पुस्तक समीक्षा
एक कोशिश रौशनी की ओर (काव्य-संग्रह)
कवयित्री- श्रीमती आशा पाण्डे ओझा
समीक्षक- शिवराज छंगाणी
पुस्तक मूल्य- १२० रुपये
अम्बुतोष प्रकाशन,
४९ वनविहार, वैशाली नगर, अजमेर।
समीक्षक हिंदी एवं राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार हैं जो कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं. वर्तमान में राजस्थानी भाषा साहित्य अक्कादामी, बीकानेर से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'जागती जोत' के संपादक हैं.
पता: शिवराज छंगाणी
नत्थूसर गेट, बीकानेर- ३३४००५ (राज.)
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शिवराज छंगाणी |
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श्रीमती आशा पाण्डे ओझा |
‘एक कोशिश रौशनी की ओर’ काव्य-संग्रह कवयित्री श्रीमती आशा पांडे (ओझा) रचित है, जिसमें लगभग ९७ कविताएँ सम्मिलित हैं। इन कविताओं में अनुभूति के वैविध्यपूर्ण लम्हे स्पष्ट लक्षित हैं। महिला कवयित्री होने के नाते मन की उमंगे, जीवट, जाश के साथ-साथ सामाजिक विद्रूपदाओं, विसंगतियों एवं विवशताओं तथा मानव-मानव में भेद की भावनाओं पर खुलकर कलम चलाई है। एक ओर जहाँ उत्पीडन, शोषण, अनाचार और अत्याचार जैसी सामाजिक विसंगतियों के प्रति ध्यान आकृष्ट किया गया है तो दूसरी ओर मानवीय संवेदना, ममत्त्व, दया, कारुण्य भाव, जनहित तथा श्रृँगार-परक भावना एवं अपनत्व की क्षमता अत्यधिक प्रखर है। नारी मन की गहराई, उसका अन्तर्द्वन्द्व, नारी उत्पीडन, मान-अपमान में समान भावुक मन की उमंगे, संवेदनशीलता, सहिष्णुता आदि पर काव्य में अभिव्यक्ति दी गई है, जो कि वस्तुतः सुलझी हुई वैचारिकता की प्रतीक है। काव्य-संग्रह की कविताएँ अभिधेयात्मक एवं व्यंजनात्मक शक्तियों को लिए हुए है तो गीतों, ग़ज़लों एवं नज़्मो में रागात्मकता की प्रतीति होती है। समानता एवं असमानता की सामाजिक विसंगतियों पर कवयित्री खरा व्यंग्य प्रहार करती हुई कहती है-
वे सर पे मैला ढ़ोते हैं
हम मन में मैला ढ़ोते हैं
वो हमारा मैला ढ़ोते हैं
हम उनके प्रति मैला ढ़ोते हैं
कवयित्री सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिये जन-चेतना लाने का भरसक प्रयास अपनी रचनाओं के माध्यम से करती प्रतीत होती है। रचनाएँ जो मुखरित हैं उनमें प्रार्थना, माँ तुम, ऐसा स्वर्णिम सेवेरा होगा, वक्त एक नई कहानी का, कैसे सुनू बसंत की चाप, सवेरा ढूँढ लेना है आदि स्तुत्य है। गीतों, ग़ज़लों एवं नज़्मो में भावाभिव्यक्ति अत्यन्त गहराई लिए हुए है। ‘दुछत्ती सा मन’ कविता की पंक्तियाँ देखिए-
घर की दुछत्ती सा, निरन्तर अथाह
अनन्त दुःखों का बोझ ढोता है मन
फिर भी जिन्दगी करती है कोशिश
ड्राइंग रूम की तरह मुस्कुराने की
शब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, संगीतात्मकता, लयात्मकता की दृष्टि से कविताएँ अत्युत्तम हैं। कवयित्री में नए आयाम स्पर्श करने की क्षमता है। लेखिका एवं प्रकाशक दोनो ही बधाई के पात्र हैं।
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नरेन्द्र जी समीक्षा तो है, पर कविताएं कहां हैं। संग्रह से कम से कम तीन कविताएं तो दें,तब तो कोई टिप्पणी की जा सकेगी।
ReplyDeleteआदरणीय राजेश जी! चूँकि रचनाकार द्वारा समीक्षा हेतु सिर्फ एक ही पुस्तक भिजवाई गई थी..और वो हमने समीक्षक को समीक्षा के लिए प्रेषित कर दी. चूँकि समीक्षक ने वो पुस्तक अपने पास रखी, हम कहते तो वो दे भी सकते थे..पर संकोचवश हम नहीं कह पाए..इसलिए श्रीमती आशा जी की कवितायेँ हम उनकी पुस्तक के अभाव में नहीं दे पाए..इसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं...भविष्य में इस त्रुटि का भी विशेष ध्यान रखेंगे...आदरणीय राजेश जी आपका बहुत आभार सही मार्गदर्शनार्थ.
ReplyDelete"एक कोशिश रौशनी की और" - की समीक्षा के द्वारा आदरणीय शिवराज जी की कलम से श्रीमती आशाजी की कविताओं की सही परख हुई है...| जो पाठक आशा जी को जानते हैं, उन्हें तो पता ही है कि वह उत्कृष्ट कवयित्री है, मगर समीक्षा के द्वारा तो मोहर लगती है | यह कार्य आदरणीय शिवराज जी ने बड़ी तटस्थता से किया है | दोनों को बधाई |
ReplyDeleteयहां यह संवाद आशा जी भी पढ़ रही होंगी। मेरा उनसे अनुरोध है कि आखर कलश को अपने संग्रह की एक प्रति और भेंज दें,ताकि नरेन्द्र जी हम पाठकों को आपकी कविताओं से वंचित न रख पाएं।
ReplyDeleteआशा जी आपकी पहली चार पंक्तियां देखकर आपकी कविताएं पढ़ने का बहुत मन है। नरेन्द्र जी से अनुरोध है कि जब भी संभव हो आशा जी कविताएं आखर कलश पर पढ़वाएं।
पंकज जी, आदर के साथ कहना चाहता हूं कि समीक्षा उत्कृष्ठता या निकृष्ठता का प्रमाण नहीं होती है,वह केवल एक नजरिया होती है। उसके आधार पर एक सामान्य पाठक यह तय करता है कि वह उस संग्रह या लेखक को पढ़े या न पढ़े। दूसरी बात समीक्षक का असली काम होता है,रचना के उन पहुलओं की तरफ ध्यान खींचना जिनके बारे में पाठक शायद नहीं सोच पाते हैं। और पंकज जीख्, जो पाठक आशा जी को जानते हैं उन्हें तो इस समीक्षा की जरूरत ही नहीं है,पर हम जैसे अपरिचितों का भी ख्याल करें। शुभकामनाएं ।
आदरणीय राजेश जी,
ReplyDeleteमैं आपका आभारी हूँ कि इस संवाद का मौक़ा दिया | सच्ची समीक्षा हमेशा तटस्थ होती है यानी आपने कहा उससे सहमत हूँ कि-
"रचना के उन पहुलओं की तरफ ध्यान खींचना जिनके बारे में पाठक शायद नहीं सोच पाते हैं।"
मगर मैंने हर भाषाओं में देखा है कि गुटबाजी के चक्कर में बहुत ही कम समीक्षा सही मायने में होती है | आपकी बात सच है कि आशा जी से अपरिचितों के लिएँ उनकी कवितायेँ होनी चाहिए | अब हमने "आखर कलश" पर समीक्षा हेतु 2 -प्रति ही मंगवाने का निर्णय किया है | आपके उस सूचन को हमने सर-आँखों पर लिया है | उम्मींद है कि आप संतुष्ट होंगे | आपको भी शुभकामनाएं |
अच्छी प्रस्तुति..... काफी जानकारी मिली इन रचनाकारों के विषय में...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteमशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें