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बेहतर...
ReplyDeleteशाहिद अखतर की कवितायें छापने के लिये आखर कलश को सलाम...कविता की समकालीन संदर्भों मे व्याख्या करती है पहली कविता..जिस कविता में जीवन का दर्प नहीं वह कविता कैसे हो सकती है..छलावा हो सकता है और छलावा करने वाले को जादुगर कहा जाता है कवि नहीं.
ReplyDeleteइस सुंदर परिभाषा के लिए और तितली की महत्ता..संकर जीवन की गलियों मे पीछे छूटते जा रहे मासूम स्वप्न, जिदंगी की सादगी और उसे टटोलती तितली की ख्वाईश..एक अच्छी काव्याभिव्यक्ति है. बधाई स्वीकार करें.
सादर
दोनों कवितायेँ बहुत उम्दा! आखर कलश की प्रतिष्ठा के अनुरूप ! यादों की तितलियाँ.. नया बिम्ब है... कविता के सृजन प्रक्रिया का दर्द बहुत सहजता से व्यक्त किया गया है! अदभुद !
ReplyDeletebehatareen!
ReplyDeleteअच्छी साज - सज्जा के साथ अच्छी कविताएं
ReplyDeleteबधाई नरेन्द्रजी , सुनीलजी और शाहिद अख्तरजी को !
…लेकिन , मात्राओं सहित शिल्पगत सावधानियां भी रखी जा सकतीं तो और अच्छा रहता ।
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
सपनो में मै खो जात हूं
ReplyDeleteरंग बिरंगी आती तितली
छूने को फ़िर मन करता है
उसकी सुंदर पंखडियों को
मीठा-मीठा लमस है उसमें
और सुलगता अपनापन भी
आंखे मेरी गीली होतीं
यादें उसकी रहती मन में
बचपन होता तितली जैसा
यादें मेरी ताजा होती
जीवन टूटे पंखो जैसा
मैं खुद खोजूं हूं बचपन को
दोनों कविताएं बहुत पसंद आई
ReplyDeleteलेखक के साथ साथ आपको भी बधाई.
तितलियां वक्त की तरह हैं
ReplyDeleteयादें छोड़ जाती हैं
खुद याद बन जाती हैं
SACH !
kavita ka ras inmai bhi kam samaj pada meri budhi moti hai...ha
ReplyDeleteअच्छा है...भाषा की खबरों से कविता की भाषा तक का सफर...बधाई...सही कहा आपने उस्ताद...कविता में हमारा पसीना, हमारी गंदगी, हमारे पेशे की गंध...सब कुछ होना चाहिए...और ऐसी कविता के लिए जरूरी भाव-शिखर तक पहुंचना दाल-भात पकाने का मामला नहीं है...
ReplyDeletebadhia.........shandaar prastuti......
ReplyDeletekhoobsurat kavitaen h...
ReplyDeleteshahid ji ko badhai...
aakhar kalash bhi is chayan hetu saadhuwad ka paatr h..
बेहतरीन प्रस्तुति॥कविता करना भिन्न है ,बहुत भिन्न॥बधाई॥
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...वाकई॥कविता करना दाल,,भात पकाने जैसा नहीं...बधाई॥
ReplyDeleteशाहिद साहब की कविताओं से गुज़रना एक तरह से विडंबनाओं, घटियापन, पाखंड, मौकापरस्ती से भरे मध्यवर्गीय समाज में किसी संवेदनशील और ईमानदार व्यक्ति की साफ़गोई को जानना है.जहां दुःस्वप्न भरी अकेलेपन की उदासी है ।
ReplyDeleteइसे पढ़ें:
अथ भारतीय खेल कथा द्वारा ईशान http://hamzabaan.blogspot.com/2010/07/blog-post_28.html
शहरोज़
कविता और तितलियों की बात करती हुई शानदार कवितायेँ !!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteकवि को ढेर सारी शुभकामनाएं ..........
कविता और तितलियों की बात करती हुई शानदार कवितायेँ !!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteकवि को ढेर सारी शुभकामनाएं ..........
काफी बेहतर लिखा है भाई ने, बहुत बहुत बधाई..
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