विनोद स्‍वामी की पाँच कविताएँ


नाम: विनोद स्वामी : परिचय
जन्म: १४ जुलाई १९७७
जन्म स्थान: परलीका, जिला हनुमानगढ़ राजस्थान
शिक्षा: एम ए राजस्थानी व राजनीति विज्ञान, बीजेएमसी
प्रकाशित कविता संग्रह: आंगन देहरी और दीवार, गीत-गुलशन व वीरों को सलाम
पुरस्कार-सम्मान: चंद्रसिंह बिरकाळी साहित्य पुरस्कार, सुगन साहित्य सम्मान, चौ दौलतराम सहारण  

साहित्य एवं अवार्ड
पत्रकारिता: राजस्थान पत्रिका एवं दैनिक भास्कर के लिए संवाद संकलन
प्रसारण: आकाशवाणी से रचनाओं का निरंतर प्रसारण
संप्रति: अध्यक्ष, साहित्यग्राम संस्थान, परलीका। प्रदेश प्रचारमंत्री,अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति।
यात्रा: राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए प्रचार-प्रसार हेतु प्रदेश के आठ जिलों के हजारों गांवों  में जनसंर्पक व पुस्तक विक्रय, मायड़भाषा रथयात्रा के साथ हनुमानगढ़ से दिल्ली तक राजस्थान के विभिन्न जिलों के गांवों कस्बों, शहरों से होते हुए रोमांचक यात्रा
पता: मु पो- परलीका, वाया- गोगामेड़ी, जिला- हनुमानगढ़ पिन- ३३५५०४
संर्पक सूत्र- ९८२९१-७६३९१ 
*******************************************************
(१) मेरा घर

पिछली बरसात में
रोया
मेरा घर
छत को
आंख बना ।

अबके
आंधी में
उड़ गई
छप्पर की पगड़ी।

दीवारें
जर्जर
पर
कितनी है तगड़ी।


(२) धूप

चांदनी
आंधी और बरसात
मेरे घर आने को
तरसते हैं सब
सूरज की पहली किरण
मेरे आंगन में आकर
खोलती है आंख।

चांदनी को
गोद में उठाकर
यही आंगन
रात भर करता है प्यार।

आंधी का झौंका
भाग कर घुसता है
मेरे घर में
बाबा के फटे कुत्र्ते की
हिलती बांह से
लगता है
आंधी हाथ मिला रही है
बाबा से।

आंधी
आंगन में घंटों
घूमचक्करी खेल कर
मेरे सोते हुए
मासूम बच्चों की
पुतलियों में
रुकने का प्रयास।

मेरी बीवी के गालों
बच्चों की जांघों
मां की झुर्रियों में
बरसात अपने रंग
खूब दिखाती है।

असल में
बरसात में मेरा घर
रोते हुए बच्चे को
अचानक आई
हंसी जैसा होता है।
तब मुझे लगता है

धूप-चांदनी
आंधी और बरसात
छोड़कर
नहीं जाना चाहते
मेरे घर को।


(३) जिन्दगी

जिन्दगी
घास है
जिसे
वक्त का घोड़ा
चर रहा है
थोड़ा -थोड़ा।

(४) पुल


रात भर
गुजरती है दुनिया
इसके नीचे से
तीन सौ फिट लंबा
सात फिट चौड़ा
यह  रेलवे पुल
शाम होते ही
उस भीखमंगे की
चारपाई बन जाता है।
अगर गालिब इसे
सोए हुए देखता तो
अपना शेर बदल देता ।

सूर तो
देख पाता नहीं
मगर इस पर
जरूर कोई
नई बात कहता।

यही पुल
होता अगर
कबीर के जमाने में
तो वह इसे
दुनिया की
सबसे बड़ी
खाट कहता ।

कोई फक्कड़
इससे भी आगे कहता;
इस पुल पर
सोने को
जीवन का
सबसे बडा+
ठाट कहता।

(५) छाते


वैसे तो
अपनी मर्जी के
मालिक हैं ये
पर हमारी नजरों में
आकाश में उड़ते
ये बादल
छाते हैं हमारे।

******* 
-विनोद स्‍वामी
द्वारा श्री ओम पुरोहित 'कागद'

Posted in . Bookmark the permalink. RSS feed for this post.

4 Responses to विनोद स्‍वामी की पाँच कविताएँ

  1. VINOD SWAMI KEE SABHEE KAVITAAYEN ACHCHHEE HAIN.
    DHERON BADHAAEEYAN.

    ReplyDelete
  2. sabhi kavitayen acchhi hain !
    khas kar 'Zindagi" bahut acchhi lagi.

    ReplyDelete
  3. कमाल की रचनाएँ हैं, एक अलग अंदाज है विनोद जी की रचनाओ में, ताज़ी हवा के झोंके की तरह लगी ये रचनाएँ!

    ReplyDelete

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए कोटिशः धन्यवाद और आभार !
कृपया गौर फरमाइयेगा- स्पैम, (वायरस, ट्रोज़न और रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त) टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन ना चाहते हुवे भी लागू है, अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है. कृपया अपना सहयोग बनाए रखें. धन्यवाद !
विशेष-: असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.