नीलेश माथुर की तीन कविताएँ


रचनाकार परिचय
नाम- नीलेश माथुर 
पिता का नाम- श्री शंकर लाल माथुर
माता का नाम- वीणा माथुर
जन्म स्थान- बीकानेर
आप फिलहाल गुवाहाटी में रहकर व्यापार कर रहे हैं साथ ही आपकी रचनाएं  यहाँ की स्‍तरीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है!
पता- नीलेश माथुर,
देवमती भवन,
ए.के.आजाद रोड, रेहाबारी,
गुवाहाटी-८
***************************************************************************************************
(1) जिंदगी !

जिंदगी यूँ ही गुज़र जाती है 
बातों ही बातों में 
फिर क्यों न हम 
हर पल को जी भर के जियें,

खुशबू को 
घर के इक कोने में कैद करें 
और रंगों को बिखेर दें 
बदरंग सी राहों पर

अपने चेहरे से 
विषाद कि लकीरों को मिटा कर मुस्कुराएँ 
और गमगीन चेहरों को भी 
थोड़ी सी मुस्कुराहट बाँटें,

किसी के आंसुओं को 
चुरा कर उसकी पलकों से 
सरोबार कर दें उन्हें 
स्नेह कि वर्षा में,

अपने अरमानों की पतंग को 
सपनो कि डोर में पिरोकर
 मुक्त आकाश में उडाएं 
या फिर सपनों को 
पलकों में सजा लें,

रात में छत पर लेटकर 
तारों को देखें 
या फिर चांदनी में नहा कर 
अपने ह्रदय के वस्त्र बदलें 
और उत्सव मनाएँ

आओ हम खुशियों को 
जीवन में आमंत्रित करें 
और ज़िन्दगी को जी भर के जियें! 
******* 

(2) धुंधला चुके चित्र !

माना कि तुम 
मेरे पुराने मित्र हो 
पर मेरे अन्तःस्थल के 
धुंधला चुके चित्र हो,

अब मैं तुम्हारा 
वो मित्र नहीं रहा 
जिसे तुम जानते थे
पहचानते थे,

अब तो मैं
महानगर में रेंगता 
वो कीड़ा हूँ 
जो भावनाओं में नहीं बहता !
*******
 

(3) विभाजन की त्रासदी !

एक मुल्क के सीने पर
जब तलवार चल रही थी
तब आसमाँ रो रहा था
और ज़मी चीख रही थी,

चीर कर सीने को
खून की एक लकीर उभर आई थी
उसे ही कुछ लोगों ने
सरहद मान लिया था,

उस लकीर के एक तरफ
जिस्म
और दूसरी तरफ
रूह थी,

पर कुछ इंसान
जिन्होंने जिस्म से रूह को
जुदा किया था
वो होठो में सिगार
और विलायती वस्त्र पहन
कहकहे लगा रहे थे,

और कई तो
फिरंगी औरतों संग
तस्वीर खिचवा रहे थे,
और भगत सिंह को
डाकू कहने वाले
मौन धारण किये
अनशन पर बैठे थे,

शायद वो इंसान नहीं थे
क्योंकि विभाजन की त्रासदी से
वो अनजान नहीं थे!
*******



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9 Responses to नीलेश माथुर की तीन कविताएँ

  1. वाह! झकझोर दिया इन रचनाओं ने, बेहतरीन!

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  2. उस लकीर के एक तरफ
    जिस्म
    और दूसरी तरफ
    रूह थी,
    बहुत सुन्दर रचनायें. ये अन्तिम रचना तो कमाल की है.

    ReplyDelete
  3. शायद वो इंसान नहीं थे
    क्योंकि विभाजन की त्रासदी से
    वो अनजान नहीं थे!
    उत्तम रचनाएं।

    ReplyDelete
  4. नीलेश जी की तीनों रचनाएं जीवन के विविध रंगों को समेटे हुए है।बहुत की खूबसूरत एवं अच्छी बन पड़ी है।

    ReplyDelete
  5. श्री नीलेश जी की तीन-तीन बेहतरीन कवितायें पढवाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार नरेन्द्र जी..

    ReplyDelete
  6. धुंधला चुके चित्र-वर्पमान परिवेश में बदलते मानवीय मूल्यों की यथार्थ अभिव्यक्ति है...भागदौङ भरी जिन्दगी में पीछे छूटते और दरकते रिश्तों की कविता है..हर क्षण को जी लेना ही जिन्दगी है....जिस्म और रूह का विभाजन त्रासद है वही यत्रंणाप्रद है वे स्थितियां जो इसे स्वीकार करती है..............सराहनीय प्रस्तुति.......अपना सृजन अनवरत रखे बन्धु........शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  7. मुझ अदने से लेखक को आपने जो स्नेह दिया उसके लिए आखर कलश और आप सभी को बहुत धन्यवाद!

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  8. भाई निलेश जी,
    आपकी तीनोँ कविताएं शानदार हैँ। बधाई!
    आपके भीतर भविष्य का कवि छुपा है,उसे खुल कर बाहर आने देँ।अभी प्रसंशाए चेहरे को मिल रही हैँ। जिस दिन रूह खुश हो तो समझना उस दिन आपके भीतर का कवि खुश हुआ है।

    ReplyDelete
  9. नीलेश माथुर की कविताएँ आक्रोश लिए हैं और संवेदनाएं भी, पढ़कर अच्छा लगा!
    -अशोक लव

    ReplyDelete

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