अविनाश वाचस्पति
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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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नामः- श्रीमती साधना राय पिताः- स्वर्गीय श्री हरि गोविन्द राय (अध्यापक) माता:- श्रीमती प्रभा राय...
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नाम : डॉ. कविता वाचक्नवी जन्म : 6 फरवरी, (अमृतसर) शिक्षा : एम.ए.-- हिंदी (भाषा एवं साहित्य), एम.फिल.--(स्वर्णपदक) पी.एच.डी. प...
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समीक्षा दिनेश कुमार माली जाने माने प्रकाशक " राज पाल एंड संज "द्वारा प्रकाशित पुस्तक " रेप तथा अन्य कहानियाँ "...
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आपके समक्ष लगनशील और युवा लेखिका एकता नाहर की कुछ रचनाएँ प्रस्तुत हैं. इनकी खूबी है कि आप तकनीकी क्षेत्र में अध्ययनरत होने के उपरांत भी हिं...
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संक्षिप्त परिचय नाम : दीपा जोशी जन्मतिथि : 7 जुलाई 1970 स्थान : नई दिल्ली शिक्षा : कला व शिक्षा स्नातक, क्रियेटिव राइटिंग में डिप्लोमा ...
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- प्रेमचन्द सक्सेना 'प्राणाधार' की रचना- हिंदी
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दीवाली - *दीवाली * एक गंठड़ी मिली मिट्टी से भरी फटे -पुराने कपड़ो की कमरे की पंछेती पर पड़ी ! यादे उभरने लगी खादी का कुर्ता , बाबूजी का पर्याय बेलबूटे की साडी साडी ...
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थार में प्यास - जब लोग गा रहे थे पानी के गीत हम सपनों में देखते थे प्यास भर पानी। समुद्र था भी रेत का इतराया पानी देखता था चेहरों का या फिर चेहरों के पीछे छुपे पौरूष का ही ...
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सम्पादक मंडल

- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
वेल्थ और हेल्थ तो सरकार और उसके बाशिंदे ही बना रहे हैं.. आम जनता का तो दोनों ही लुट रहा है.. पर किसको पड़ी है?
ReplyDeleteआम जिंदगी में आम लोगों की आम बातें हैं.. कोई नहीं सुनता..
अविनाश जी का क्या कहना. उनकी तीखी नजर का मैं कायल हूं. इस व्यंग्य में भी उन्होंने मच्छरों की खासी खबर ली है पर मच्छरों ने व्यंग्यकारों के प्रति भी प्रतिरोधी ताकत विकसित कर ली है, उन पर कुछ ज्यादा असर नहीं पड़्ता.
ReplyDeleteअविनाश जी आपका यह व्यंग्य पढ़कर मुझे एक वैज्ञानिक सत्य याद आ गया। मानव ने दो विश्वयुद्ध लड़ लिए और उनसे उबर गया। उसके बाद की बहुत सी आपदाएं और युद्ध भी झेल गया। पर सौ साल से पहले शुरू हुई मच्छरों के खिलाफ इस लड़ाई में वह जहां का तहां है। पहले मलेरिया और अब डेंगू और नए नए नाम से बुखार लेकर आ रहा है। इसलिए ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है,हम अकेले नहीं है जो बाकियों का हो रहा है वही हमारा होगा। क्योंकि वह कहने को मच्छर है उसने अच्छों अच्छों को मसल दिया है।
ReplyDeleteसटीक व्यंग है ...जनता त्रस्त और सरकार मस्त है ...
ReplyDeleteअविनाश जी के व्यंग्य तो संभवतः अब पूरे विश्व में कुख्यात हैं लेकिन नरेंद्र जी जो कार्य आप कर रहे हैं उनकी जितनी भी सराहना की जाए, कम है. आज के युग में जिसे भी २ पंक्तियाँ लिखना आ गया, उससे बड़ा साहित्यकार, मनीषी, चिंतक, इंटेलेक्चुअल दूसरा कोई है ही नहीं. एक आप हैं, छांट छांट कर दूसरों को प्रकाशित कर रहे हैं. भाई, बहुत बड़ा कलेजा है आपका.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आए, रचना सराही, निस्संदेह अच्छा लगा. मुझे अफ़सोस है शायद मैं पहली बार यहाँ तक पहुँच सका हूँ और शर्म महसूस होती है कि यह आना भी बदला उतारने जैसा है.
हाँ, एकाध बार आपसे मेल पर वार्ता हुई है, ऐसा मुझे याद आता है.