१.
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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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सम्पादक मंडल

- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
PURUSHOTTAM JEE KEE CHAARON GAZALEN KEE SUNDAR
ReplyDeleteAUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI ACHCHHEE LAGEE HAI.
EK MISRA YUN HONAA CHAAHIYE THAA--
BHAINSEN MADMAST HUEE,BEEN BJAANE KO MILEE.
वाह वाह वाह
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आभार
हम अँधेरों में चरागों को जला देते हैं
हम पे इल्जाम है हम आग लगा देते हैं
बात दिल खोल के आपस में अगर हो जाती
हम अँधरों से उबर जाते, सहर हो जाती
बहुत-बहुत बधाई.
khubsurat rachna...badhai..!!!!
ReplyDeleteपुरुषोत्तम यक़ीन की शायरी बहुत जानदार है। पर एक साथ पाँच ग़जलें हमारा तो हाजमा खराब हो जाना है। एक बार में एक ही बहुत है।
ReplyDeletePURUSHOTTAM YAQEEN KI GHAZALEN WAQAI BEHATREEN HAIN. BADHAAI.
ReplyDeleteइंतज़ार खत्म हुआ। आखिर "आखर कलश" पर "यकीन" जी की शायरी शाए’ हो ही चुकी है। मुझे बेहद खुशी है। इतनी शानदार और जानदार गज़ले शाए’ करने पर सुनील जी और व्यास जी का बहुत- बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteउस ने दरिया पे नहाने को उतारे कपडे
ReplyDeleteलोग कहने लगे लो जिस्म दिखाने को चले
रात को कत्ल जिन्होनें था किया हँस-हँस कर
ReplyDeleteसुब्ह मैयत पे वही आँसू बहाने को चले
Siyaasat ke pahlu bahut sajeev evan sashakt hai. sunder gazals padne ko mili aabhaar!!!
bahut achhi gazale hai ,achha laga pad ker
ReplyDeleteIn sunder ghazalon ke liye badhai sweekaren Rajendra Bhai.Purusottam yakin ji ko bhi lazabaab ghazalon ke liye badhai.
ReplyDeleteaap sach me bahut accha likhte hai ab to hume aapse classis leni padegi
ReplyDeleteजड हुए मील के पत्थर ये बजा है लेकिन
ReplyDeleteचलने वालों को ये मंजिल का पता देते हैं
अब गुनहगार वो ठहराएँ तो ठहराएँ मुझे
मेरे अश'आर शरारों को हवा देते हैं
Bahut achhy shabad hain....!!!
बेहतरीन ग़ज़लें....
ReplyDeleteपुरुषोतम जी! मैं आपसे पूर्व परचित हूँ...मेरे संपादन 'वेणी' पत्रिका में आपकी गजलें प्रकाशित हो चुकी है| सज्ञ में नहीं था कि आप ब्लॉग से जुड़े है| अच्छा लगा| उपरोक्त गजले पढ़ी....उक्त पर मेरी शुभकामनाये........
ReplyDelete