प्रताप सहगल परिचय |
मेरे घर के आँगन में
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- प्रताप सहगल
प्रताप सहगल परिचय |
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कबूतर और मैं : वास्तविकता है
ReplyDeleteNAYAPAN HAI.KAVITAA KAHANE KI NAYI PARIPAATHEE DELHU HAI.
ReplyDeleteअपनी माटी
माणिकनामा
बेहतरीन कविता का उदाहरण। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है ... बिलकुल दृश्य जैसा दिख गया सब कुछ ...
ReplyDeleteप्रिय प्रताप,
ReplyDeleteकविताएं सहज ऒर मार्मिक हॆं । विशेष रूप से ३ मन को छू गई ।
बधई । -- दिविक रमेश
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
ReplyDeleteसर, आपकी कविता सच में सोचने पर मजबूर करती है। यही किसी भी महत्वपूर्ण रचना की कसौटी होती है। बधाई।
ReplyDeleteकविताओँ की अंतर्कथा द्रवित करती है।संवेदना के सूक्ष्म बिम्ब किसी को भी भावुक करने मे सक्षम हैँ।चिँतन का व्यापक फलक प्रभावित करता है।बधाई!
ReplyDeletesahaj chitran per marmik arth samete huye hai ....achha laga pad ker
ReplyDeleteSUNDAR AUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI KE LIYE BAADHAAEE
ReplyDeleteAUR SHUBH KAMNA.
महत्वपूर्ण रचनाएं हैं जो मन को छू गईं.
ReplyDeleteमहावीर शर्मा
प्रताप जी से रुबरु हो कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteBahut hi sundar kavitaye hai... Narendraji ke dvara yaha pahucha hu... unka bhi dhanyavad
ReplyDeletePankaj Trivedi