अशोक लव |
प्रकाशित पुस्तकें-
१. लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान ( कविता-संग्रह)
२.अनुभूतियों की आहटें ( कविता-संग्रह)
3टूटते चक्रव्यूह (सम्पादित-कविता संकलन)
४.सलाम दिल्ली ( लघुकथा - संग्रह )
५.खिड़कियों पर टंगे लोग ( सम्पादित लघुकथा संकलन )
६.बंद दरवाजों पर दस्तकें (सम्पादित लघुकथा-संकलन)
७.शिखरों से आगे (उपन्यास )
८. हिन्दी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार
९. प्रेमचंद की लोकप्रिय कहानियाँ (सं)
१०.प्रेमचंद की सर्वोत्तम कहानियाँ (सं )
११.वाल्मीकि रामायण (सं )
१२. महाभारत (सं )
१३.बुद्धचरित (सं )
१४.चाणक्य - नीति (सं)
१५.महक ( बाल गीत )
१६. फुलवारी (बाल गीत )
१७.युग नायक महापुरुष
१८.युग प्रवर्तक महापुरुष
लगभग १५० पुस्तकों में रचनाएँ संकलित. उपन्यास और कविता संग्रह पर छह एम फिल हुईं. लगभग पचास पाठ्य-पुस्तकें प्रकाशित .
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1.नीले - सफ़ेद फूल
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ये नीले - सफ़ेद फूल
अब पूरी तरह खिल गए हैं ।
कुछ समय पूर्व तक इनका अस्तित्व नहीं था .
प्रतीक्षा थी
इन फूलों के खिलने की
एक -एक कर कितने दिन बीत गए
और अब
ये अपना सौन्दर्य बिखेरने लगे हैं.
क्या विडंबना है !
अब ये खिल गए हैं
और हमीं इन्हें देखने के लिए नहीं रहेंगे।
कितने-कितने स्वप्न सजाते हैं हम
और कैसे स्वप्न भंग होते चले जाते हैं
बस एक टीस टूटे काँच-सी
काटती रहती है हर पल ।
इन नीले - सफ़ेद फूलों को
कहाँ स्मरण रहेगा -किसी ने
उनके आगमन की प्रतीक्षा में
ऑंखें बिछा रखी थीं.
उनके संग जीने के
कितने-कितने स्वप्न सजा रखे थे !
कौन बदल सकता है
इन कटु सत्यों को ?
न चाहकर भी
जीना पड़ता इन स्थितियों को
और पल-पल टूटे काँच की कटन को
सहते जाना पड़ता है।
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2.लहरों कुछ तो कहो
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पाँवों के नीचे आकर
लौट जाती हैं लहरें
नहीं रुकती हैं पल भर के लिए
कितनी उत्सुकता से रहती है प्रतीक्षा ।
दूर से हिचकोले खाती लहर को आते देखकर
उससे बतियाना चाहता है मन
बहुत कुछ पूछना चाहता है मन
-उसके संसार की बातें
-तरह - तरह के रंग बदलते समुद्र की बातें
- ऐसे समुद्र के संग जीवन बिताने की बातें
लहरें हैं कि बस आती हैं
और झट से लौट जाती हैं ।
वह जिस तेज़ी से आती हैं
आभास होता है
आकर बैठेंगी
हाल-चाल बताएँगी
हाल-चाल पूछेंगी
मिलकर बाँटेंगे अपने - अपने अनुभव।
कितना अच्छा लगता है जब
कोई पास आकर बैठता है
अपनत्व का अहसास
अंतर्मन का स्पर्श करता चला जाता है ।
किसी के पास कहाँ है समय
पास आकर बैठने का,
बतियाने का
पूछने -बताने का ।
लहरों के पास भी नहीं है समय
तो फिर क्यों भागती चली आती हैं
क्यों करती हैं मन में अंकुरित
आशाएँ ?
संभवतः
उन्हें आशाओं की टूटन की
अनुभूति नहीं है।
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3.देह-दीपोत्सव
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कंपकंपाती देह के स्पंदनों ने
भर दिए अधरों में प्रकम्पन
झिलमिला उठा आकाश
महक उठी धरती।बादलों में चमक गई
विद्युती तरंगें
चुंधिया गई धरती
चुंधिया गया आकाश।
उतर आया प्रकाश - पुंज
जगमगा गया मन - आँगन
देह ने मनाया दीपोत्सव।
पाकर स्पर्श
उमंगित लहरों का
खिल उठे कोने- कोने में
गुलाब।
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- अशोक लव
फ्लैट-363 ,सूर्य अपार्टमेन्ट ,प्लाट-14 ,सेक्टर-6 ,द्वारका,नई दिल्ली-110075
(मो) 9971010063
संभवतः
ReplyDeleteउन्हें आशाओं की टूटन की
अनुभूति नहीं है।
वाह्…………………लहरों के माध्यम से ज़िन्दगी का दर्द बयाँ कर दिया………………॥तीनों ही रचनाये भावपूर्ण्।
इन नीले - सफ़ेद फूलों को
ReplyDeleteकहाँ स्मरण रहेगा -किसी ने
उनके आगमन की प्रतीक्षा में
ऑंखें बिछा रखी थीं.
ab aapke liye kya kahun...awismarniye
अशोक जी लव अच्छी कविताएं लिखते हैँ और यहाँ भी उनका फ़न सिर चढ़ कर बोलता है।बधाई!
ReplyDeleteअशोक लव की कवितायें संवेदना से भरी कवितायें हैं बधाई.09818032913
ReplyDeleteमेरी कविताएँ आप सबको अच्छी लगीं , धन्यवाद ! आप सब साहित्य सर्जक और साहित्य-प्रेमी हैं , आपकी प्रतिक्रियाओं का विशेष महत्त्व है. प्रिय नरेन्द्र व्यास जी का आभार,कविताएँ पाठकों तक आप ही के कारण पहुँचीं.
ReplyDelete-अशोक लव
acchi rachanao keliye mubarqbad
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