चन्‍द्रभान भारद्वाज की ग़ज़ल - देख ली

चन्‍द्रभान भारद्वाज
रचनाकार परिचय
नाम: चन्‍द्रभान भारद्वाज
उम्र: 72 वर्ष
स्‍थान: इन्‍दौर, मध्‍यप्रदेश, भारत

श्री चन्‍द्रभान जी बहुत ही स्‍फूतिवान व्‍यक्तित्‍व के धनी हैं जो जिन्‍दगी के हरेक पल को पूरी स्‍फूति के साथ जीने में विश्‍वास करते हैं ।
अभी तक आपके चार ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। (१) पगडंडियाँ (२)शीशे की किरचें (३)चिनगारियाँ (४)हवा आवाज़ देती है. पाँच ग़ज़ल संग्रहों में गज़लें सम्मिलित हैं। देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आपकी गज़लें प्रकाशित होती रहीं हैं। आकाशवाणी से भी आपकी रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। आप १९७० से अनवरत रूप से ग़ज़ल लेखन में संलग्न हैं।
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प्यार की हर कसम तोड़ कर देख ली 
प्रीति  छूटी  नहीं  छोड  कर देख ली

एक   अहसास  पीछा  नहीं  छोड़ता 
ज़िन्दगी हर तरफ मोड़ कर देख ली


अब पलक पर बने अक्स मिटते नहीं 
मूर्ति हर इक गढ़ी तोड़ कर देख ली 

रेशमी  डोर   की टाट  के  छोर  से  
गाँठ जुड़ती नहीं जोड़ कर देख ली 

पाँव बाहर कभी सिर कभी रह गया 
तंग चादर बहुत ओढ़ कर देख ली 

याद चक्कर लगाती वहीं रात दिन 
वह पुरानी गली छोड कर देख ली 

इक खनक दर्द की है 'भारद्वाज' बस 
प्रेम गुल्लक भरी फोड़ कर देख ली

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चन्‍द्रभान भारद्वाज

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19 Responses to चन्‍द्रभान भारद्वाज की ग़ज़ल - देख ली

  1. पाँव बाहर कभी सिर कभी रह गया
    तंग चादर बहुत ओढ़ कर देख ली

    bahut achchi gazal padhwayi hai aapne Narendra ji
    Shukriya

    ReplyDelete
  2. रेशमी डोर की टाट के छोर से
    गाँठ जुड़ती नहीं जोड़ कर देख ली ||

    गजल में अनुभवों का खजाना संजोया है। बधाई!

    ReplyDelete
  3. रेशमी डोर की टाट के छोर से
    गाँठ जुड़ती नहीं जोड़ कर देख ली
    गजल में अनुभवों का खजाना संजोया है। बधाई!

    ReplyDelete
  4. chanderbhan ji,
    ishq ki chadr ka hal yahi hota hai.kabeer ji ki bat dhyan rakhen-
    'tete panv pasariye,jeti lambi sor'
    fir ye bat nahin kahenge-
    'panv bahar kabhi sir kabhi reh gaya.
    tang chadrb bahut oudh kar dekh li.'
    khair!aapki gazhal achhi lagi.badhai ho!

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  5. चन्‍द्रभान भारद्वाजजी ,
    प्रणाम है आपको
    …और अनुभवों से लबरेज़ आपके प्रभावशाली शिल्प शौष्ठव को !

    ख़ूबसूरत ग़ज़ल है

    अब पलक पर बने अक्स मिटते नहीं
    मूर्ति हर इक गढ़ी तोड़ कर देख ली

    रेशमी डोर की टाट के छोर से
    गाँठ जुड़ती नहीं जोड़ कर देख ली

    याद चक्कर लगाती वहीं रात दिन
    वह पुरानी गली छोड कर देख ली

    विशेषतः इन शे'रों के लिए बधाई !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  6. रेशमी डोर की टाट के छोर से
    गाँठ जुड़ती नहीं जोड़ कर देख ली

    पाँव बाहर कभी सिर कभी रह गया
    तंग चादर बहुत ओढ़ कर देख ली

    बहुत उम्दा, बा मा’नी अश’आर और हालात पर बहुत पैनी नज़र से लिया गया जायेज़ा ,बहुत ख़ू्ब
    जायेज़ा

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  7. चन्‍द्रभान जी वरिष्‍ठ शायर हैं। उनकी इस ग़ज़ल के लिये आभार। बेहतरीन अशआर हैं। सीधी सादे अल्‍फाज़ को लेकर इतनी प्रभावशाली अभिव्‍यक्ति सरल नहीं होती। तीसरे शेर में शायद ग़लती से घड़ी की जगह गढ़ी टंकित हो गया है और छोड़ दोनों जगह छोड रह गया है।

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  8. भारद्वाज जी की ग़ज़ल पढ़कर हमेशा की तरह इस बार भी मुंह से एक ही लफ्ज़ निकला...वाह...उनके पास अनुभव का खज़ाना है जो ग़ज़ल के माध्यम से हम तक सतत पहुँचता रहता है...
    नीरज

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  9. श्रद्धेय भारद्वाज जी की रचनाएं
    नये लेखकों के लिए बहुत कुछ सिखाने का माध्यम हैं.

    एक अहसास पीछा नहीं छोड़ता
    ज़िन्दगी हर तरफ मोड़ कर देख ली

    हर शेर कोई न कोई दर्स दे रहा है.....
    मुझे ये शेर बहुत अच्छा लगा.

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  10. बहुत ही बढ़िया गजल ! लाजवाब! उम्दा प्रस्तुती!

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  11. एक अहसास पीछा नहीं छोड़ता
    ज़िन्दगी हर तरफ मोड़ कर देख ली
    ....... sahaj satya kee abhivyakti

    ReplyDelete
  12. जीवन का मर्म निचोड़ कर रख दिया रचना में,बहुतखूब बधाई हो।

    ReplyDelete
  13. प्यार की हर कसम तोड़ कर देख ली
    प्रीति छूटी नहीं छोड कर देख ली

    वाह.....

    एक अहसास पीछा नहीं छोड़ता
    ज़िन्दगी हर तरफ मोड़ कर देख ली

    वाह........एक शे’र याद हो आया

    कोई ग़म है जो ढूँढ लेता है
    मैं चला जाऊँ जब जिधर तन्हा

    और ये शे’र तो बहुत अच्छा है क्या कहने

    रेशमी डोर की टाट के छोर से
    गाँठ जुड़ती नहीं जोड़ कर देख ली

    बहुत ख़ूब
    अच्छे अश’आर हैं
    मेरी तरफ़ से मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ

    ReplyDelete
  14. bhardwaj ji ki gazalein to hamesha hi man moh leti hain ...........kis kis sher ki tarif karein poori gazal hi lajwaab hai.

    ReplyDelete
  15. भाई तिलक राज जी,
    आपने मेरी गज़ल पढ़ कर अपना अभिमत दिया इसके लिये आभारी हूँ। दोनो जगह 'छोड़' के स्थान पर 'छोड' यह छपने की त्रुटि हो गई है सही शब्द 'छोड़' ही है। उसी से काफिया मिलता है। 'गढ़ी' शब्द सही है। हर गढ़ी हुई मूर्ति तोड़ कर देख ली। यहाँ पर शब्द 'घड़ी' नही आयेगा। धन्यवाद।
    चन्द्रभान भारद्वाज

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  16. गजल में अनुभवों का खजाना संजोया है। बधाई!

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  17. पाँव कभी तो सिर बाहर रह गया
    तंग चादर बहुत ओढ़ कर देख ली
    mujhe to is tarah achchha laga raha hai.achchha na lage to maaf karen.

    ReplyDelete

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