पुरुषोत्तम यकीन की चार ग़ज़लें















१.
हमको लडवा दिया फिर कर्फ्यू लगाने को चले
इस तरह अम्नो-अमाँ शहर में लाने को चले

रात को कत्ल जिन्होनें था किया हँस-हँस कर
सुब्ह मैयत पे वही आँसू बहाने को चले

दिल में गैरो से गिला रखना हिमाकत होगी
आँख के तारे ही जब आँख दिखाने को चले

उस ने दरिया पे नहाने को उतारे कपडे
लोग कहने लगे लो जिस्म दिखाने को चले

भैंसें हुई मदमस्त, बीन बजाने को मिली
साँप इनको भी लो सुरताल सधाने को चले

जी भरा मुझसे तो वो उस के गले जा लिपटे
मुझ से ऊबे तो ’यकीन’ और ठिकाने को चले

२.
बात दिल खोल के आपस में अगर हो जाती
हम अँधरों से उबर जाते, सहर हो जाती

कौन है गैर अगर इतना समझ लेते तुम
हम तुम्हारे हैं तुम्हें ये भी खबर हो जाती

सुलह की फिर निकल आती कोई सूरत भी जरूर
काश इस सम्त कभी उनकी नजर हों जाती

फिर न करते वो कभी मुझ को दिवानों में शुमार
दिल की हालत जो इधर है वो उधर हो जाती

राहतें मैं भी मंगा लेता मियाँ दिल्ली से
किसी मंत्री से मेरी बात अगर हो जाती

प्यार के फूल नहीं होते जो गुलशन में ’यकीन’
जिंदगी जैसे कोई सूखा शजर हो जाती

३.
हम अँधेरों में चरागों को जला देते हैं
हम पे इल्जाम है हम आग लगा देते हैं

कल को खुर्शीद भी निकलेगा, सहर भी होगी
शब के सौदागरों, हम इतना जता देते हैं

क्या ये कम है कि वो गुलशन पे गिरा के बिजली
देख के खाके-चमन आँसू बहा देते हैं

बीहडों से गुजरते हैं मुसलसल जो कदम
चलते-चलते वो वहाँ राह बना देते हैं

जड हुए मील के पत्थर ये बजा है लेकिन
चलने वालों को ये मंजिल का पता देते हैं

अधखिले फूलों को रस्ते पे बिछा कर वो यूं
जाने किस जुर्म की कलियों को सजा देते हैं

अब गुनहगार वो ठहराएँ तो ठहराएँ मुझे
मेरे अश'आर शरारों को हवा देते हैं

एक-इक जुगनू इकट्ठा किया करते हैं ’यकीन’
रोशनी कर के रहेगें ये बता देते हैं

४.
हम घूँट ये लहू के कब तक पियेंगे आखिर
यूँ जुल्म की चिता में कब तक जलेंगे आखिर

आलम है हर तरफ क्यूँ मायूसियों का सोचो
मर-मर के रोज यूँ ही कब तक जियेंगे आखिर

बढते ही जा रहे हैं साये सितम के हर सू
ये जुल्म, ये तशद्दुद, कब तक रहेंगे आखिर

रोटी के वास्ते क्यूँ बहनों ने जिस्म बेचे
मजबूर इस कदर हम कब तक रहेंगे आखिर

इक दिन ’यकीन’ होगा अपने भी घर उजाला
बादल ये जुल्मतों के कब तक रहेंगे आखिर
****************

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14 Responses to पुरुषोत्तम यकीन की चार ग़ज़लें

  1. PURUSHOTTAM JEE KEE CHAARON GAZALEN KEE SUNDAR
    AUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI ACHCHHEE LAGEE HAI.
    EK MISRA YUN HONAA CHAAHIYE THAA--
    BHAINSEN MADMAST HUEE,BEEN BJAANE KO MILEE.

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  2. वाह वाह वाह
    बहुत खूबसूरत ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आभार

    हम अँधेरों में चरागों को जला देते हैं
    हम पे इल्जाम है हम आग लगा देते हैं

    बात दिल खोल के आपस में अगर हो जाती
    हम अँधरों से उबर जाते, सहर हो जाती

    बहुत-बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  3. पुरुषोत्तम यक़ीन की शायरी बहुत जानदार है। पर एक साथ पाँच ग़जलें हमारा तो हाजमा खराब हो जाना है। एक बार में एक ही बहुत है।

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  4. PURUSHOTTAM YAQEEN KI GHAZALEN WAQAI BEHATREEN HAIN. BADHAAI.

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  5. इंतज़ार खत्म हुआ। आखिर "आखर कलश" पर "यकीन" जी की शायरी शाए’ हो ही चुकी है। मुझे बेहद खुशी है। इतनी शानदार और जानदार गज़ले शाए’ करने पर सुनील जी और व्यास जी का बहुत- बहुत शुक्रिया।

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  6. उस ने दरिया पे नहाने को उतारे कपडे
    लोग कहने लगे लो जिस्म दिखाने को चले

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  7. रात को कत्ल जिन्होनें था किया हँस-हँस कर
    सुब्ह मैयत पे वही आँसू बहाने को चले
    Siyaasat ke pahlu bahut sajeev evan sashakt hai. sunder gazals padne ko mili aabhaar!!!

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  8. In sunder ghazalon ke liye badhai sweekaren Rajendra Bhai.Purusottam yakin ji ko bhi lazabaab ghazalon ke liye badhai.

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  9. aap sach me bahut accha likhte hai ab to hume aapse classis leni padegi

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  10. जड हुए मील के पत्थर ये बजा है लेकिन
    चलने वालों को ये मंजिल का पता देते हैं


    अब गुनहगार वो ठहराएँ तो ठहराएँ मुझे
    मेरे अश'आर शरारों को हवा देते हैं
    Bahut achhy shabad hain....!!!

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  11. बेहतरीन ग़ज़लें....

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  12. पुरुषोतम जी! मैं आपसे पूर्व परचित हूँ...मेरे संपादन 'वेणी' पत्रिका में आपकी गजलें प्रकाशित हो चुकी है| सज्ञ में नहीं था कि आप ब्लॉग से जुड़े है| अच्छा लगा| उपरोक्त गजले पढ़ी....उक्त पर मेरी शुभकामनाये........

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