गोविन्‍द गुलशन की चार ग़ज़लें


















1.
ग़म का दबाव दिल पे जो पड़ता नहीं कभी 
सैलाब आँसुओं का उमड़ता नहीं कभी

तर्के- त’अल्लुक़ात को बरसों गुज़र गए 
लेकिन ख़याल उसका बिछड़ता नहीं कभी

जिसकी जड़ें ज़मीन में गहरी उतर गईं
आँधी में ऐसा पेड़ उखड़ता नहीं कभी

मुझसा मुझे भी चाहिए सूरज ने ये कहा
साया मेरा ज़मीन पे पड़ता नहीं कभी

सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
बादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी

2 .
सम्हल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा
मिज़ाज गर्म है मौसम बदल रही है हवा

वो जाम बर्फ़ से लबरेज़ है मगर उससे
लिपट-लिपट के मुसलसल पिघल रही है हवा

उधर तो धूप है बंदिश में और छतों पे इधर
लिबास बर्फ़ का पहने टहल रही है हवा

बुझा रही है चराग़ों को वक़्त से पहले
न जाने किसके इशारों पे चल रही है हवा

जो दिल पे हाथ रखोगे तो जान जाओगे
मचल रही है बराबर मचल रही है हवा

3 .
इक चराग़ बुझता है इक चराग़ जलता है
रोज़ रात होती है,रोज़ दिन निकलता है

जाने कौन-सी ख़ुशबू बस गई है आँखों में
जाने कौन है वो जो ख़्वाब में टहलता है

क्या अजीब होता है इंतिज़ार का आलम
मौत आ भी जाए तो दम नहीं निकलता है

वादियों में नींदों की मुतमइन तो हूँ लेकिन
कौन मेरे बिस्तर पर करवटें बदलता है

ख़ूब काम आती है आपकी हुनरमंदी
आपका अँधेरे में तीर ख़ूब चलता है

रौशनी महकती है रात-रात भर ’गुलशन’
जब चराग़ यादों की महफ़िलों में जलता है


और अब एक ख़ास ग़ज़ल
(इस ग़ज़ल में क़ाफ़िया और रदीफ़ दुगुन में (दोहरे) इस्तेमाल किए गए हैं)
उसकी आँखों में बस जाऊँ मैं कोई काजल थोड़ी हूँ       
उसके शानों पर लहराऊँ मैं कोई आँचल थोड़ी हूँ 

ख़्वाबों से कुछ रंग चुराऊँ फिर उसकी तस्वीर बनाऊँ
तब अपना ये दिल बहलाऊँ मैं कोई पागल थोड़ी हूँ 

जिसने तोला कम ही तोला, सोना तो सोना ही ठहरा
मैं कैसे पीतल बन जाऊँ मैं कोई पीतल थोड़ी हूँ

सुख हूँ मैं फिर आ जाऊँगा मुझको जाने से मत रोको
जाऊँ, जाकर लौट न पाऊँ मैं कोई वो पल थोड़ी हूँ 

जादू की डोरी से उसने मुझको बाँध लिया है 'गुलशन'
बाँध लिया तो शोर मचाऊँ मैं कोई पायल थोड़ी हूँ
*******

Posted in . Bookmark the permalink. RSS feed for this post.

24 Responses to गोविन्‍द गुलशन की चार ग़ज़लें

  1. मुझसा मुझे भी चाहिए सूरज ने ये कहा
    साया मेरा ज़मीन पे पड़ता नहीं कभी

    सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
    बादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी

    बहुत बढिया गज़लें पढवाने का आभार

    ReplyDelete
  2. सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
    बादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी!


    बुझा रही है चराग़ों को वक़्त से पहले
    न जाने किसके इशारों पे चल रही है हवा

    कमाल कि गज़लें है, बहुत दिनों बाद इस तरह कि गज़लें पढने को मिली है, मेरे पास इनकी तारीफ के लिए शब्द नहीं है, आखर कलश से निवेदन है कि लेखक का अगर ब्लॉग है तो लिंक देने कि कृपा करे!

    ReplyDelete
  3. गोविन्द गुलशन जी, आपकी चारोँ ग़ज़लेँ लाज़वाब हैँ।कहन,बहर,वज़न मेँ हर आशार मुक्कमल। अरकान काबिल-ए-गौर।अगर कोई ग़ज़ल कहने का शोक फरमाता है तो उसे यहां पढ़ना चाहिए।
    बधाई हो गोविन्द जी !
    *अंतिम ग़ज़ल मेँ पीतल शब्द की पुनरावृति अख़रती है। पुनः देखेँ।
    *आप मेरे ब्लाग पर पधारेँगे तो खुशी होगी।
    www.omkagad.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. बहुत शानदार ग़ज़लें हैं.
    पढवाने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया.

    ReplyDelete
  5. शानदार मत्ले से पहली ग़ज़ल का आग़ाज़ किया है गोविंद गुलशनजी ने
    "ग़म का दबाव दिल पे जो पड़ता नहीं कभी
    सैलाब आँसुओं का उमड़ता नहीं कभी"
    …और जैसे जैसे आगे बढ़ते हैं अश्आर अपने हुस्न की गिरफ़्त में लेते जाते हैं
    "जिसकी जड़ें ज़मीन में गहरी उतर गईं
    आँधी में ऐसा पेड़ उखड़ता नहीं कभी "
    पूरा का पूरा दर्शन अंतर्निहित है उपरोक्त शे'र में ।
    यह सिल्सिला दूसरी और तीसरी ग़ज़ल में भी बदस्तूर बरक़रार रहता है…
    "वो जाम बर्फ़ से लबरेज़ है मगर उससे
    लिपट-लिपट के मुसलसल पिघल रही है हवा"
    क्या अंदाज़े-सुख़न है !
    …और
    "ख़ूब काम आती है आपकी हुनरमंदी
    आपका अँधेरे में तीर ख़ूब चलता है"
    …और ख़ास ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत आपकी चौथी ग़ज़ल आमफ़हम ज़ुबान में कही गई अच्छी प्रयोगात्मक ग़ज़ल है ।
    गोविंदजी उम्मीद की रौशनी दामन से छूटने नहीं देते , और आशावादी स्वर में कहते हैं…
    "सुख हूँ मैं फिर आ जाऊँगा मुझको जाने से मत रोको
    जाऊँ, जाकर लौट न पाऊँ मैं कोई इक पल थोड़ी हूँ"
    प्रिय नरेन्द्रजी सहित आखर कलश की पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई एक अच्छे फ़नदां - ग़ज़लगो के अश्आर से रू ब रू करवाने के लिए !

    शस्वरं पर भी ख़ाकसार की जानिब से ऐसे हुनरमंद अदीबों को दावते-सुख़न है
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर गज़लें हैं ... एक से बढ़कर एक

    ReplyDelete
  7. aanand aa gaya! Padhtihi chali gayi...!

    ReplyDelete
  8. Excellent Gulshan G
    Very very support to aakharkalash
    ......Manmohan Vyas

    ReplyDelete
  9. जिसकी जड़ें ज़मीन में गहरी उतर गईं
    आँधी में ऐसा पेड़ उखड़ता नहीं कभी

    बुझा रही है चराग़ों को वक़्त से पहले
    न जाने किसके इशारों पे चल रही है हवा

    ख़ूब काम आती है आपकी हुनरमंदी
    आपका अँधेरे में तीर ख़ूब चलता है

    सुख हूँ मैं फिर आ जाऊँगा मुझको जाने से मत रोको
    जाऊँ, जाकर लौट न पाऊँ मैं कोई वो पल थोड़ी हूँ
    बहुत-बहुत सुन्दर शेर. सभी गज़लें बहुत खूबसूरत हैं. आभार.

    ReplyDelete
  10. सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
    बादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी

    bahut khoob,achha laga pad ker

    ReplyDelete
  11. सभी ग़ज़लें उस्ताद-क़लम से निकली हैं। एक-एक शेर में वजन है।

    ReplyDelete
  12. मैनें पहले भी निवेदन किया था कि गुलशन जी का कोई संग्रह हो तो अवश्‍य बतायें, इतनी उम्‍दा ग़ज़लें किसी उस्‍ताद की कलम से ही निकल सकती हैं।

    ReplyDelete
  13. बहुत खूब.
    जैसा की बलराम जी ने कहा सभी ग़ज़लें उस्ताद-क़लम से निकली हैं। एक-एक शेर में वजन है।
    - पृथ्‍वी

    ReplyDelete
  14. दे कर जिगर का खून अगर सींच लेते हम
    तब बाग आधियों में उखड़ता नही कभी

    "गुलशन"तेरे ख्याल कि तारीफ़ क्या करूं
    अच्छी ग़ज़ल का शेर उजड़ता नही कभी

    ReplyDelete
  15. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  16. इतनी शानदार गजलों को पढवाने का शुक्रिया।

    ReplyDelete
  17. सादर प्रणाम आदरणीय तिलकराज जी
    आपके आदेशानुसार बताना चाहूंगा कि आदरणीय श्री गोविन्द जी का अभी तक कोई ब्लॉग या साईट नहीं है..हाँ, उनके ग़ज़ल संग्रह के अवलोकनार्थ लिंक प्रेषित है..कृपया अवलोकन कीजियेगा..

    http://forum.urduworld.com/f1083/

    www.kavitakosh.org/govindgulshan

    सादर

    ReplyDelete
  18. प्रिय गोविन्द गुलशन जी, सोना पीतल वाले शेर पर गौर फ़रमाएं

    गंगा जल की बात निराली खुद प्यासा मैं सागर ठहरा
    सब लोगों की प्यास बुझाऊं मैं कोई वो जल थोड़ी हूँ

    ReplyDelete
  19. नमस्कार..बात ..खास तौर पर ’ कागद जी,कपूर साहेब,आज़ेर जी ’ ने कह ही दी..पहले की तीनों गज़लें उम्दा हॆं..आखिरी गज़ल क़ाफ़िया और रदीफ़ दुगुन में इस्तेमाल किए जाने के प्रयोग का शिकार हो गई लगती है..इसी वजह से बहर बडी हो गयी और वज़्न जाता रहा..शेष गज़लें बेहतरीन हॆं...गुलशन जी और आखर कलश का शुक्रिया.

    ReplyDelete
  20. गुलशन साहब की सारी की सारी ग़ज़लें कमाल की हैं...दुगुन काफिये रदीफ़ वाली ग़ज़ल के लिए खास बधाई...
    नीरज

    ReplyDelete
  21. क्या बात है,बेहद खूबसूरत गज़लें हैं ....भाई गुलशन जी,बहुत-बहुत बधाई.

    "ओमप्रकाश यती"

    ReplyDelete
  22. शुक्रगुज़ार हूँ आप सब का कि आपने
    मुझे नाचीज़ को अपनी मुहब्बतों से नवाज़ा
    यूँही दुआओं में बनाए रखिएगा

    ReplyDelete
  23. प्रिय गुलशन जी, जब से आपकी 'जलता रहा चराग ' पढ़ी है हम तो तब से ही आपके मुरीद हैं.
    भगवान् आपको लम्बी उम्र दे ताकि आप सदियों तक अपने चाहने वालों को अपनी रचनाओं से
    आनंदित करते रहें

    ReplyDelete

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए कोटिशः धन्यवाद और आभार !
कृपया गौर फरमाइयेगा- स्पैम, (वायरस, ट्रोज़न और रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त) टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन ना चाहते हुवे भी लागू है, अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है. कृपया अपना सहयोग बनाए रखें. धन्यवाद !
विशेष-: असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.