सुनील गज्जाणी की तीन लघु कविताएँ















वो
(१)
वो अपना प्रेम पत्र लिखने के लिए
कई पन्ने रद्दी कर चुका
और, ये बीनता रहा चूल्हे की आग के लिए


(२)
वो मंदिर के पथ की ओर हमेशा जाता है
मगर मूर्ती के दर्शन कभी नहीं करता
रुक जाता है परिसर में
भूखों को खाना खिलाने
वृद्धों की सेवा करने
असहायों की मदद करने
वो, इश्वर को प्रत्यक्ष देखना चाहता है!


(३)
पंडित जी
छूआछूत के पक्षधर हैं
अपने प्रवचन में कही ना कही
ऐसा प्रसंग अवश्य लाते हैं
मगर
मंदिर अछूत
बस्ती से गुज़र कर ही
आते हैं वो !

*****

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33 Responses to सुनील गज्जाणी की तीन लघु कविताएँ

  1. वाह सुनील जी, कमाल का लेखन है..
    वो कहा है न...देखन में छोटे लगे....
    बहुत बहुत शुभकामनाएं.

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  2. वाह गज़ाणी !
    वाह गज़ाणी !
    आं कवितावा में
    खूब है
    आणी-जाणी !

    ReplyDelete
  3. सुनील जी,
    अभी
    सर्दी भोत दूर है
    कोट उतार देवो !
    गर्मी लागती होसी !!

    कोई और
    फ़ोटू लगाओ आई.डी. में !
    आवक्ष चित्र !
    क्लोजप !

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  4. कमाल कि रचनाएँ है, बेहतरीन!

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  5. sunil ji kafi dinon baad aapki rachnaayen padhi.. chintan ko prerit kar gai rachnaayen.. ye panktiya behand prabhavit kar gai...:
    "वो मंदिर के पथ की ओर हमेशा जाता है
    मगर मूर्ती के दर्शन कभी नहीं करता
    रुक जाता है परिसर में
    भूखों को खाना खिलाने
    वृद्धों की सेवा करने
    असहायों की मदद करने
    वो, इश्वर को प्रत्यक्ष देखना चाहता है!"

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  6. बहुत ही अच्छी है। पर है क्या? लघु कथा,अतिलघुकथा, कविता, व्यंग्य,क्षणिका ..। कितनी विधाएं शामिल है एक विधा में .जो जिस रूप में पढना चाहे। यही तो कमाल हसिल है आप को।

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  7. बहुत ही अच्छी है। पर है क्या? लघुकथा, अतिलघुकथा, कविता, व्यंग्य,क्षणिका..? कितनी विधाएं शामिल है एक विधा में। जो जिस रूप में पढना चाहे। ये कमाल भी बस आप को आता है।

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  8. बहुत उम्‍दा लघु कवितायें।
    बधाई

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  9. सुनील भाई कविताओं का विषय बहुत तीखा है। पर मुझे लगता है थोड़ी मेहनत और संपादन की जरूरत है,जिससे कसाव पैदा हो। अभी कविताएं बिखरी बिखरी लगती हैं। भाई ओमपुरोहित ने इन कविताओं को फिर से लिखा है। पर मुझे नहीं लगता है कि इतने विस्‍तार की जरूरत है। उदाहरण के लिए आपकी आखिरी कविता अगर इस तरह हो तो ज्‍यादा प्रभाव छोड़ेगी-


    वे
    छूआछूत के पक्षधर हैं
    अपने प्रवचन में कही ना कही
    ऐसा प्रसंग अवश्य लाते हैं
    मगर
    प्रवचन के लिए
    अछूत बस्ती से गुज़र कर ही
    जाते हैं ।

    सुनील भाई शायद आपको यह जानकारी भी होगी कि हरिजन शब्‍द का उपयोग अब कानूनन जुर्म है।

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  10. Dear Sunil ji..
    this poetry is very simple and very rich with your vision so thanks for this poetry. i am happy i have read your this poetry from your blog , my best wishes and thanks if you have change the 2 poetry concept i like it.
    keep it up you are going well.
    yogendra kumar purohit
    M.F.A.
    BIKANER,INDIA
    http://yogendra-art.blogspot.com

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  11. यह चकित करती लघु कविताएँ हैं, ठ जमीनी अंदाज में हैं भावावेग से भरी कविताएं। कविताएं पाठक के मन को छू लेती है और कवि की सामर्थ्‍य और कलात्‍मक शक्ति से परिचय कराती है। समकालीन जीवन और समाज पर कवि की दृष्टि पैनी है....तभी तो कहा है कि ......
    १. वो, इश्वर को प्रत्यक्ष देखना चाहता है!
    २. मंदिर हरिजन बस्ती से गुज़र कर ही
    आते हैं वो !

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  12. wah sunil sir, wah..............chha gaye sir!! bahut pyari rachna!

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  13. प्रिय सुनील,
    कितना पैनापन है इन कविताओं में ! कहेने को तो बहुत कह सके मगर मन करता है इन कविताओं को अपने मन-ह्रदय के पिटारे में बंद कर दूं | कोइ शब्द नहीं |

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  14. अर्थपूर्ण कविताएँ.शुभकामनाएँ.

    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com

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  15. "मूर्ती के दर्शन कभी नहीं करता
    रुक जाता है परिसर में
    भूखों को खाना खिलाने
    वृद्धों की सेवा करने"
    यथार्थ की गलियों से गुजरती आपकी क्षणिकाएँ बेहद सुंदर एवं मार्गदर्शी है . मन को छूकर जाती हुई रचनाएँ .

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  16. Sunil ji
    Bahut badhiya vichar prastut kiye
    samaj ko disha di hai

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  17. bahut achchhe vichar hain Suneeljee. man prasann hua in chhotee rachanaon ke badepan se. ham sab isee tarah sochenge to usakaa asar to logon par padega, yahee inkee saarthakata hai. badhaaiyan.

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  18. पसंद आई तीनों कवितायें.

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  19. ACHCHHEE KAVITAAON KE LIYE BADHAAEE AUR SHUBH
    KAMNA.

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  20. मन को छूती रचनाएँ .

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  21. तीनों लघु कवितायें..संयत, स्पष्ट, भावपूर्ण और सदियों से अंधे समाज को धक्का देकर हिलाने वाली है..बधाई.

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  22. बहुत अच्छी और प्रभावकारी कविताएं हैं। सुनील जी को बधाई !

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  23. तीनों ही टुकडे..ऐसे मानो भीतर तक बींध कर सब टुकडे टुकडे कर देने वाले ..........बेहतरीन सोच का परिचायक

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  24. @ वो, इश्वर को प्रत्यक्ष देखना चाहता है!

    @ मंदिर अछूत बस्ती से गुज़र कर ही
    आते हैं वो !

    वाह...वाह....क्या बात है .....!!
    लाजवाब ......!!

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  25. aapki ye chhoti chhoti kavitayen mujhe achhi lagi.
    Harmohinder Chahal

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  26. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  27. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  28. सुनील जी
    अच्छी लघु कविताओंके लिए बधाई !



    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  29. आपके ब्लॉग पर आकर बहत अच्छा लगा! बहुत सुन्दर, शानदार, भावपूर्ण और लाजवाब लघु कवितायेँ लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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