ममता किरण के तीन गीत

रचनाकार परिचय:
ममता किरण समकालीन हिंदी कविता की एक सुपरिचित कवयित्री। हिंदी की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, लेख, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित। रेडियो, दूरदर्शन तथा निजी टी वी चैनलों पर कविताओं का प्रसारण। अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों एवं मुशायरों में शिरकत। अंतर्जाल पर हिंदी की अनेक वेब पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। इसके अतिरिक्त रेडियो-दूरदर्शन के लिए डाक्यूमेंटरी लेखन। आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग में समाचार वाचिका तथा विदेश प्रसारण सेवा में उदघोषिका, आकाशवाणी की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा में कार्यक्रम प्रस्तोता(अनुबंध के आधार पर)। ''मसि कागद'' पत्रिका के युवा विशेषांक का संपादन।

सम्मान: दूरदर्शन की एक डाक्यूमेंटरी के लिए अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, परिचय साहित्य परिषद् द्बारा साहित्य सृजन सम्मान तथा सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओं की संस्था कवितायन द्बारा साहित्य सम्मान से सम्मानित।
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गीत .

भीगा
भीगा मन डोल रहा
इस
आँगन से उस आँगन !

यादों
की अंजुरी से फिसले
जाने
  कितने मीठे लम्हे
लम्हों
में दादी नानी है   
किस्सों
की अजब कहानी है

उन
गलियों में कितना कुछ है
मन
खोज रहा है वो बचपन !

वो
प्यारी तकरारें माँ से
वो
झगड़े भाई बहनों के
उन
झगड़ो का सोंधापन है 
गूंजा
गूंजा सा हर क्षण है

उन
खट्टी मीठी यादों में
सुध
बुध भूला है ये तन मन !

छुप
छुप मिलने के वो मौके
लगते
खुशबू के से झोंके
उन
झोंके में एक सिहरन है
मेहँदी
का भी गीलापन है

उन
मस्त हवाओं की सन सन
मन
ढूंढ रहा है वो सावन !


गीत
.

भोर
ने जब आँख खोली
लालिमा
थी संग
एक
किरण फूटी रुपहली
कर
गयी श्रृंगार !

भोर
के माथे है सूरज
रूप
किरणों से सजा है
भोर
की उस गोद में
माँ
के आँचल  सा मजा है

भोर
  का  स्पर्श मन में
कर
गया झंकार !

बांग
मुर्गा दे रहा है
घंटियों
की हें सदाएं
भोर
के आँचल ने दी है
प्यार
से अपनी दुआएं

भोर
दस्तक दे रही है
हर
किसी के द्वार !

भोर
का आँगन खिला है
पक्षियों
का है चहकना
बूटा
बूटा खिल उठा है
संग
फूलों का महकना

भोर
का दामन पकड़
दिन
को करें हम पार !


गीत
.

मेघ
छाए हुए हैं
है
बरसने को घटा घनघोर !

हवा
ने करवट बदली
झूम
उठे भंवरे खिली कलियाँ
उड़े
पत्ते जो मन के
खोज
रहे कुछ अक्स कुछ गलियाँ

चाँद
उतरा ज़मी पर
मच
रहा है शोर चारों ओर !

अलगनी
पर पसरे हैं
मन
के कुछ भीगे हुए कपड़े
घुंघरुओं
की आहट है
जाग
उठे मन के सोये सपने

महक
सोंधी सी आये
झूम
रहा खुश होकर ये मनमोर !

सांसें
दोहरा रही हैं
प्रीत
के वो कुछ अनूठे क्षण
देह
सकुचा रही है
इन्द्र
धनुषी रंग रंगा है तन

बादलों
की गर्जन संग
मंच
रहा है भीतर भीतर शोर !

***
-ममता किरण
संपर्क: 304, लक्ष्मीबाई नगर, नई दिल्ली-110023
ई मेल: mamtakiran9@gmail.com

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14 Responses to ममता किरण के तीन गीत

  1. घर-आँगन,भोर, मेघ, हवा,बादल ममता किरण के इन गीतों में इस प्रकार गुंजरित हुए हैं कि पाठक पढ़ते समय स्वयं इनसे जुड़े अहसासों से अनायास घिर उठता है। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! बधाई !
    -सुभाष नीरव

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  2. wah...wah ljavab giton ke liye mubarkbad mamta sahiba

    ReplyDelete
  3. ममता किरण जी रचनाएँ पढ़वाने का आभार.

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  4. ममता किरण के तीनों गीत अलग रंग लिए हुए हैं। कभी ये बचपन की गलियों में ले जाते हैं तो कभी भोर की उँगली पकड़कर दिन के पार चले जाने का माद्दा जगाते हैं। इन गीतों में भीतर-भीतर शोर मचा देने और उसे सुन सकने की ताकत देने का गुण मौजूद है।

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  5. अति सुन्दर......... अभिव्यक्ति ।
    आपकी रचनाएं पढ़कर हॄदय गदगद हो गया।
    भाव-नगरी की सुहानी वादियों में खो गया॥
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  6. साधारण से...सहज से गीत...

    ReplyDelete
  7. Mamata jee ke leeno geeton men pahala mujhe bheetar tak chhoo gaya. bachapan men lauta le gaya. yah is geet kee safalata hai, shrshthata hai. yadon ko sanjokar rakhana ek cheej hai aur yadon ko lay de dena bilkul doosaree cheej. Mamata ko ismen kaamyabee mili hai. meree taraf se bahut-bahut badhaaiyan.

    ReplyDelete
  8. तीनों कविताएं बेहतरीन हैं.

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  9. धन्यवाद!
    ममता जी के गीत पसंद आये. बधाई!

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  10. Prakruti ke soundary ko samete sunder bhavpoorn geet.

    ReplyDelete
  11. नैसर्गिक माधुरी,आन्तरिक सरस अनुभव और सुन्दर अभिव्यक्ति ।
    सब मनोज्ञ एवं आकर्षणीय हैं ।
    बहुत अभिनन्दन ।

    हरेकृष्ण मेहेर,भवानीपाटना,ऒड़िशा ।

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  12. ममता जी के गीत अच्छे लगे। इनमें जीवन और प्रकृति के बड़े ख़ुबसूरत अक्स हैं।

    देवमणि पाण्डेय (mumbai)

    ReplyDelete
  13. बचपन की मीठी यादें , प्रकति से गुफ़्तगू , बारिश की मिट्टी की सौंधी महक ....
    तीनो ही गीत अपनी सरल और सहज अनुभूति लिये दिल को छू गये ।

    ReplyDelete

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