1.
ग़म का दबाव दिल पे जो पड़ता नहीं कभी
सैलाब आँसुओं का उमड़ता नहीं कभी
तर्के- त’अल्लुक़ात को बरसों गुज़र गए
लेकिन ख़याल उसका बिछड़ता नहीं कभी
जिसकी जड़ें ज़मीन में गहरी उतर गईं
आँधी में ऐसा पेड़ उखड़ता नहीं कभी
मुझसा मुझे भी चाहिए सूरज ने ये कहा
साया मेरा ज़मीन पे पड़ता नहीं कभी
सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
बादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी
2 .
सम्हल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा
मिज़ाज गर्म है मौसम बदल रही है हवा
वो जाम बर्फ़ से लबरेज़ है मगर उससे
लिपट-लिपट के मुसलसल पिघल रही है हवा
उधर तो धूप है बंदिश में और छतों पे इधर
लिबास बर्फ़ का पहने टहल रही है हवा
बुझा रही है चराग़ों को वक़्त से पहले
न जाने किसके इशारों पे चल रही है हवा
जो दिल पे हाथ रखोगे तो जान जाओगे
मचल रही है बराबर मचल रही है हवा
3 .इक चराग़ बुझता है इक चराग़ जलता है
रोज़ रात होती है,रोज़ दिन निकलता है
जाने कौन-सी ख़ुशबू बस गई है आँखों में
जाने कौन है वो जो ख़्वाब में टहलता है
क्या अजीब होता है इंतिज़ार का आलम
मौत आ भी जाए तो दम नहीं निकलता है
वादियों में नींदों की मुतमइन तो हूँ लेकिन
कौन मेरे बिस्तर पर करवटें बदलता है
ख़ूब काम आती है आपकी हुनरमंदी
आपका अँधेरे में तीर ख़ूब चलता है
रौशनी महकती है रात-रात भर ’गुलशन’
जब चराग़ यादों की महफ़िलों में जलता है
और अब एक ख़ास ग़ज़ल
(इस ग़ज़ल में क़ाफ़िया और रदीफ़ दुगुन में (दोहरे) इस्तेमाल किए गए हैं)
उसकी आँखों में बस जाऊँ मैं कोई काजल थोड़ी हूँ
उसके शानों पर लहराऊँ मैं कोई आँचल थोड़ी हूँ
ख़्वाबों से कुछ रंग चुराऊँ फिर उसकी तस्वीर बनाऊँ
तब अपना ये दिल बहलाऊँ मैं कोई पागल थोड़ी हूँ
जिसने तोला कम ही तोला, सोना तो सोना ही ठहरा
मैं कैसे पीतल बन जाऊँ मैं कोई पीतल थोड़ी हूँ
सुख हूँ मैं फिर आ जाऊँगा मुझको जाने से मत रोको
जाऊँ, जाकर लौट न पाऊँ मैं कोई वो पल थोड़ी हूँ
जादू की डोरी से उसने मुझको बाँध लिया है 'गुलशन'
बाँध लिया तो शोर मचाऊँ मैं कोई पायल थोड़ी हूँ
*******
मुझसा मुझे भी चाहिए सूरज ने ये कहा
ReplyDeleteसाया मेरा ज़मीन पे पड़ता नहीं कभी
सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
बादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी
बहुत बढिया गज़लें पढवाने का आभार
सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
ReplyDeleteबादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी!
बुझा रही है चराग़ों को वक़्त से पहले
न जाने किसके इशारों पे चल रही है हवा
कमाल कि गज़लें है, बहुत दिनों बाद इस तरह कि गज़लें पढने को मिली है, मेरे पास इनकी तारीफ के लिए शब्द नहीं है, आखर कलश से निवेदन है कि लेखक का अगर ब्लॉग है तो लिंक देने कि कृपा करे!
गोविन्द गुलशन जी, आपकी चारोँ ग़ज़लेँ लाज़वाब हैँ।कहन,बहर,वज़न मेँ हर आशार मुक्कमल। अरकान काबिल-ए-गौर।अगर कोई ग़ज़ल कहने का शोक फरमाता है तो उसे यहां पढ़ना चाहिए।
ReplyDeleteबधाई हो गोविन्द जी !
*अंतिम ग़ज़ल मेँ पीतल शब्द की पुनरावृति अख़रती है। पुनः देखेँ।
*आप मेरे ब्लाग पर पधारेँगे तो खुशी होगी।
www.omkagad.blogspot.com
बहुत शानदार ग़ज़लें हैं.
ReplyDeleteपढवाने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया.
शानदार मत्ले से पहली ग़ज़ल का आग़ाज़ किया है गोविंद गुलशनजी ने
ReplyDelete"ग़म का दबाव दिल पे जो पड़ता नहीं कभी
सैलाब आँसुओं का उमड़ता नहीं कभी"
…और जैसे जैसे आगे बढ़ते हैं अश्आर अपने हुस्न की गिरफ़्त में लेते जाते हैं
"जिसकी जड़ें ज़मीन में गहरी उतर गईं
आँधी में ऐसा पेड़ उखड़ता नहीं कभी "
पूरा का पूरा दर्शन अंतर्निहित है उपरोक्त शे'र में ।
यह सिल्सिला दूसरी और तीसरी ग़ज़ल में भी बदस्तूर बरक़रार रहता है…
"वो जाम बर्फ़ से लबरेज़ है मगर उससे
लिपट-लिपट के मुसलसल पिघल रही है हवा"
क्या अंदाज़े-सुख़न है !
…और
"ख़ूब काम आती है आपकी हुनरमंदी
आपका अँधेरे में तीर ख़ूब चलता है"
…और ख़ास ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत आपकी चौथी ग़ज़ल आमफ़हम ज़ुबान में कही गई अच्छी प्रयोगात्मक ग़ज़ल है ।
गोविंदजी उम्मीद की रौशनी दामन से छूटने नहीं देते , और आशावादी स्वर में कहते हैं…
"सुख हूँ मैं फिर आ जाऊँगा मुझको जाने से मत रोको
जाऊँ, जाकर लौट न पाऊँ मैं कोई इक पल थोड़ी हूँ"
प्रिय नरेन्द्रजी सहित आखर कलश की पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई एक अच्छे फ़नदां - ग़ज़लगो के अश्आर से रू ब रू करवाने के लिए !
शस्वरं पर भी ख़ाकसार की जानिब से ऐसे हुनरमंद अदीबों को दावते-सुख़न है
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बहुत सुन्दर गज़लें हैं ... एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteaanand aa gaya! Padhtihi chali gayi...!
ReplyDeleteExcellent Gulshan G
ReplyDeleteVery very support to aakharkalash
......Manmohan Vyas
जिसकी जड़ें ज़मीन में गहरी उतर गईं
ReplyDeleteआँधी में ऐसा पेड़ उखड़ता नहीं कभी
बुझा रही है चराग़ों को वक़्त से पहले
न जाने किसके इशारों पे चल रही है हवा
ख़ूब काम आती है आपकी हुनरमंदी
आपका अँधेरे में तीर ख़ूब चलता है
सुख हूँ मैं फिर आ जाऊँगा मुझको जाने से मत रोको
जाऊँ, जाकर लौट न पाऊँ मैं कोई वो पल थोड़ी हूँ
बहुत-बहुत सुन्दर शेर. सभी गज़लें बहुत खूबसूरत हैं. आभार.
सूरज हूँ जल रहा हूँ बचा लीजिए मुझे
ReplyDeleteबादल मेरे क़रीब उमड़ता नहीं कभी
bahut khoob,achha laga pad ker
सभी ग़ज़लें उस्ताद-क़लम से निकली हैं। एक-एक शेर में वजन है।
ReplyDeleteमैनें पहले भी निवेदन किया था कि गुलशन जी का कोई संग्रह हो तो अवश्य बतायें, इतनी उम्दा ग़ज़लें किसी उस्ताद की कलम से ही निकल सकती हैं।
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteजैसा की बलराम जी ने कहा सभी ग़ज़लें उस्ताद-क़लम से निकली हैं। एक-एक शेर में वजन है।
- पृथ्वी
दे कर जिगर का खून अगर सींच लेते हम
ReplyDeleteतब बाग आधियों में उखड़ता नही कभी
"गुलशन"तेरे ख्याल कि तारीफ़ क्या करूं
अच्छी ग़ज़ल का शेर उजड़ता नही कभी
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ReplyDeleteइतनी शानदार गजलों को पढवाने का शुक्रिया।
ReplyDeleteसादर प्रणाम आदरणीय तिलकराज जी
ReplyDeleteआपके आदेशानुसार बताना चाहूंगा कि आदरणीय श्री गोविन्द जी का अभी तक कोई ब्लॉग या साईट नहीं है..हाँ, उनके ग़ज़ल संग्रह के अवलोकनार्थ लिंक प्रेषित है..कृपया अवलोकन कीजियेगा..
http://forum.urduworld.com/f1083/
www.kavitakosh.org/govindgulshan
सादर
प्रिय गोविन्द गुलशन जी, सोना पीतल वाले शेर पर गौर फ़रमाएं
ReplyDeleteगंगा जल की बात निराली खुद प्यासा मैं सागर ठहरा
सब लोगों की प्यास बुझाऊं मैं कोई वो जल थोड़ी हूँ
Behtreen Prastuti...... GULSHAN ji ko naman...
ReplyDeleteनमस्कार..बात ..खास तौर पर ’ कागद जी,कपूर साहेब,आज़ेर जी ’ ने कह ही दी..पहले की तीनों गज़लें उम्दा हॆं..आखिरी गज़ल क़ाफ़िया और रदीफ़ दुगुन में इस्तेमाल किए जाने के प्रयोग का शिकार हो गई लगती है..इसी वजह से बहर बडी हो गयी और वज़्न जाता रहा..शेष गज़लें बेहतरीन हॆं...गुलशन जी और आखर कलश का शुक्रिया.
ReplyDeleteगुलशन साहब की सारी की सारी ग़ज़लें कमाल की हैं...दुगुन काफिये रदीफ़ वाली ग़ज़ल के लिए खास बधाई...
ReplyDeleteनीरज
क्या बात है,बेहद खूबसूरत गज़लें हैं ....भाई गुलशन जी,बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDelete"ओमप्रकाश यती"
शुक्रगुज़ार हूँ आप सब का कि आपने
ReplyDeleteमुझे नाचीज़ को अपनी मुहब्बतों से नवाज़ा
यूँही दुआओं में बनाए रखिएगा
प्रिय गुलशन जी, जब से आपकी 'जलता रहा चराग ' पढ़ी है हम तो तब से ही आपके मुरीद हैं.
ReplyDeleteभगवान् आपको लम्बी उम्र दे ताकि आप सदियों तक अपने चाहने वालों को अपनी रचनाओं से
आनंदित करते रहें