लोकेन्द्र सिंह कोट की पाँच कविताएँ

लेखक का संक्षिप्त परिचयः
जन्मः १८/०२/१९७२, बडनगर (उज्जैन), मध्यप्रदेश
शिक्षाः विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से एम. एससी. (सांख्यिकी), एम. ए. (अर्थशास्त्र) तथा सागर विश्वविद्यालय, सागर से बेचलर ऑफ जर्नलिज्म एण्ड कम्यूनिकेशन (बी.जे.सी.)।

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प्रत्युत्तर में

किसी बात पर
बहुत गुस्सा आया
जमाने पर, अपने पर,
अपनों पर
पास खडे पेड पर
उतारा गुस्सा
पहले पहल तो लात जमाई,
मुक्का मारा
खूब चिल्ला-चिल्लाकर अपशब्द कहे
पेड को.........।
पेड खडा रहा
सुनता, सहता रहा
हवा का एक तेज झौंका आया
और ढेरों फल टपका दिए
पेड ने
प्रत्युत्तर में.........।
***
खुशी

नीलामी हुई खुशी की
लगी बोली।
हर किसी को चाहिये थी
खुशियाँ
खरीदने वालों का तांता लगा था
आगे-पीछे के चक्कर में
हाथापाई भी हुई
गाली-गलौच भी।
घर-गौदाम भर लिए
खुशियों के
कहीं चोरी न हो जाए
इसलिए पहरेदार लगाए गए
चिंता में रातें गुजार दी
कुल मिलाकर वक्त के साथ
खुशियाँ दर्द बन कर रह गयीं।
जो बेघर, बेगौदाम थे
जो खुशियाँ नहीं खरीद पाए थे
वे खुश थे
क्योंकि उन्हौने
खुशियों को खरीदने का
साहस नहीं किया था।
***
ऋण

पतझड में गिरे पत्ते
जहाँ तक संभव हो
अपने मातृ पेड
के निकट ही बने रहते हैं।
यदि हवा, आंधी उन्हे उडाती भी है
तो वे खूब शोर मचाते हैं
कुछ उड भी जाते हैं
पर बहुत से वहीं रह जाते हैं।
बरसात आने पर वे
सहर्ष मिट्टी में मिल कर
उर्वरा बन जाते हैं अपने
मातृ पेड के लिए
और सारे ऋण चुका देते हैं....
उन्हे याद रहता है
अपने पालकों के प्रति कर्तव्य।
***
विश्वास

दाना चुगाते मेरे हाथ
और दाना चुगते पंछी
चुगते-चुगते कब वे
निकट आ जाते
पता भी नहीं
चलता है।
मेरे प्रति
उनमे जन्म लेते
विश्वास को
मैं देख रहा ह,
महसूस कर रहा ह।
जो हम इंसानों के बीच से
असहजता से गायब हो रहा है
उसे मैं सहजता से पा रहा ह।


नहीं, यह सिर्फ मकान नहीं है।
घर है, मेरा घर, मेरे अम्मा-बाबा का घर।
उनकी उम्मीदों का उनके स्वप्नों का घर
दो कमरे, एक चौका और एक चौखंडी......बस।
वे हमेशा चाहते थे छोटे से छोटा घर
ताकि घर के लोग रह सकें एक दूसरे के अधिकतम निकट
प्रत्येक सुन सके,
एक दूसरे के स्पंदन, धडकन, महसूस कर सके दर्द।
ये सीलन से भरी हुई दीवारें नहीं है
ये हमारे अम्मा-बाबा का पसीना है
इसी घर में जमा है .....खुशबू के मानिंद।
और ये कमरा.......छोटा सा
यहीं चारो धाम हैं।
जहाँ हमने संस्कार पाए,
बाबा हमें यहीं पढाते थे.......
यहीं हमने अपने पंखों का इस्तेमाल करना सीखा..........उडना सीखा।
......अरे........ चौखंडी तो देखिये
यहाँ तो ठंड की कुनमुनाती धूप में हम नहाते थे...
....अम्मा निहलाती थी रगड-रगड कर........
तन और मन दोनों साफ कर देती थी।
सुनों! अब मैं तो फिर से यहीं रहगा।
मैं रहना चाहता ह अपने
परिवार के अधिकतम निकट........।
***
बेकार सोचने वाला कहते हैं

मेरे शहरी और बोन्साई घर
के आगे लगे पेड पर
बैठे चहचहाते पंछी
मुझे बिलखते प्रतीत होते हैं
उनमे मुझे ’होम सिकनेस‘ से त्रस्त
होने का आभास होता है।
एक अजीव खालीपन और
शून्य महसूस करते ये पंछी
मुझे कैदी जैसे लगते हैं।
दूसरी ओर यह सब बातें कहने पर
शहर में लोग मुझे
ज्यादा और बेकार बातों पर
सोचने वाला कहते हैं......।
*******

कार्यवृतः
प्रेम भाटिया राष्ट्रीय फेलोशिप, नई दिल्ली (७५ हजार रूपए) एवं विकास संवाद फेलोशिप, मध्यप्रदेश (१लाख पंद्रह हजार रूपए) प्राप्त हो चुकी हैं।
राजभाषा प्रभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अर्थशास्त्र आधारित पुस्तक ''लघु उद्यमी बजट कैसे तैयार करें'' पर द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है।
छत्तीसगढ पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा कक्षा ११ एवं १२ की अर्थशास्त्र की पुस्तक लिखने का प्रस्ताव मिला है जिसे प्रस्तावक ने पूर्ण कर दिया है व प्रस्तुत पुस्तक २००८-०९ के सत्र से कक्षा ११ एवं १२ में लागू कर दी जावेगी।
भू संसाधन के संरक्षण एवं प्रबंधन के महत्व पर म.प्र. शासन द्वारा संचालित राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन मिशन द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय लेख स्पर्धा में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया तथा इसे शासन ने एक आधार (सुझाव) पुस्तक में प्रकाशित किया है।
केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) में ’रिसर्च एसोसिएट‘ की हैसियत से मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ राज्यों के विभिन्न जिलों में भ्रमण करते हुए कृषि में होने वाली दुर्घटनाऍं तथा उनका आर्थिक प्रभाव का सर्वेक्षण एवं स्थिति की गंभीरता का आंकलन किया है। इस शोध को कृषि अनुसंधान में सबसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय जर्नल 'अमेरिकन जर्नल ऑफ एग्रीकल्चरल सेप्टी एण्ड हेल्थ' ने प्रकाशित किया है।
संयुक्त सम्पादन में 'एक्सीडेंट्स इन इंडियन एग्रीकल्चर' (अंग्रेजी में) प्रकाशित हुई है।
सामाजिक एवं युवा विषयों पर आधारित पुस्तक 'छोटी सी आशा' का देश का एक प्रतिष्ठित प्रकाशन समूह 'उपकार प्रकाशन' (प्रतियोगिता दर्पण) प्रकाशित करने जा रहा है, जो संभवतः अगले माह तक बाजार में आ जावेगी।
उपरोक्त पुस्तक 'छोटी सी आशा' की पांडुलिपि को पचास वर्ष पुरानी संस्था कला मंदिर, भोपाल द्वारा राज्य स्तरीय 'पवैया पुरस्कार' से वर्ष २००४ में पुरस्कृत किया जा चुका है।
एक लघु शोध प्रबंध 'भारतीय अर्थव्यवस्था' (विशेषकर नई आर्थिक नीति के संदर्भ में) को न केवल रिकॉर्ड अंक प्राप्त हुए वरन् उसे विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा संदर्भ पुस्तको में रखा गया है।
राष्ट्रीय तकनीकी प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (टी.टी.टी.आई.) भोपाल द्वारा विभिन्न वोकेशनल कोर्स मटेरियलों के निर्माण हेतु विशेषज्ञ के रुप में मनोनयन किया गया तथा दो पुस्तकों का लेखन कार्य पूर्ण किया जा चुका है।
चार राज्य स्तरीय, चार राष्ट््रीय तथा छः अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में शोध पत्र वाचन एवं चार शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।
कृषि विभाग मध्यप्रदेश के लिए तीन डॉक्यूमेंट्री फिल्मों की स्क्रिप्ट लिख चुके हैं जिनमे से एक का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती कर चुकी हैं और वे बहुत प्रशंषित की गई हैं।
भोपाल दूरदर्शन, मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय साहित्यिक क्विज़ में द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है।
आकाशवाणी पर पर्यावरण व साहित्य पर वार्ताओं का प्रसारण किया जा चुका है।
कई बाल रंग शिविरों का आयोजन एवं नाटकों का निर्देशन किया गया है।
म. प्र. माध्यम द्वारा ’प्रदेश का प्रतिभाऍं‘ के तहत नामांकित किया गया है।
देश के विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर सौ के लगभग लेख, लघुकथाऍं, व्यंग्य, ललित निबंध, कविताऍं प्रकाशित हो चुकी है।
मानव संसाधन मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा संचालित वर्ल्ड बैंक तथा डी. एफ. आई. डी. द्वारा पोषित स्वशक्ति परियोजना में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
अनुसूचित जाति विकास संचालनालय, म.प्र. शासन द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय नुक्कड नाटक लेखन स्पर्धा में पुरस्कार प्राप्त किया तथा जिसे संचालनालय द्वारा पुस्तक स्वरुप में प्रकाशित किया गया है।
मध्यप्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण समिति द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय निबंध स्पर्धा में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
विनोद चौपडा प्रोडक्शन (विधु विनोद चौपडा) द्वारा '१९४२: ए लव स्टोरी' फिल्म की समीक्षा हेतु आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में विशेष पुरस्कार मिल चुका है।
राजीव गांधी जलग्रहण प्रबंधन मिशन में ’परियोजना समन्वयक‘ की हैसियत से कार्य किया है।
स्कूल स्तर से ही अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक कार्यों में सक्रीय भागीदारी दी है।
संप्रतिः स्वतंत्र पत्रकारिता।

संपर्क: लोकेन्द्रसिंह कोट २०८-ए, पंचवटी कॉलोनी, पार्क नं.-३, फेज-१, एयरपोर्ट रोड, भोपाल- ४६२००१ (मध्यप्रदेश)
मोबाईल- ०९४०६५४१९८०
ई-मेलः lokendrasinghkot@yahoo.com

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7 Responses to लोकेन्द्र सिंह कोट की पाँच कविताएँ

  1. लोकेन्द्र सिंह की सभी कविताओं में जीवन का अलग ही दर्शन झलकता है. लेखक को बहुत बहुत बधाई.

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  2. लोकेन्द्र सिंह की कवितायों से रूबरू करवाया. एक नए नज़रिए से मुलाक़ात हुई

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  3. बहुत अच्छी कविताएं।

    *** हिंदी भाषा की उन्नति का अर्थ है राष्ट्र की उन्नति।

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  4. Lokendr aasha aur vishvas jagaate hain. unkee kavitaon men aam aadami ke prti pakshdharataa dikhaayee padatee hai. achchhhee kavitaaon ke liye aakkhar kalash kee team ko saadhuvaad.

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  5. छोटी-छोटी कविताओं में भी बड़ी गहराई है, बधाई |

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  6. लोकेन्‍द्र से पुराना परिचय है। उनकी कविताएं यहां देखकर अच्‍छा लगा। कविताएं हैं भी अच्‍छी। विश्‍वास कविता के बाद वाली कविता का शीर्षक टाइप होने से शायद रह गया है। शीर्षक शायद होगा घर।
    एक बात कहना चाहता हूं कि कवि के इतने लम्‍बे और विस्‍तृत परिचय की जरूरत यहां नहीं थी। सही कहूं तो वह एक तरह का आतंक पैदा करता है। अगर किसी को यह परिचय चाहिए तो उसकी लिंक दी जा सकती है।
    आखर कलश पर कवि और कविताओं का चुनाव करते समय थोड़ी गुणवत्‍ता का भी ध्‍यान रखा जाए तो बेहतर है।

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  7. बेहतर...
    कविताओं से बड़ा परिचय-वृत....

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