सुधा भार्गव की बाल कहानी - नमस्ते

रचनाकार परिचयनाम: सुधा भार्गव
शिक्षा: बी ,ए.बी टी ,रेकी हीलर
शिक्षण: बिरला हाई स्कूल कलकत्ता में २२ वर्षों तक हिन्दी भाषा का  शिक्षण कार्य | 
साहित्य सृजन
विभिन्न विधाओं पर रचना संसार-कहानी .लघुकथा ,यात्रा  संस्मरण .कविता  आदि साहित्य  संबन्धी संकलनों में तथा पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन
प्रकाशित पुस्तकें:
रोशनी की तलाश में - काव्य संग्रह
बालकथा पुस्तकें:
१ अंगूठा चूस
२ अहंकारी राजा
३ जितनी चादर उतने पैर ---सम्मानित-राष्ट्रीय शिखर  साहित्य  सम्मान !
आकाश वाणी दिल्ली से कहानी कविताओ. का प्रसारण
सम्मानित कृति: रोशनी की तलाश में(कविता  संग्रह )
सम्मान: डॉ .कमला रत्नम सम्मान
पुरस्कार: राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प. बंगाल -१९९६)
अभिरुचि: देश विदेश भ्रमण ,पेंटिंग .योगा,अभिनय ,वाक्  प्रतियोगिता
वर्तमान लेखन का स्वरूप: 
बाल कहानियाँ
बाल स्म्रतियां
बाल अनुरूप  आलेख

sudhashilp.blogspot.com
subharga@gmail.com 

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धीरू  बहुत  संकोची  स्वभाव  का  लड़का  था ।   घर  आये  मेहमान  के  सामने  आने  से  कतराता   रहता । चचा हो  या  चाची ,बुआ   हो  या  फूफा  .बस  उनके  आने  की  भनक  पड़ी  नहीं  कि  धीरू  वह  गया  ,वह  गया। अब  उसे  कोई  लाख  पुकारे ,टाफी  -खिलौनों  का  लालच  दे ,वह  टस से  मस नहीं  होता ।  अच्छा  -खासा  दब्बू  बन  गया  था I कोई  उसे  घरघुस्सू  कहता  तो  कोई लल्लू  ।
उसके  पिता  ने कई  बार   समझाया --बेटा  घर  में  आया  मेहमान  भगवान्  होता  है I  उससे  नमस्ते  करनी  चाहिए । इससे  वे  खुश  होते  हैं  ,आशीर्वाद  देते  हैं जिसमें  उनका  प्यार  घुला  रहता  हैI  इसके  असर  से  बिगड़े  काम   भी बन  जाते  हैं Iपर  वह  बुत  की  तरह  बैठा  रहता ।
जैसे -जैसे  धीरू  बड़ा  हो  रहा  था ,उसके  पिता की  चिंता  भी  बढ़  रही  थी -कहीं  धीरू  स्वभाव  से  हमेशा  के  लिए  दब्बू  न  बन  जाये इएक  दिन  वे  अपने   मित्र  से  सलाह  लेने  गये । उनके  ड्राइंगरूम  में  घुसते  ही धीरू  ने  चुप्पी  साध  ली ।
-पिता  ने  कहा ,बेटा -अपने  अंकल  को  नमस्ते  करो ।
धीरू  ने  जल्दी  से  'नमस्ते  'कहा  और  धम्म  से सोफे  में  घुस  गया। मन  ही  मन  अपनी  खैर  मनाई-चलो  जान  छूटी ।
अंकल  ने  पूछा -क्या  तुम  नमस्ते   का  अर्थ  जानते  हो ?
-नहीं  अंकल !धीरू  ने  जमीन  पर  आँखें  गडाते  हुए  धीरे  से  कहा ।
-जब  तुम  किसी  से  नमस्ते  करते  हो  तो  उससे  कुछ  कहते  हो  ।
-मैं तो  कुछ  नहीं  कहता ।
-कहने  के  लिए  जरूरी  नहीं  कि  मुंह  खोला  जायेI बिना   बोले  भी  बहुत  कुछ  कहा  जा  सकता है । हाथ  जोड़ते  समय तुम  कह  रहे  होते  हो -आप  बड़े  हैं  ,मैं  छोटा  हूं ।   मैं  आपका  आदर  करता  हूं ।
-मैं तो  नमस्ते  के  अर्थ  से  अनजान  था । मुझसे  बार -बार  कहा  जाता  -नमस्ते  करो ,नमस्ते  करो । पर  कारण  किसी  ने  नहीं  बताया Iआपका  तो  मैं  आदर  करता हूं । आपको  नमस्ते  अवश्य  करूंगा । धीरू  ने  बड़ी  शर्मिन्दगी  से  कहा ।
-नमस्ते  करने  का  भी  एक  कायदा  होता  है  ,केवल  कहने  से  ही  काम  नहीं  चलता ।
-वह  कायदा  क्या  है ?
-दोनों  हाथों   की  हथेलियों
को  जोड़कर अपनी  छाती  के  आगे  लाना  चाहिए और  नमस्ते  कहकर  प्रणाम  करना  चाहिए ।
-इसका  मतलब  मेरी  समझ से  बाहर  है ।
-इसका  मतलब  है  हमारे  दिलों का  मिलन  हो  जाये । प्रेम  और  नम्रता से  हाथ बढ़ाने  का  यह  सबसे  अच्छा  तरीका  है । अंकल  ने  समझाया ।
-अब  तो  मैं  सबसे  नमस्त्ते  करूंगा । 
अंकल  के  चेहरे    पर  मुस्कान  फैल  गयी I धीरू  के  पिता  भी  मुस्करा  रहे  थे I अपने  दोस्त  की  चतुराई  पर  इठलाते  हुए वे  घर  लौट  गये ।

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One Response to सुधा भार्गव की बाल कहानी - नमस्ते

  1. प्रेरणाप्रद कहानी है। अच्छी लगी।

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