मकेश कुमार सिन्हा की कविता- वो बचपन !

रचनाकार परिचय:
नाम: मुकेश कुमार सिन्हा
जन्म स्थान : बेगुसराई (बिहार)
शैक्षणिक  योग्यता: स्नातक (विज्ञानं), PGD ग्रामीण विकास
जनम तिथि: ०४.०९.१९७१
मुकेश कुमार जी अपने बारे में कहते हैं कि "मैं मुकेश कुमार सिन्हा झारखंड के धार्मिक राजधानी यानि देवघर (बैद्यनाथ धाम) का रहने वाला हूँ! वैसे तो देवघर का नाम बहुतो ने सुना भी न होगा, पर यह शहर मेरे दिल मैं एक अजब से कसक पैदा करता है, ग्यारह ज्योतिर्लिंग और १०८ शक्ति पीठ में से एक है, पर मेरे लिए मेरा शहर मुझे अपने जवानी की याद दिलाता है, मुझे अपने कॉलेज की याद दिलाता है और कभी कभी मंदिर परिसर तथा शिव गंगा का तट याद दिलाता है.......तो कभी दोस्तों के संग की गयी मस्तियाँ याद दिलाता है.......काश वो शुकून इस मेट्रो यानि आदमियों के जंगल यानि दिल्ली मैं भी मिल पाता ....पर सब कुछ सोचने से नहीं मिलता......और जो मिला है उससे मैं खुश हूँ........ क्योंकि इस बड़े से शहर मैं मेरी दुनिया अब सिमट कर मेरी पत्नी और अपने दोनों शैतानों (यशु-रिशु)के इर्द-गिर्द रह गयी है.........और अपने इस दुनिया में ही अब मस्त हूँ.........खुश हूँ !" आज प्रस्तुत है मुकेश कुमार जी का एक और रूप उनकी कविता के रूप में......
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जाड़े की शाम
धुल धूसरित मैदान
बगल की खेत से
गेहूं के बालियों की सुगंध
और मेरे शरीर से निकलता दुर्गन्ध !
तीन दिनों से
मैंने नहीं किया था स्नान
ऐसा था बचपन महान !
.
दादी की लाड़
दादा का प्यार
माँ से जरुरत के लिए तकरार
पढाई के लिए पापा-चाचा की मार
खेलने के दौरान दोस्तों का झापड़
सर "जी" की छड़ी की बौछाड़
क्यूं नहीं भूल पाता वो बचपन!!
.
घर से स्कूल जाना
बस्ता संभालना
दूसरे हाथों से
निक्कर को ऊपर खींचे रहना
नाक कभी कभी रहती बहती
जैसे कहती, जाओ, मैं नहीं चुप रहती
फिर भी मैया कहती थी
मेरा राजा बेटा सबसे प्यारा ..
प्यारा था वो बचपन सलोना !
.
स्कूल का क्लास
मैडम के आने से पहले
मैं मस्ती में कर रह था अट्टहास
मैडम ने जैसे ही मुझसे कुछ पूछा
रुक गयी सांस
फिर भी उन दिनों की रुकी साँसें ,
देती हैं आज भी खुबसूरत अहसास !
वो बचपन!
.
स्कूल की छुट्टी के समय की घंटी की टन टन
बस्ते के साथ
दौड़ना , उछलना ...
याद है, कैसे कैसे चंचल छिछोड़े
हरकत करता था बाल मन
सबके मन में
एक खास जगह बनाने की आस लिए
दावं, पेंच खेलता था बचपन
हाय वो बचपन!
.
वो चंचल शरारतें
चंदामामा की लोरी
दूध की कटोरी
मिश्री की चोरी !
आज भी बहुत सुकून देता है
वो बचपन की यादें
वो यादगार बचपन!

*******

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16 Responses to मकेश कुमार सिन्हा की कविता- वो बचपन !

  1. आपने एक आम आदमी के बच्चे के बचपन का सटीक चित्रण किया है बधाई

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  2. woh yaadgar bachpan....
    har padhne wale ke samaksh uska bachpan sajeev kar dene wali saral sahaj aur pravahpurna kavita!
    subhkamnayen:)

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  3. बहुत अच्छी रचना...बिलकुल लडको वाली शरारते सच सच लिख दी..बहुत कुछ याद दिला गयी.

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  4. Kaise nisargramy sthaan pe aap le gaye! Bachpanke manzar yaad aa gaye!

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  5. बचपन की यादें किसे याद नहीं रहती.........

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  6. बचपन की याद को खूबसूरती से पेश किया है...
    बधाई.

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  7. बहुत सुन्दर. ऐसा ही होता है बचपन.

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  8. मुकेशजी की यादें अच्छी हैं. ऐसा अक्सर कभी न कभी हम सबके साथ घटित हुआ है. ये केवल यादें हैं, इन्हें कविता में बदलने के लिये जिस कसावट की जरूरत है, वह कवि में अभी आनी है. कविता इन यादों की अर्थवत्ता अगर केवल याद में खोजती है, तो कवि अपने समय से दूर सरक जाता है. इस तत्व की भी कमी यहां दिखती है.

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  9. Sabse pahle "aakhar kalash" ko bahut bahut dhanyawad jo unhone meree yaadon ko aapne sthan diya.........:)

    Dr. Subhash Rai, Sir!! main aapke baaato se purntah sahmat hoon..........acually mere me sayad abhi wo kaviyon wala gun panap hi nahi paya hai. haan bas aap jaiso ko dekh kar, koshish kari hai.........mujhe khushi hai, aapne meri galtiyon par najar dala.....:0

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  10. aapki ye bachpan kavita padh kar mujhe apne school ke sare sararat yaad aa gaye , aur bite din ek ajeeb si sukun bhi deti hai jab bachpan ke sararat yaad aate haste 2 aankhen nam ho jati hain........

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  11. घर से स्कूल जाना
    बस्ता संभालना
    दूसरे हाथों से
    निक्कर को ऊपर खींचे रहना
    नाक कभी कभी रहती बहती
    जैसे कहती, जाओ, मैं नहीं चुप रहती
    फिर भी मैया कहती थी
    मेरा राजा बेटा सबसे प्यारा ..
    प्यारा था वो बचपन सलोना !
    .
    Mukesh jee kya kahun bas kho gayi bachpan, main.

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  12. आह .. बचपन के दिन भी क्या दिन थे ... खूबसूरत यादें .........

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  13. bachpan jeevan ka sabse achchha samay aur iski yade amrit kalash..jab man ho udas yado ke kuchh chhente dalo aur tarotaza....

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  14. bachpan ki baaten suhaani yaadein, bahut achha laga aapki rachna ko padhkar apna bachpan yaad karna. sundar abhivyakti keliye badhai mukesh ji.

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  15. बचपन की याद की बेहतरीन अभिव्यक्ति .

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  16. hii
    es kavita ko pad kar apna bachpan yaad aaya or abhi tu apne bittu ka bachpan bhi yaad aa jata hai bachche bade ho kar chale jate hai par yaad rah jate hai.bachpan yaad karna bahut achcha lagta hai. bahut hi achche kavita hai

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