हरेकृष्ण मेहेर की तीन कविताएँ







(1)
प्रिय-मिलन
प्रियतम के साथ
जब निश्‍चित रूप से
होता है मेरा मिलन,
तब मेरे लिये
मुझे कम लगता है
सुखमय स्वर्ग-भुवन
*
मन का वृक्ष जब
उत्कण्ठा से विचलित था,
मेरा कोमल चञ्चल
धीरज-पल्लव टूट गया सर्वथा
*
प्रियतम जब पास नहीं,
मेरी आँखें रातभर
प्रतीक्षा से बड़ी हो जाती थीं
अत्यन्त व्याकुल होकर
*
कुमुदिनी प्रफुल्ल नहीं होती
चन्द्रमा के विरह से,
हृदय मेरा व्यथित हो उठता
प्रियतम के बिना वैसे
*
जब सुनाई पड़ी
कोयल की सुमधुर बोली,
तब लज्जा सहित विमोहित हो उठी
मेरी मौनता बड़ी भोली
*
रोमाञ्चभरा मङ्गलमय सुरभित
शुभ्र मुस्कान-शोभित
प्रेम-पुष्प उन्हें
तब अर्पण कर दिया मैंने "
☆☆☆☆☆☆ 
 (2) 

गरिमा कवि की
विधाता से बढ़कर उसकी सृष्टि-रचना ;
भाती अद्‌भुत उसकी उद्‌भावना
गूंगे मुख से बहाता
वाणी-गंगा की अमृत-धार
पाषाण के अंगों में जगाता
मञ्जुल सञ्जीवनी अपार
लेखनी में उसकी छा जाती
सहस्र सूर्य-रश्मियों की लालिमा
अंशुमाला उज्ज्वलता फैलाती ;
हट जाती तिमिर-पटल की कालिमा
वही कवि तो है क्रान्तदर्शी,
सार्थक उसकी रचना मर्मस्पर्शी
अतीन्द्रिय अतिमानस के राज्यों में विहर
भाती उसकी प्रतिभा सुमनोहर
रस-रंगों के संगम की तरंगों से,
जीवन की विश्वासभरी उमंगों से
लिखता रहता कवि निहार चहुँ ओर,
कभी मधुर सरस, कभी तीता कठोर
उसकी कुसुम-सी कोमल कलम
जब करने लगती सर्जना,
निकलती कभी संगीत संग गूँज छमछम,
फिर कभी स्वर्गीय वज्रों की गर्जना "
☆☆☆☆☆☆
 
(3)
बादल तू ही सुधा-जल तू ही
बादल तू ही, सुधा-जल तू ही्,
शीतल तू ही, सुकोमल तू ही
प्रभु हे ! हरि तू ही हरे सब घाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
अन्दर तू ही, उपेन्दर तू ही,
सुन्दर तू ही, समुन्दर तू ही
प्रभु हे ! तेरा रूप नयनाभिराम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
निर्मल तू ही, समुज्ज्वल तू ही,
भक्त-आँखों का कज्जल तू ही
हरि हे ! तू ही सज्जन-शीश-ललाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
भक्ति-सुधा का झरना बहे,
मन में रहे, ये रसना कहे
हरि हे ! सदा हरेकृष्ण हरेराम,
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
इन्द्र-धनुषी सरगम तू ही,
जीवन-कला- सुसंगम तू ही
प्रभु हे ! तू ही ब्रह्म-नाद सुख-धाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
ईश्वर तू ही, अनश्वर तू ही,
अम्बर तू ही, चराचर तू ही
प्रभु हे ! तुझे मेरा अनन्त प्रणाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
जग-निर्माता, तू ही विधाता,
सबसे है तेरा अनमोल नाता
हरि हे ! तू ही आदि मध्य परिणाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
तुझे मैं चाहूँ , तुझको बुलाऊँ,
तेरे बिन कैसे शोक भुलाऊँ ?
प्रभु हे ! फिर कैसे रहूँ निष्काम ?
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
तेरे चरणों में खुशियाँ प्यारी,
तेरी माया है, ये दुनिया सारी
हरि हे ! ले भक्त-जनों को थाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ()
*
जग में अकेला, तू ही निराला,
आनन्द-भरा सुबह का उजाला
प्रभु हे ! फिर तू ही शान्तिभरी शाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम (१०)
*
हर दुःख में भी, रहे सुख में भी,
हृदय में गूँजे, मेरे मुख में भी
हरि हे ! तेरा मंगलमय शुभ नाम
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम (११)
☆☆☆☆☆☆☆☆☆
रचनाकार परिचय

डॉ. हरेकृष्ण मेहेर

जन्म : ५ मई १९५६, सिनापालि (ओड़िशा)

पिता :  कवि नारायण भरसा मेहेर
माता : श्रीमती सुमती देवी
मातृभाषा : ओड़िआ  ।

 राष्ट्रीयता : भारतीय ।
शिक्षा : रेवेन्शा महाविद्यालय कटक में अध्ययन पूर्वक उत्कल विश्वविद्यालय से बी.ए. संस्कृत आनर्स, प्रथम श्रेणी में प्रथम (१९७५) ; बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से तीन उपाधियाँ * * एम्.ए. संस्कृत, स्वर्णपदक प्राप्त (१९७७), पीएच्.डी. संस्कृत (१९८१), डिप्लोमा इन् जर्मन् (१९७९) ।
विशेष विषय - भारतीय दर्शन ।
पुरस्कार : बी.ए. संस्कृत आनर्स में सर्वोच्च स्थान अधिकार हेतु रेवेन्शा महाविद्यालय से जगन्नाथ मिश्र स्मारकी पुरस्कार प्राप्त । एम्.ए. संस्कृत परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्ति हेतु बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय-स्वर्णपदक, श्रीकृष्णानन्द पाण्डेय सहारनपुर-स्वर्णपदक, काशीराज-पदक एवं पुरस्कार से सम्मानित ।
सारस्वत साधना :
अध्यापक, कवि, गवेषक, समालोचक, प्राबन्धिक, गीतिकार, स्वर-रचनाकार, सुवक्ता और सफल अनुवादक के रूप में परिचित । ओड़िआ, हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत एवं कोशली – इन पाँच भाषाओं में मौलिक लेखन तथा अनेक श्रेष्ठ काव्यकृतियों के छन्दोबद्ध अनुवाद । राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रपत्रिकाओं में शोधलेख, प्रबन्ध और कविता आदि प्रकाशित । अनेक मौलिक और अनूदित पुस्तकें प्रकाशित । अन्तर्जाल पर अपने वेब्‌साइट् में कई लेख प्रकाशित । विश्‍वसंस्कृत-सम्मेलनों, राज्य-स्तरीय अनेक सम्मेलनों एवं संगोष्ठियों में शोधलेख परिवेषण तथा कवि-सम्मेलनों में सक्रिय योगदान । संस्कृत के सरलीकरण और आधुनिकीकरण की दिशा में विशेष प्रयत्‍नशील । आकाशवाणी और दूरदर्शन आदि में लेख, परिचर्चा और कविताएँ प्रसारित ।
पितामह दिवंगत कवि मनोहर मेहेर पश्‍चिम ओड़िशा के “गणकवि” के रूप में परिचित । कवि-परम्परा से मौलिक सर्जनात्मक-प्रतिभासम्पन्न डॉ. मेहेर की भाषा-साहित्य एवं सङ्गीत कला में विशष अभिरुचि । कई उपलक्ष्यों में स्वरचित संस्कृत-गीतियाँ एवं कोशली गीत एकल तथा वृन्दगान के रूप में परिवेषित । हाथरस उत्तरप्रदेश की लोकप्रिय ‘संगीत’ पत्रिका में अपनी मौलिक नवीन छन्दोबद्ध संस्कृत गीतियों सहित स्वरचित स्वरलिपियाँ प्रकाशित । प्रसिद्ध संगीतकार पण्डित एच्. हरेन्द्र जोशी-रचित स्वरलिपियाँ भी वहाँ प्रकाशित । डॉ. मेहेर-कृत संस्कृत गीत “नववर्ष-गीतिका” की आडियो कैसेट् एवं वीडियो कैसेट् मध्यप्रदेश की रतलाम एवं जावरा आदि नगरियों में स्थानीय टी.वी. चैनलों पर प्रसारित । कुछ विश्‍वविद्यालयों के प्रस्तुत शोध-ग्रन्थों में तथा अन्यत्र अनेक विद्वानों के शोधलेखों में डॉ. मेहेर संस्कृत कवि एवं मौलिक लेखक के रूप में संस्कृत गीतियों सहित चर्चित ।
 
सम्मान प्राप्त :
* सांस्कृतिक परिषद, पाटनागड़ से “गंगाधर सम्मान” (२००२),
* गंगाधर साहित्य परिषद, बरपालि से “गंगाधर सारस्वत सम्मान” (२००२),
* निखिलोत्कल संस्कृत कवि सम्मेलन, कटक से “जयकृष्ण मिश्र काव्य सम्मान” (२००३),
* राज्यस्तरीय पण्डित नीलमणि विद्यारत्न स्मृति संसद, भुबनेश्वर से “विद्यारत्‍न प्रतिभा सम्मान” (२००५) ।
* राज्यस्तरीय स्वभावकवि गंगाधर स्मृति समिति, बरपालि से "गंगाधर सम्मान" (२००९) - अशोक चन्दन स्मृति पुरस्कार ।
मानपत्र एवं अभिनन्दन प्राप्त : 

*  खरियार साहित्य समिति, राजखरियार (१९९८)
* गदाधर साहित्य संसद, कोमना (१९९८)
* सम्बलपुर विश्वविद्यालय, ज्योतिविहार (२०००)
* शिक्षाविकाश परिषद, कलाहाण्डि (२००३)
* कलाहाण्डि लेखक कला परिषद, भवानीपाटना (२००३)
* अभिराम स्मृति पाठागार ट्रष्ट, भवानीपाटना (२००६)
* एवार्ड़् ऑफ एप्रिसिएशन् (जयदेव उत्सव-२००८)ओड़िशी एकाडेमी, लोधी मार्ग, नई दिल्ली ।
= = = =
* १९८१ से ओड़िशा शिक्षा सेवा (ओ. ई. एस्.) में संस्कृत अध्यापक के रूप में योगदान । सरकारी पञ्चायत महाविद्यालय बरगड़ एवं फकीरमोहन महाविद्यालय बालेश्‍वर में अध्यापना के बाद सम्प्रति सरकारी स्वयंशासित महाविद्यालय, भवानीपाटना में संस्कृत के वरिष्ठ रीडर एवं विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत ।
प्रकाशित कृतियाँ :
(१) पीएच्. डी. शोधग्रन्थ “Philosophical Reflections in the Naisadhacarita”.
(२) मातृगीतिकाञ्जलिः (मौलिक संस्कृत गीतिकाव्य)
(३) नैषध-महाकाव्ये धर्मशास्त्रीय-प्रतिफलनम्
(४) साहित्यदर्पण- अळङ्कार
(५) श्रीकृष्ण-जन्म
(६) श्रीरामरक्षा-स्तोत्र (शिवरक्षा-स्तोत्र सहित अनुवाद)
(७) शिवताण्डव-स्तोत्र
(८) विष्णु-सहस्र-नाम
(९) गायत्री-सहस्र-नाम
(१०) मनोहर पद्यावली (संपादित)
(११) स्वभावकवि गङ्गाधर मेहेर-कृत ओड़िआ “तपस्विनी” महाकाव्य का हिन्दी अनुवाद ।
(१२) स्वभावकवि गङ्गा्धर मेहेर-कृत "तपस्विनी" महाकाव्य का अंग्रेजी अनुवाद ।
* भर्त्तृहरि-शतकत्रय (नीतिशतक, शृङ्गार-शतक एवं वैराग्य-शतक) के सम्पूर्ण छन्दोबद्ध ओड़िआ अनुवाद ।
* कविवर राधानाथ राय-कृत ओड़िआ कविता “बर्षा” का संस्कृत श्‍लोकानुवाद ।
* तपस्विनी-चतुर्थ सर्ग के अंग्रेजी एवं संस्कृत पद्यानुवाद ।
* श्रीहर्ष-कृत नैषधचरित-नवमसर्ग का ओड़िआ पद्यानुवाद ।
* महाकवि कालिदास-कृत रघुवंश-द्वितीय सर्ग, कुमारसम्भव के प्रथम, द्वितीय, पञ्चम एवं सप्तम सर्गों का ओड़िआ पद्यानुवाद ।
* कोशली मेघदूत (कालिदास-कृत मेघदूत काव्य का सम्पूर्ण कोशली गीत रूपान्तर) ।
अप्रकाशित (मौलिक) :
संस्कृत में : पुष्पाञ्जलि-विचित्रा, सारस्वतायनम्, सौन्दर्य-सन्दर्शनम्, सावित्रीनाटकम्, जीवनालेख्यम्, मौन-व्यञ्जना ।
ओड़िआ में : आलोचनार पथे, भञ्जीय काव्यालोचना, भञ्ज-साहित्यरे जगन्नाथ तत्त्व, घेन नैषध पराये, ओड़िआ रीति-साहित्यरे दार्शनिक-चिन्तन, निबन्धायन, कबिताबली, शिखण्डीकाव्य ।
अंग्रेजी में : Poems of the Mortals, Glory.
हिन्दी में : हिन्दी-सारस्वती, कुछ कविता-सुमन ।
कोशली में : कोशली गीतमाला ।
अप्रकाशित (अनुवाद) :
संस्कृत से ओड़िआ : श्रीमद्-भगवद्‍-गीता, कुमारसम्भव, ऋतुसंहार, मेघदूत, रघुवंश ।
संस्कृत से हिन्दी  : मातृगीतिकाञ्जलिः ।
संस्कृत से अंग्रेजी  :  शिवताण्डव-स्तोत्र ।
ओड़िआ से हिन्दी :  कवि गङ्गाधर मेहेर-प्रणीत ‘प्रणय-वल्लरी’, ‘अर्घ्यथाली’, ‘कीचकवध’ काव्य ।
ओड़िआ से अंग्रेजी :  कवि गङ्गाधर मेहेर-प्रणीत  'अर्घ्यथाली' ।
ओड़िआ से संस्कृत  : तपस्विनी, प्रणयवल्लरी, अर्घ्यथाली ।
= = = =
पता :
Dr. HAREKRISHNA MEHER
Sr.Reader & Head, Department of Sanskrit,
Government Autonomous College,
BHAWANIPATNA - 766001, Orissa (India)
                               
Phone :  +91-6670-231591  
Mobile : +91-94373-62962
e-mail :  meher.hk@gmail.com

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One Response to हरेकृष्ण मेहेर की तीन कविताएँ

  1. बहुत सुन्दर रचनाएँ..बधाई !!
    ____________
    'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com

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