जया शर्मा का आलेख - रोको! मत बढने दो जनसंख्या !

विश्व जनसँख्या दिवस पर विशेष
आइए फिर से याद करें कि विश्व जनसंख्या दिवस जुलाई महीने की ११ तारीख को मनाया जाता है। कुछ गोष्ठियां व सम्मलेन के माध्यम से जनसंख्या की भयावहता पर विचार करते हैं। हर दिवस की भांति इसको भी अगले एक साल तक भुला दिया जाता है, जब तक यह दिन दोबारा न आए। विश्व की आबादी भी दिन दूनी और रात चौगुनी बढ रही है और इसे रोकने के लगभग सारे प्रयास विफल साबित हो रहे हैं।

      अठारहवीं शताब्दी के अन्त में इंग्लैड के अर्थशास्त्री टामस माल्थस ने इस ओर संकेत किया। उनका विचार था कि एक निश्चत समय में किसी स्थान की खाद्य सामग्री के उत्पादन में जितनी वृद्धि होती है, उससे कई गुनी अधिक जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि जनता के लिये पर्याप्त रुप से खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं होती। आज के युग में मानव के पास अपने पूर्वजों के उत्तराधिकार के रुप में यदि कोई निधि है, तो वह है परिवार। परिवार मानव की वह पूँजी है, जिसकी स्थापना उसने सृष्टि के प्रारम्भिक क्षणों में सभ्यता के उदय के साथ-साथ की थी। वह अपना परिवार और उसकी वृद्धि देखकर प्रसन्नता से खिल उठता था।

      पहले भारत में छोटे-छोटे परिवार होते थे ,जिनका नियंत्रण और व्यवस्था सरलता से की जा सकती थी। यही दशा विदेशों में भी थी। परन्तु आज इसके विपरीत दिखाई पड रहा है। एक आदमी के कई बच्चे होते हैं, उनका पालन-पोषण करते करते बेचारा मनुष्य जीवन से भी ऊबने लगता है। यही कारण है कि विश्व की जनसंख्या उत्तरोत्तर बढती जा रही है। मनुष्य का जीवन संघर्षमय और अशांत होता जा रहा है। इसलिये प्राकृतिक प्रकोप से जनसंख्या में कमी की जाती है।
देश को समृद्धिशाली बनाने के लिये जहाँ सरकार ने अनेक योजनाओं को जन्म दिया है , मसलन परिवार-नियोजन, जननि सुरक्षा योजना, बाल-सुरक्षा योजना आदि को सभी देशवासियों के लिये प्रस्तुत किया है। देश की जागरुक जनता परिवार कल्याण की दिशा म स्वयं अग्रसर हो रही है और प्रेम से सोए हुओं को जगाया जा रहा है। क्योंकि इसी में अपने परिवार और देश का कल्याण निहित है। देश वासियों ने, विशेष रुप से प्रबुद्ध वर्ग ने यह अच्छी तरह समझ लिया है कि छोटे परिवार में ही बच्चों की देखरेख, शिक्षा-दीक्षा एवं उनके भविष्य का सुन्दर निर्माण हो सकता है तथा देश को बरबादी से बचाया जा सकता है। छोटा परिवार, सुखी परिवार होता है।

परिवार नियोजन से माँ के स्वास्थ्य में सुधार होता है, लिंग समानता बढती है और गरीबी कम होती है, जिससे परिवारों, समुदायों और राष्ट्रों की स्थिति बेहतर होती है । एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में ६.७ अरब लोग हैं और अगले ४० वर्षों र्में यह संख्या बढ कर ९.२ अरब होने की उम्मीद है। बहुत सारे अवांछित बच्चे  होंगे और परिवारों की मुश्किलें बढ जाएंगी । रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में करीब २० करोड महिलाओं का कहना है कि वे गर्भधारण में विलंब करना चाहती हैं या उसे रोकना चाहती हैं, लेकिन वे कोई कारगर गर्भ-निरोधक इस्तेमाल नहीं कर रही हैं । परिवार नियोजन से माँओं और उनके शिशुओं के जीवन पर अच्छा प्रभाव पडता है । शोध से पता चला है कि प्रत्येक वर्ष माताओं की होने वाली पांच लाख मौतें कम होकर एक-तिहाई हो सकती हैं तथा २७ लाख शिशुओं की प्रतिवर्ष होने वाली मौतों को भी रोका जा सकता है ।

      १९६० में केवल पांच प्रतिशत महिलाएं गर्भ-निरोधकों का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन २००० में यह संख्या बढ कर ६० प्रतिशत हो गई । यह एक अच्छी जानकारी है। सारी दुनिया में प्रजनन में गिरावट आ रही है । अगर तीन-चार दशक पीछे देखें तो विकासशील देशों में महिलाओं के औसतन छह बच्चे होते थे । अब तीन बच्चों का औसत है ।विकसित देशों में यह एक ओर दो तक रह गया है।  यह एक बहुत ब*डा परिवर्तन है । परंतु क्षेत्रीय स्तर पर इतनी प्रगति नहीं हुई है । यहां तक कि कुछ देशों में जनसंख्या फिर से बढ रही है । वैश्वक स्तर पर बहुत बडा परिवर्तन आया है । शिशु मृत्यु दर कम हो गई है । २० साल पहले हर वर्ष ५ वर्ष से कम आयु के करीब १.५ करो*ड बच्चों की मौत हो जाती थी । अब यह १ करो*ड से कम है ।  बेहतर भोजन और टीकों की व्यवस्था होने से अब कम बच्चे मरते हैं, उन्हें घातक रोगों से बचा लिया जाता हैं ।  दुर्भाग्य से नवजात शिशु मौतों की दर में कमी नहीं आ रही है क्योंकि प्रसव की जिन जटिलताओं से माँ की मौत होती है, उससे उनके बच्चे भी मर जाते हैं ।

दुनिया भर में कहीं-न-कहीं हर मिनट एक महिला गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के दौरान मर जाती है और करीब २० महिलाएं किसी-न-किसी रोग की शिकार हो जाती हैं। इसमें कहा गया है कि पांच लाख से ज्यादा माताओं की मौतों में से ९९ प्रतिशत विकासशील देशों में होती हैं । इन मौतों में कमी लाने के लिए तीन कदम उठाए जा सकते हैं। इनमें से एक, यह है कि जन्म के समय महिलाओं के पास कुशल सहायिका उपलब्ध हो। दूसरा कदम, यह है कि प्रसव के दौरान जटिलताएं पैदा होने पर उसे आपात्कालीन चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो। उदाहरण के लिए शिशु के जन्म के दौरान कई बार बहुत अधिक खून बह जाता है, जिसे एक कुशल दाई संभाल नहीं सकती। इसके लिए अस्पताल जाना पत्रडता है और वहां दो घंटों के भीतर पहुंचना जरुरी है ताकि जरुरत पडने पर माँ को खून दिया जा सके । तीसरा कदम, परिवार नियोजन है ।
आंकडों से पता चलता है कि किसी महिला के अपने जीवन काल में गर्भावस्था से संबंधित कारणों से मरने की संभावना ७ में से एक है । अमेरिका में ४,८०० में से करीब १ और स्वीडन में १७,४०० में से १ महिला के मरने की संभावना रहती है ।

  आज विश्व की कुल जनसंख्या करीब  ६अरब  ७०करोड ३५हजार है, जबकि एशिया महाद्वीप की जनसंख्या अकेले लगभग चार अरब के बराबर है। बढती जनसंख्या और पर्यावरण असन्तुलन के कारण ऊष्मा बढने से ध्रुव पिघल रहे हैं। बर्फ के पहाड पानी बन जा रहे हैं जिससे समुद्र का जलन स्तर बढ रहा है। परिणाम स्वरूप समुद्र उफनेंगे और प्रलय की सम्भावनांए बढेगी तथा कई बडे महानगर अपना अस्तित्व ही खो देंगे।

देश में जनसंख्या वृद्धि से रोजी, मकान और पीने योग्य पानी जैसी गम्भीर समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इन समस्याओं का विश्व के प्रायः सभी देशों को सामना करना पड रहा है। जनसंख्या में लगातार बढोत्तरी से भयंकर होती परिस्थितियों के विनाश से बचने के लिए व्यक्ति के संयमित आचरण की पवित्रता होनी चाहिये। बढती हुई जनसंख्या पर गहन चिन्तन का विषय है। भारत में अभी भी जागरुकता और शिक्षा की कमी है। लोग जनसंख्या की भयावहता को समझ नहीं पा रहे है, कि यह भविष्य में हमें नुकसान कितना पहुँचा सकती है। भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, यहाँ ऐसा संभव नहीं है। बिना जागरुकता और शिक्षा के प्रसार के इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। अभी हाल में ही हमें दुनिया में बढते खाद्यान संकट के लिए एशिया जिम्मेदार ठहराया गया था। खाद्यान संकट तेजी से बढ रहा है।  अन्न के साथ जल संकट बढ रहा है। तेजी से बढती जनसंख्या ने प्रदूषण कि दर को भी धधका दिया है। जिससे जमीन की उर्वरता तेजी से घट रही है साथ ही पानी का स्तर भी तेजी से घट रहा है। बच्चे ‘भगवान की देन‘ होते हैं, वाली मानसिकता का त्याग करना ही होगा वरना यदि हमनें समय रहते ही जागरुक प्रयासों से बढती जनसंख्या को नहीं रोका तो एक दिन भूख और प्यास से हमारे अपने ही त्रस्त होंगे। प्रति व्यक्ति जागरुकता और प्रति व्यक्ति शिक्षा के बिना ऐसा सम्भव नहीं है। आने वाली पीढयों को सुखी और समृद्ध बनाने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण जरुरी है।
*** 

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2 Responses to जया शर्मा का आलेख - रोको! मत बढने दो जनसंख्या !

  1. महत्वपूर्ण जानकारी के लिए साधुवाद।
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

    ReplyDelete
  2. खुदगरजो इस देश को तुमने देखो कंगला कर डाला
    साठ साल से देश हमारा भूख गरीबी भोग रहा

    बात समझ लो वक्त के रहते वक्त हाथ न आएगा
    उग्रवाद का रुप भयानक इक दिन एसा बरपेगा

    रोक लगा दो दस वर्षों तक शादी के इन उत्सव पर
    बच्चे पैदा बन्द न होंगे देश कभी न सुधरेगा

    पांच साल क्या ठेकेदारो सारी उम्र लगा देना
    नसबन्दी अभियान चलाओ देश तभी कुछ सुधरेगा

    बंगलादेशी या परदेसी बाहर निकालो देश से इनको
    कुछ वोटो का लालच वरना नर्क बनाता जाएगा

    पंडा ,मुल्ला,रागी.ईसा खेल रचाए बैठे हैं
    खेल है इनका उल्टा पुलटा देश के ठेकेदारो का

    शर्म हया की सब सीमाऐं नेताओ ने तोड हैं दी
    इक दूजे पे वार है करना अब जूते ओर चप्प्लों का

    कानून बने इस देश मे एसा सब धर्मो पर लागू हो
    बात समझ न आए, उसको देश मे हक नही रहने का

    ReplyDelete

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