शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' की ग़ज़ल

शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'
 ईद मुबारक !


समस्त भाइयों और दोस्तों को ईद मुबारक ! परवरदिगार आपको और आपके परिवार को हर मुसीबत से बचाए रखे, सदा बरक़त दे, अपनी रहमतों से नवाज़े. आज इस पाक मौके प़र आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है जनाब शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' की एक ग़ज़ल |





हर घर के आंगन में लेकर आती है खुशहाली ईद
महकाती है दिल का हर गुल, हर पत्ता, हर डाली ईद


रस्म-तकल्लुफ बनकर रह गई अब तो यारो खाली ईद
याद बहुत आती है मुझको अपने बचपन वाली ईद


चांद निराला होता है अपना, ए यार निराली ईद
एक नज़र बस राह में उनको, देखा, और मना ली ईद


खुशियां मिलकर साथ मनाने के त्यौहार बहाने हैं,
सबका है पैगाम मुहब्बत, बैशाखी, दीवाली, ईद


रूठ गये जो हमसे ''शाहिद'' हमने उनकी यादों से
उम्मीदों का दीप जलाया और खुशियों में ढाली ईद
***

शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'

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11 Responses to शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' की ग़ज़ल

  1. ईद के मौके पर बहुत सुंदर गज़ल कही.

    आपको और आपके परिवार हो खुशियों भरी ईद मुबारक हो.

    हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए

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  2. बहुत सुन्दर ग़ज़ल...सभी को ईद मुबारक हो|

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  3. बेहतरीन ग़ज़ल ... एक-एक शेर लाजवाब। ईद की बधाई।

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  4. आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
    बहुत सुन्दर !

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  5. चांद निराला होता है अपना, ए यार निराली ईद
    एक नज़र बस राह में उनको, देखा, और मना ली ईद

    चांद निराला, देखा, और मना ली ईद......
    Achchhi lagi yah baat, yah sher

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  6. यहां इस लिंक पर आकर ईद की और भी खुशियां मिली । बहुत उम्दा शाहिद साहब ।
    रस्म-तकल्लुफ बनकर रह गई अब तो यारो खाली ईद
    याद बहुत आती है मुझको अपने बचपन वाली ईद

    कितना सही है यह हर त्यौहार के बारे में पर यह भी सही है कि

    रूठ गये जो हमसे ''शाहिद'' हमने उनकी यादों से
    उम्मीदों का दीप जलाया और खुशियों में ढाली ईद

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  7. रस्म-तकल्लुफ बनकर रह गई अब तो यारो खाली ईद
    याद बहुत आती है मुझको अपने बचपन वाली ईद

    सच है बचपन में जो ज़िमीदारियों से मुक्त ईद होती थी उस का मज़ा ही अलग होता था
    बहुत ख़ूब!

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  8. रस्म-तकल्लुफ बनकर रह गई अब तो यारो खाली ईद
    याद बहुत आती है मुझको अपने बचपन वाली ईद
    bahut khoob .yahan tippani kar gayi thi magar aaj dekh rahi hoon post nahi hui.

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  9. Shahid Mirza ji ko padhna ati anandmay hota hai..yeh ghazal ek khas paigham le aayi hai.
    खुशियां मिलकर साथ मनाने के त्यौहार बहाने हैं,
    सबका है पैगाम मुहब्बत, बैशाखी, दीवाली, ईद
    ati sunder aur prabhavshali radeef jo barson tak yaad rahega

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  10. चांद निराला होता है अपना, ए यार निराली ईद
    एक नज़र बस राह में उनको, देखा, और मना ली ईद

    बेहतरीन ग़ज़ल का बेहद खुबसूरत शेर ....ईद के मौके पर आपको सपरिवार बहुत बहुत मुबारकबाद !

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  11. चांद निराला होता है अपना, ए यार निराली ईद
    एक नज़र बस राह में उनको, देखा, और मना ली ईद ...

    वाह शाहिद भाई ... इस मुक़द्दस मौके को इस लाजवाब ग़ज़ल ने और भी इश्किया बना दिया है ... गज़ब का शेर है ...

    ईद के इस मुक़द्दस मौके पर सभी को बहुत बहुत मुबारकबाद ....

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