शिक्षाः विज्ञान, पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक, प्राणी शास्त्र, हिन्दी साहित्य, समाज शास्त्र, भारतीय इतिहास में स्नातकोत्तर। इतिहास विषय में पीएच. डी. की उपाधि।
गीतसंग्रह
प्रकाशित कृतियां: (१) यादों के सावन (२) महुए की डाली पर उतरा बसंत (३) जीवन एक धुएं का बादल (४) गीत गाना चाहता हूं (५) आँख का तारा नहीं हूं (६) सुधियों के आरपार (७) जंगल एक गीत है- (भारत सरकार द्वारा ’’मेदिनी पुरस्कार‘ से सम्मानित) (८) देहरी पर दीप रख दो (९) यक्षप्रश्न (१०) बूढे हुए कबीर (११) उड चल मानसरोवर (१२) ’’मुगलकालीन शिक्षा, साहित्य और ललित कला‘‘ (शोधग्रंथ)
संपादनः काव्य संग्रह ’’मंजरी‘‘, ’’छत्तीसगढ के सरस स्वर‘‘ (छत्तीसगढ के प्रतिनिधि गीतकारों की रचनाओं का संग्रह), अनियतकालिक पत्रिका ’’छत्तीसगढ की माटी से‘‘ का संपादन।
साहित्य पत्रिका ’’नये पाठक‘‘ (त्रैमासिक) के संपादक।
प्रकाशनाधीनः’’कथा पचीसी‘‘(कहानी संग्रह), ’’दशमत‘‘(उपन्यास), साथ ही एक व्यंग्य संग्रह
विडियो एलबम्सः भक्तिपरक गीतों का ऑडियों एलबम ’’अब के अरज हमार‘‘ एवं ’’तोर जोत जले‘‘ गीत एवं गजलों का विडियो एलबम ’’अहसास‘‘ शीर्षक से जारी
संप्रतिः छत्तीसगढ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के कार्यकारी अध्यक्ष, अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी, अनेक संस्थाओं द्वारा साहित्यिक उपलब्धियों के लिये सम्मानित। संयुक्त नियंत्रक, नापतौल विभाग, छत्तीसगढ शासन, रायपुर।
डा,अजय पाठक की 'बोधिसत्व'और 'प्रेमचंद' कविताएं अच्छी हैँ।'दास कबीर' व'हम' कविताएं समाचार सरीखी हैँ। इस समष्टि मेँ सब कुछ हमारे समक्ष प्रदर्शित है और जो घटित होता है उसके भी कई बार हम द्रष्टा होते हैँ,तो क्या इस सब के आंखोँ देखे हाल के प्रकटिकरण को हम कविता कह देँगे।शायद हरगिज नहीँ।कुछ तो होगा जो यथार्थ व बिम्बोँ के प्रदर्शन को कविता बनाता है।यही समझ कविता का सिरजन व उसका विस्तार करती है।कविता का कौशल उसके कथानक से कहीँ ज्यादा बुनघट मेँ झलकता है।किसी बात को कविता कहना हो तो इस के लिए कहानी पर्याप्त है। खैर।अन्यथा न लेँ। अजय जी को उनकी कविताओँ के लिए बधाई!
ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित कथ्य कहने के लिये पहले तो अच्छा अध्ययन और फिर उसे वर्तमान से जोड़ पाना और फिर काव्य रूप देना, यह क्षमता तो आपकी कविताओं में खुलकर सामने है। इतिहास पुनरावृत्ति अवश्यंभावी है, रूप बदल जाते हैं। बधाई।
गीत अजय जी के रुचे, साधुवाद के पात्र. शिल्प-कथन में कसावट, होता अनुभव मात्र. कथ्य, भाव, लय, शब्द का चोखा कच्चा माल. 'सलिल' गीत की अजय ने उत्तम करी सम्हाल.
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ॐ श्री गणेशाय नमः ! या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना | याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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जब लोग गा रहे थे
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हम सपनों में देखते थे
प्यास भर पानी।
समुद्र था भी
रेत का इतराया
पानी देखता था
चेहरों का
या फिर
चेहरों के पीछे छुपे
पौरूष का ही
...
मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
अजय जी आप की दो कविताएं अच्छी लगी।
ReplyDeleteडा,अजय पाठक की 'बोधिसत्व'और 'प्रेमचंद' कविताएं अच्छी हैँ।'दास कबीर' व'हम' कविताएं समाचार सरीखी हैँ।
ReplyDeleteइस समष्टि मेँ सब कुछ हमारे समक्ष प्रदर्शित है और जो घटित होता है उसके भी कई बार हम द्रष्टा होते हैँ,तो क्या इस सब के आंखोँ देखे हाल के प्रकटिकरण को हम कविता कह देँगे।शायद हरगिज नहीँ।कुछ तो होगा जो यथार्थ व बिम्बोँ के प्रदर्शन को कविता बनाता है।यही समझ कविता का सिरजन व उसका विस्तार करती है।कविता का कौशल उसके कथानक से कहीँ ज्यादा बुनघट मेँ झलकता है।किसी बात को कविता कहना हो तो इस के लिए कहानी पर्याप्त है। खैर।अन्यथा न लेँ।
अजय जी को उनकी कविताओँ के लिए बधाई!
अजय जी की सभी रचनायें बहुत ही बेहतर हैं .....!!
ReplyDeleteSabhi rachnayen prabhavit karti hain.badhai.
ReplyDeleteachchha laga Ajay bhai ko padhna.. aur kavitaaon ke madhyam se unke man ke aandolanon ko janna
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा सभी कवितायेँ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित कथ्य कहने के लिये पहले तो अच्छा अध्ययन और फिर उसे वर्तमान से जोड़ पाना और फिर काव्य रूप देना, यह क्षमता तो आपकी कविताओं में खुलकर सामने है। इतिहास पुनरावृत्ति अवश्यंभावी है, रूप बदल जाते हैं।
ReplyDeleteबधाई।
अपने हाथों, अपने गुलशन की बर्बादी हम...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब.
प्रेमचंद कविता बहुत प्रभावित करती है.
एक से बढ़ कर एक कवितायेँ हैं और भाषा भी आसान.अच्छा लगा पढ़ कर बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें
ReplyDeleteगीत अजय जी के रुचे, साधुवाद के पात्र.
ReplyDeleteशिल्प-कथन में कसावट, होता अनुभव मात्र.
कथ्य, भाव, लय, शब्द का चोखा कच्चा माल.
'सलिल' गीत की अजय ने उत्तम करी सम्हाल.
अजय जी की सभी रचनायें बहुत ही बेहतर हैं
ReplyDeleteसभी कविताएं प्रभावशाली हैं।
ReplyDeleteतख्तों से चिपके बैठे हैं, मायावी सुल्तान
ReplyDeleteजुल्मजोर से तंग रियाया मुल्क हुआ शमसान
Ajay ji ko padkar soch bhi udaan bharne lagti hai..unki abhivyakti mein gagar mein sagar wali baat rahti hai.