है उसकी कविता?
उत्साही जी और उनकी लेखनी को सादर नमन - उनकी रचनायाने पढवाने के लिए आखर कलश हार्दिक धन्यवाद्
इस कविता के माध्यम से कवि ने बौद्धिक जगत की दशा-दिशा पर पैना कटाक्ष किया है।
ReplyDeleteआदरणीया राजेश जी ! इन कविताओं के साथ लगी पेंटिंग्स के कलाकार का नाम 'जोस मैनुअल मरेलो' ( (Artists in the 21st Century) है जो एक स्पनिश मॉडर्न आर्ट पेंटर हैं. ! (सौजन्य-गूगल)
ReplyDeleteइसलिए
ReplyDeleteपढ़ो
कि कवि
स्वयं भी एक कविता है
बशर्ते कि तुम्हें पढ़ना आता हो!
मैं कुछ शब्द और जोडूंगा
कवि एक सरल नहीं
जटिल कविता है
कवि पर अपनी तरह से विचार करती कविताएँ
दोनों रचनाएँ अच्छी लगी.... नरेन्द्र जी शुक्रिया आप ऐसी रचनाएँ सामने लाते रहते हैं।
ReplyDeleteआभार...
जहाँ तक उत्साहीजी की बात है उनकी कवितायेँ भावप्रधान होती हैं।
कई बार उनके ब्लॉग पर भी पढ़ चुकी हूँ।
कवि और कविता विषय पर बहुत ही शानदार कविताएं पढ़ने को मिलीं.
ReplyDeleteराजेश उत्साही जी को इस सृजन के लिए बधाई.
उत्साही जी की कविताएँ सारगर्भित होती हैं और हृदय से निकलती है... और विशेष कर तब जब कविता ही कवि और कविता के रिश्तों को रेखांकित करती हो. दूसरी कविता पहले... एक सच्चा बयान..वंदे मातरम एक कविता ही तो है, मगर जब आनंद मठ में यह गीत गूँजता है तब पता चलता है कि यह एक गीत नहीं स्वतंत्रता का हथियार है... किंतु कविता मात्र छंदों और शब्दों में रची कविता नहीं यह एक सम्पूर्ण परिचय है एक कवि का... उत्साही जी, एकदम खरा बयान.
ReplyDeleteदूसरी कविता में आपने कवि को कविता बताया है और उसके हर रूप को दिखाया है, लेकिन अंतिम पंक्ति की आवश्यकता नहीं थी.. यह कवि को न पढ पाने वाले या पढ़ सकने वाले पाठकों या गुणग्राही जन पर प्रश्न चिह्न लगाती है. कवि का संदेश यहीं समाप्त हो जाता है कि पढो कि कवि भी एक कविता है. इसमें यह भाव स्पष्ट है, उजागर है कि जो कवि को एक कविता की तरह नहीं पढता और सिर्फ कविता को सम्पूर्ण मानता है, वह अनपढ है, उसे कविता का ज्ञान नहीं, एक अर्द्धसत्य है उसका ज्ञान.
कविता
ReplyDeleteजब तक पक नहीं जाती
(बेशक वह कवि का भात है)
या कि
जब तक वह उबल नहीं जाती
(बेशक वह कवि की दाल है)
या कि
जब तक वह पल नहीं जाती
(बेशक वह कवि की संतान है)
तब तक
छटपटाती है
-दोनों ही रचनाएँ अद्भुत हैं..आनन्द आ गया बांच कर.
राजेश उत्साही जी हमेशा ही बेहतर लिखते हैं
ReplyDeleteयहां प्रस्तुत उनकी दो रचनाएं इस बात का सबूत भी है.
पिछले कुछ समय से मैं उनके ब्लाग पर जा नहीं पाया हूं.
लेकिन यह सच है कि मैं उनसे हमेशा कुछ सीखता हूं
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteसाहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
दोनों रचनाये बहुत सुन्दर है ....
ReplyDeleteराजेशजी बधाई !
इसलिए
ReplyDeleteपढ़ो
कि कवि
स्वयं भी एक कविता है
बशर्ते कि तुम्हें पढ़ना आता हो!
और
इसलिए
कवि को आश्चर्य
नहीं होना चाहिए
कि उससे पूछा जाए
कहां है उसकी कविता ?
...सही सवाल!
...उत्साही जी की काव्यधर्मिता के अनूठी प्रस्तुति के लिए आखर कलश को हार्दिक धन्यवाद और उत्साही जी को सारगर्भित रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं
कवि भी एक कविता है……………क्या भाव उँडेले हैं जो रगों मे लहू बन कर दौडे वो कविता ही तो है कवि और कविता एक दूसरे से जुदा कब हैं।
ReplyDeleteकविता बिना कवि……………फिर तो उसका अस्तित्व ही नही है……………।जैसे बिना डोर के पतंग्……………भावों का खूबसूरत समन्वय किया है।
kavi swayam me kavita hai........:)
ReplyDeletekavi kyon bhaiya, har kisi ki jindgi khud me kavita hai.........:)
bahut khub!! aapka aashish bana rahe..!!
अब तक
ReplyDeleteकवि को
कविता ने
दिलायी थी प्रतिष्ठा.
आपकी सदाशयता है कि
आप पुरजोर अपील कर
करते हैं पाठको के मन के भीतर
कवियों की सुदर प्राण-प्रतिष्ठा.
आपके
स्वागत के
उठे हाथों को
सम्मान देते हुए
मेरी दृष्टि की
आपके चरणों की ओर
हो रही है निष्ठा.
@ सम्वेदना के स्वरद्वय मेरी दूसरी कविता की अंतिम पंक्ति ने आपको उद्वेलित किया यही उस कविता की सफलता है। आप कुछ कहने पर मजबूर हुए। मेरे हिसाब से पूरी कविता की जान यह पंक्ति है। कविता
ReplyDeleteका आधार यही सवाल है। जो गुणीजन पाठक हैं वे इस सवाल का जवाब खुद से ही पूछेंगे और जवाब उनके अंदर से ही आएगा।
आज आपका ब्लॉग चर्चा मंच की शोभा बढ़ा रहा है.. आप भी देखना चाहेंगे ना? आइये यहाँ- http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/blog-post_6216.html
ReplyDeleteराजेश जी की दोनों कविताएं अच्छी हैं। गहरे अर्थ लिए हुए हैं। पहली कविता देखने में साधारण लेकिन अपने में बहुत कुछ समाये हुए है। जो लोग लेखन में कुछ और, निजी जीवन में कुछ और हैं उन पर व्यंग्य भी है। कवि कर्म की स्पश्ट व्याख्या है। कविता का सृजन वास्तव में तुकबन्दी नहीं है। एक-एक “ाब्द को बरतना है, उसे जीना है। मुनव्वर राना जी के “ोर में कहूं तो,
ReplyDeleteमैंने लफ्जो के बरतने में लहू थूक दिया,
आप तो सिर्फ ये देखेंगे ग़ज़ल कैसी है।
राजेश जी की दोंनों कविताओं इस कसौटी पर खरी हैं।
इसलिए
पढ़ो
कि कवि
स्वयं भी एक कविता है
बशर्ते कि तुम्हें पढ़ना आता हो!
वाह वाह! बहुत-बहुत बधाई।
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण और शानदार रचनाये ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteVery nice you have pover to make readers
ReplyDeleteArti
उत्साही जी जैसे वरिष्ठ साहित्यकार से हम कुछ बेहतर कविता की आस
ReplyDeleteलगाये थे -पर यह दोनों कविताएँ तो एकदम साधारण हैं .
"जब तक वह पल नहीं जाती
ReplyDelete(बेशक वह कवि की संतान है)
तब तक
छटपटाती है
कवि के अंतस में
छलकती है चेहरे पर
झांकती है आंखों से"
इस मर्म को एक कवि से बेहतर बस एक मां ही समझ सकती है .आपने तो सारे कवियों की आन्तरिकता को ही उजागर कर दिया बड़े भैया.
संतुलित गतिशीलता और सुंदर शिल्प ने इसे अत्यंत सुग्राह्य बना दिया है.इससे आगे कहने की शायद क्षमता नहीं है अभी मुझमें.इसका सामान्यीकरण इसका मजबूत पक्ष है ,ऐसा मुझे लगाता है.
वाह ... बहुत ही लाजवाब ... कवि के अंतर्मन को , उसकी आत्मा को शब्दों में लिखना आसान नही होता पर आपने कर दिखाया ..... कविता सच में छटपटाती है क्वि के मन में .... जब तक शब्दों को उचित भाव नही मिलते कवि कविता को अंदर ही रखता है और छटपटाता रहता है .... दोनो बहुत ही शशक्त रचनाए हैं ....
ReplyDeleteराजेश उत्साही said...
ReplyDelete""आशीष भाई सही कहा आपने नया कुछ भी नहीं है। बस मुझे लगा कि मैंने जानी पहचानी बात को नए तरह से कहा है। आखिर हम कवि लोग और करते क्या हैं? वैसे कविता आपको जितनी समझ आई,उतनी ही है।""
इस मायने में अच्छी कविताएं हैं, पढ़ने को मजबूर करती हैं।
abhi abhi rajiv ji ke blog se hokar aa raha hoon... wahin aapki tippani dekhi , prabhawit hua aur chala aaya.....
ReplyDeleteyunn hi aata rahoonga.....
baaki aapki rachnaon par mera tippani karna suraj ko diya dikhane jaisa hai....
इनते मूल्यवान विचार लोगो ने प्रस्तुत किए हैं कि मेरे कुछ कहने के लिए शब्द ही नहीं बचे। हमें सरल शब्दों में कविता के अर्थ समझ में आए..हमारे लिए यही कविता है। कविता जो भाव है .भाव का शब्द रुप है।
ReplyDeleteSach shabdon mein saakar hua hai aur main chup!!
ReplyDeleteकवि
जो महसूस करता है
अंतस में अपने
वही
उतारता है
शब्दों में ढाल कर
waahhhhhhhhhhhhhh!!!
Sach Shabdon mein saakar hua hai aur main Chup!!
ReplyDeleteकवि
जो महसूस करता है
अंतस में अपने
वही
उतारता है
शब्दों में ढाल कर
waahhhhhhhhhhh!!!