फ़ज़ल इमाम मल्लिक की दो कविताएँ

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

नोट: बिहार के बाल्मिकी नगर (पश्चिम चंपारण) में वत्सल निधि लेखक शिविर में हिस्सा ले रहे लेखक-कवियों को अज्ञेज जी ने दस शब्द दिए और कविता लिखने को कहा था। उन्होंने कहा था कि इन शब्दों का इस्तेमाल कर कविता लिखी जाए। यह छूट ज़रूर थी कि इन शब्दों को जितनी बार चाहे इस्तेमाल किया जा सकता है, एक बार की अनिवार्यता तो उनकी शर्त ही थी। उन्होंने जो शब्द दिए थे, वे थे: भोजन, चाय, मोटर, पंडित, साढ़े तीन, फिरौती, हमारी, रास्ते और निर्जल।



कहानी

और अचानक कहानी सुनाते-सुनाते
ख़ामोश हो गई हैं बूढ़ी नानी !
और कहानी सुनता हुआ बच्चा
टुकुड़-टुकुड़ ताक रहा है नानी को
नानी को क्या हो गया है
सोचता है बच्चा !
परेशान होता है बच्चा !
क्यों नहीं सुनाती है नानी
उस देश की कहानी
जहां की प्रजा सुखी थे
और राजा-रानी मोहब्बतवाले

जहां हर ओर सुख-शांति थी
और आदमी
आदमी से प्यार करता था
जहां मंदिर-मस्जिदों के झगड़े नहीं थे
जहां होली में दाढ़ियाँ रंगी होती थीं
और ताज़िया में हिंदुओं के कंधे लगे होते थे

उस देश की कहानी
जहां कोई राक्षस नहीं था
कोई किसी के सपने
किसी की ख़ुशियां
नहीं चुराता था
उस देश की कहानी
जहां का राजा
प्रजा के हर सुख दुख में शामिल होता
हां! उस देश की कहानी

पर नानी चुप है
खो गया है उसके कहानियों वाला देश
खो गए हैं वे राजा, वे रानी, वे लोग
और खो गई है नानी की वह कहानी
नानी को पता है
बदल गए हैं राजा-रानी
बदल गया है देश
और तब से ख़ामोश है कहानी वाली बूढ़ी नानी
बूढ़ी नानी अब किसी को कहानी नहीं सुनाती

***

मुनिया 

चौंक उठता हूं
साढ़े तीन का गजर बजते ही
हां ! यही वह वक्Þत था
जब कुछ लोग आए थे मोटर में
और हमारी आंखों के सामने
उठा कर ले गए थे मुनिया को
न तो पंडित ने मंत्र पढ़े थे
न शहनाई बजी थी
न कन्यादान हुआ था
और न ही डोली उठी थी

सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि
बस आवाक सा देखते रह गए थे हम
मुनिया को उस अंधेरे रास्ते पर जाते
जहां फिरौती जैसे शब्द भी
बेमानी से लगते हैं

अब जबकि सारे संज्ञा-विशेषण
मुनिया के साथ चले गए हैं
और जीवन एक निर्जल नदी सी बन गई है
क्योंकि जानता हूं मैं कि
समय पर चाय-भोजन देने वाली
मुनिया
उजाले में लौट कर
अब नहीं आएगी

*******


रचनाकार परिचय
नाम- फ़ज़ल इमाम मल्लिक
जन्म- 19 जून, 1964 को बिहार के शेखपुरा जिला के चेवारा में।
पिता/माता- जनाब हसन इमाम और माँ सईदा खातून।
शिक्षा- स्कूली शिक्षा श्री कृष्ण उच्च विद्यालय, चेवारा (शेखपुरा)। इंटर रांची युनिवसिर्टी के तहत रांची कालेज से । ग्रेजुएशन भागलपुर युनिवसिर्टी के रमाधीन कालेज (शेखपुरा)। व्यवसायिक शिक्षा पटना के आईआईबीएम से होटल प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएशन।
लेखन- उर्दू और हिंदी में समान रूप से लेखन। लघुकथाएँ, कविता, कहानी, समीक्षा और सम-सामयिक लेखन। साहित्य-संस्कृति पर नियमित लेखन।
पत्रकारिता- लंबे समय से पत्रकारिता। 1981 से जनसत्ता में बतौर खेल पत्रकार करियर की शुरुआत। इससे पहले सेंटिनल (गुवाहाटी), अमृत वर्षा (पटना), दैनिक हदिुंस्तान (पटना) और उर्दू ब्लिट्ज (मुंबई) से जुड़ाव। बतौर खेल पत्रकार विश्व कप क्रिकेट, विश्व कप हाकी, एकदिवसीय व टैस्ट क्रिकेट मैचों, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फुटबाल मैचों, राष्ट्रीय टेनिस, एथलेट्किस वालीबाल, बास्केटबाल सहित दूसरे खेलों की रिपोर्टिंग।
इलेक्ट्रानिकमीडिया- एटीपी चैलेंजर टेनिस, राष्ट्रीय बास्केटबाल, कोलकाता फुटबाल लीग, राष्ट्रीय एथलेटिक्स का दूरदर्शन के नेशनल नेटवर्क पर लाइव कमेंटरी। कविताएँ-इंटरव्यू दूरदर्शन पर प्रसारित। आकाशवाणी के लिए लंबे समय तक सहायक प्रोड्यूसर (अंशकालिक) के तौर पर काम किया। कविताएँ-कहानियाँ कोलकाता व पटना, गुवाहाटी के आकाशवाणी केंद्र से प्रसारित।
प्रकाशन- लधुकथा संग्रह मुखौटों से परे और कविता संग्रह नवपल्लव का संपादन।
संपादन- साहित्यक पत्रिका श्रृंखला व सनद का संपादन।
सम्मान- साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए कवि रमण सम्मान, रणधीर वर्मा स्मृति सम्मान, सृजन सम्मान और रामोदित साहु सम्मान।
संप्रति- जनसत्ता में वरिष्ठ उपसंपादक।

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10 Responses to फ़ज़ल इमाम मल्लिक की दो कविताएँ

  1. फ़ज़ल की दोनों कविताएं बेहद अच्छी लगीं ।

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  2. वाह, बहुत ही खूबसूरत हैं दोनों रचनाएं...
    फ़ज़ल इमाम साहब को मुबारकबाद.

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  3. Bahut hee sundar shilp k sath hai ye rachnae.dhanywad.....

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  4. Phajal bhaai is baar binaa shak main kahoonga ki donoon hee rachanaayen achchhee hain. donon jeevan ke us marm ko bhedatee hain jo har kisee ka saajhaa hai. badhaai.

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  5. फज़ल इमाम साहब,
    आपने अनुभवों के साथ कविता में जान ही दी है.... !
    ये चीज कहाँ मिलाती है... दोस्त !

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  6. बहुत सुंदर कविताएं ,भावनाओं को बड़ी ही सहज और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया गया है
    फ़ज़ल इमाम साहब बधाई स्वीकार करें

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  7. दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं - समसामयिक और गहरे सन्देश लिए हुए.

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  8. दोनों ही कविताएं जैसे आपस में कहीं न कहीं जुडी हुई है, हर पाठक के मन में छुपे एक छोटे से बच्‍चे के भी दिल की बात कविता कहती है, इमाम साहब दुनिया बदल गई है, लेकिन पहले सी जमीं, आसमां लाएं तो लाएं कहां से, आईये हम बुनना आरम्‍भ करें एक परचम को जिसके नीचे कहानी वही हो नानी दादी वाली, और चौंके नहीं हमारी आने वाली पीढी

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  9. फज़ल साहब को पढ़वाने का आभार.

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