अमित शर्मा की चार कविताएं












चरित्र चर्चा...



बडे एक शापिंग मॉल के


महंगे एक कैफे में


कर रहीं थी वो चुहल !


चर्चा बड़ी ही ख़ास थी


शर्मा जी के बेटी


जो दिखी वर्मा जी के बेटे के साथ थी !


एक ने कहा, " देखा "पर " निकल आए है !"


दूजी कहाँ चुप रहने वाली थी


अरे आप को नही होगा पता


"सुबह से शाम गुजरती साथ है "


आज कल तो बच्चो का चलन ही खराब है !


चर्चा चलती गई और कालिख पुतती गई !


घनन -घनन तभी मैडम का फ़ोन घंनाया


हंस खिलखिला कर दो बातें हुई


थोडी देर में मिलने का समय ठहराया !


किया सहेली को विदा अपनी


और घर फ़ोन लगाया


बेटा , पापा को बोलना


मम्मा को अर्जंट मीटिंग का कॉल आया,


आते घर शाम को देर होगी जरा !


थोडी देर गये पापा का भी फ़ोन आया था


फंस गये है वो मीटिंग में ये फरमाया था ,


मम्मा, बेचारी को कहाँ था पता


पापा की मीटिंग है उसी सहेली के साथ


चरित्र चर्चा चल रही थी जिसके साथ ...
*******


फर्क कहाँ हुआ ???


उतारे जो उसने


कपड़े अपने तन से


मिटाने को भूख


अपने पेट की और


बेचा अपना शरीर


नाम हुआ "वेश्या"...


उतार कपड़े अपने


जब चलती


वो बल खाके


आगे एक कैमरे के


मिलती ख्याति


होता नाम...


सौंपती जब खुद को


करने नया अनुभव वो


बस चंद रातो को


फिर मिलता नाम


"वेश्या" नहीं अब


सम्मानित स्त्री का स्थान ...


क्या अलग दोनों ने किया???


कमाल है


फर्क फिर भी हुआ यहाँ...


(रास्ट्रीय स्तर की एक महिला खिलाडी के धन और काम के आभाव में वेश्या वर्ती में आने पर ...)
*******


जुगाड़ की कहानी ...


बचपन से सुना है एक शब्द हर मोड़ पर ...


नाम है उसका "जुगाड़ "


जो भी मिलता "जुगाड़ " का चर्चा करता ...


कैसे हुआ ये पैदा


इसकी भी अपनी कहानी है ,


जो पेश अपनी जुबानी है ...


हुई जब चाह एक बच्चे की,


किया गया "जुगाड़" के बेटा हो ...


हुआ बडा जब वो बच्चा,


किया "जुगाड़" स्कूल उसका अच्छा हो ...


बच्चे मास्टर जी के भी थे,


किया "जुगाड़" के कुछ टयूशन हो...


स्कूल , कालेज हुआ अब पुरा ,


लगा "जुगाड़" की डिग्रियां जमा ...


डिग्रिया तो आ गई अपने हाथ ,


किया "जुगाड़" नौकरी बढिया हो ...


"जुगाड़" सारे काम अपना कर गये ,


पटरी पर आ गई जीवन की गाड़ी ...


अब तो बच्चा जवान हो चला ,


दोहरानी है फ़िर यही कहानी ...


"जुगाड़" भी गज़ब है ,


देता "दो बूँद जिन्दगी की "...


चाहती है दुनिया ,


हमसे मिल जाए उनको भी ये "जुगाड़"...


जानते वो नही ,


चलते हम हिन्दुस्तानी लेकर नाम "जुगाड़"...
*******


आई-टी २०५० में ...


दोपहर को जब साहिब-जादे उठे


कुछ उदास से लगे


यों तो दिन सूरज चढ़े ही होता है


मगर यदा कदा दोपहर को भी होता है


हाल जब पूछा, तो यों जबाब आया


डैड,


सिस्टम मेरा सारा डाउन है


बिहेव बडा इम्प्रोपर है


प्रोसेसिंग हो रही स्लो हैं


मेमोरी से सी-पी-यू को सिग्नल नही जाता है


डाऊनलोड कुछ हो नही पाता है


प्रोसेसिंग शुरू होते ही सिस्टम हंग हो जाता है


कल से हार्ड डिस्क मेरी ब्लंक है


कल गर्ल फ्रंद का ई-मेल आया था


प्रोपोसल का रिफियूज़ल उसमें पाया था


पिंग भी कर दिया उसने ब्लाक है


सी-पी-यू तब से देता बीप है


हुआ वायरस एटैक सा मेरा हाल है


साहिब-जादे की हालत हमे समझ आ गई


फॉर्मेट अपने सिस्टम को कर डालो


पढ़ई का उसमे ओ-एस डालो


फिर न हो कोई वायरस एटैक


इसलिए लगाओ स्पोर्ट्स का फायर वाल


झट सॉल्यूशन हमने दे डाला


२०५० का है अपना अंदाज़ निराला


आई-टी बनके रह गया जग सारा...
************
- अमित शर्मा
मेरठ (उ.प्र.)

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17 Responses to अमित शर्मा की चार कविताएं

  1. ek dam se ras badal diya.khar!
    mujhe in kavitaon ne prabhavit nahin kiya.
    aaj kal pratikool tippani karna bhi ghatak hai.vyas ji & gazani ji,
    kadam aage ki or rakhna chahiye.

    ReplyDelete
  2. सुनील जी आपकी आखर कलश की इस यात्रा में लगातार आने और पढ़ने का मौक़ा मिलता है. कभी कभार तो ठहर कर रचनाएँ की भी बहुत इअछा होती है.अमित बाबू की चरों कवितायें जुदा जुदा अनदाज की है.पहली समाज की सच्चाई पर चोट करती है.दूसरी बिंदु को पूरा करती लगती है.तीसरी ठीक ठाक है,थोड़ी और मेहनत की गुन्जाईस है.चौथी में हिंदी की कुछ गलतियाँ है या ये आपका अंदाज खैर. पूरे रूप में बधाई.

    अपनी माटी
    माणिकनामा

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  3. चारों कविताएं अच्छी लगी।

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  4. विभिन्न संवेदनाओं को व्यक्त कर दिया कवि ने हृदयस्पर्शी तरीके से.. समाज की बुराइयों की ओर भी इंगित किया..
    कई बार वाह निकली कई जगहों पर. बधाई अमित शर्मा जी को और आपका आभार सुनील भाई.

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  5. साहित्‍य समाज का आईना होता है, और आईना कभी कभी वह दिखाता है जो हम देखना नहीं चाहते। आईना दिखाती कवितायें लाये हैं अमित।

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  6. Bahut hi kamal ka likha hai.........Congrats.
    Jolly Uncle
    www.jollyuncle.blogspot.com

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  7. बहुत सुन्दर है चारों कविता ... व्यंग्य हास्य और करून रस तीनो है ...

    आप मेरे ब्लॉग में आये और हौसला अफजाही किये इसके लिए शुक्रिया !

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  8. Thanks to all for the comments... and thanks to OM ji as well... actually i felt happy on your comments... such comments help to improve provided some guidelines are alos given.

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  9. Nashkar Mr. Purohit ji apse milkar bhut khushhi huyi pahli bar aise shaksh se samna hai jisne ek bhi line kisi k paksh me na karke use us spot se nikalne ki koshish ki... char kavitaye likhi hai is bande ne kya galt hai?? kha kami hai??? ..agr tin galat hai bhi to ek to bhut khub me se hai...lgta hai ap unme se hai jinka najriya badhne walo ko rasta dikhane se nhi or bhtkane se hota hai...ap age se kisi ko tippadi na hi kare to achcha hai kam se kam aise lafjo se kisi ka hosla to na ruke....wese mujhe or sabhi ki trh ye sari panktiya bhut achchi lagi or me chahungi ki ye banda khub likhe me khud is bande ki kavitaye publish karungi... thanks

    ReplyDelete
  10. maine amit ji ki kavitaon ko bura kab kaha?maine likha -"in kavitaon ne mujhe prabhavit nahin kiya" ab agar mujhe prabhavit nahin kiya to nahin kiya.koi jabardasti hai kya?
    vaise pasand apni apni hoti hai.kisi ki pasand meri pasand kaise ho sakti hai.
    maine kisi ki vyaktigat burai nahin ki.sarvjnik roop se likhne walon ko kabhi prasansa milti hai to kabhi aalochnaon ka samna karna padta hai.is me preshan hone ki koi bat nahin hai.
    *nindak niyre rakhiye,aangan kuti chhavay.
    *aalochana or seekhne ki prerna deti hai jab ki prasansa dambhit karti hai jo seekhne me badhak hoti hai.
    *sampadak ji, aayanda rachnaon ke niche note lagayen ki -in rachnaon ki keval prasansa hi karni hai aalochana bardast nahin hogi.

    ReplyDelete
  11. wese Purohit ji alochna hoti to bat hi kya thi...kuch sikhne ko milta ise jaroor,apse to wese bhi bhut ummid lga sakte hai kyuki ap to bhut exp. bande hai...lekin apne jo last line me likha Meaning pura badal gya,iska to sidha matlab ye hua ki vyas ji,ghzani ji kadam age ki or rakhe matlab apke jeso ko chune ya pahle apse puch le...Any ways alochna karni hai to dil khol k kare lekin kavitaoo per,koi or sandesh na de, pasand nhi ayi to likh do bekar hai, or sabse achcha hai use salah do ki yha change kare, kuch is trh se likhe,thoda sikhaye purohit ji, is bande k kayi blog mene pade hai or aj tak itna galat wakyansh kisi ne nhi likha,me is badne ki koi nhi lgti lekin jo sahi hai wo hona chahiye...me samjh sakti hu uske dil pe kya biti hogi jisne sabse phli bar rachnaye di or apne sikhaya kuch nhi uper se ktaksh kiya...better dont comment like this any more on any one's poem,koi dil se likhta hai,haal to likhte hi kitna hai aj kal k log,kadar kariye un sabhi ki, improve their talent if u can...Thank You

    ReplyDelete
  12. kiya aap apni kavitaon se mutmain han

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  13. @ irshad: Not yet ... i am very new to this and there is limit to learn...

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  14. पुरोहित जी ने जो आलोचना की है उससे में सहमत हूं ! आलोचना कवि को सिखने का मौका देती है. खुश करने वाली और मन बहलाने वाली आलोचना अमित जैसे कवियों को गलत संदेश दे सकती है.मैं समझता हूं कि अमित का भला चाहने वालों में पुरोहित जी अग्रणी हैं.

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  15. आदरणीय अमित शर्मा जी,
    प्रणाम,
    मैने पहली बार आपकी यहाँ पोस्ट की हुई सारी कविताओ को पढ़ा , वाकई बेहतरीन है, बातो बातो मे आपकी कविताये बहुत कुछ कह देती है और पढ़ने वाले को सोचने पर मजबूर कर देती है साथ ही कविता मे उठाई गई प्रश्न निरुत्तर कर देते है,सरल भाषा मे आपकी लिपि कविता को जन मानस तक ले जाते है,बहुत ही सुंदर और ससक्त अभिव्यक्ति है आपकी,

    एक निवेदन है, यदि आप चाहे तो अपनी कविताओ को मेरे द्वारा संचालित किये जा रहे वेबसाइट पर भी पोस्ट कर दे ताकि आप की इस बेसकिमती कविताओ को ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य भी पढ़ सके और लाभ उठा सके |

    ReplyDelete

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