आलम ख़ुर्शीद की तीन गज़लें







परिचय
नाम                     :   आलम ख़ुर्शीद
जन्म तिथि            :   ११ जुलाई १९५९
जन्म स्थान           :   आरा (भोजपुर) बिहार
शिक्षा                    :   एम. ए. , पत्रकारिता में स्नातक
प्रकाशित काव्य - संकलन:  (१)  नए मौसम की तलाश   (१९८८)  उर्दू  
(२)  ज़हरे गुल (१९९८)  उर्दू  (३)  ख्यलाबाद           (२००३)  उर्दू   (४)  एक दरिया ख़्वाब में     (२००५)  हिंदी (डायमंड प्रकाशन)  (५)  कारे-ज़ियाँ  (२००८)

विशेष:    पिछले बत्तीस वर्षों से देश विदेश की स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं में ग़ज़लें.कवितायेँ,आलेख.समीक्षाएं लगातार प्रकाशित .दूर दर्शन के विभिन्न स्टेशनों से और निजी चैनलों से कविताओं का प्रसारण एवं  इंटरव्यू ,निर्णायक  के तौर पर भागीदारी.
१९८२ से नियमित रूप से  आकाशवाणी पटना से कविताओं का प्रसारण एवं यदा कदा विदेश सेवा से रचनाएँ प्रसारित. देश विदेश में आयोजित स्तरीय राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों/मुशायरों में भागीदारी.                     साहित्य अकादमी दिल्ली , उर्दू अकादमी दिल्ली , मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिल्ली, ग़ालिब अकादमी दिल्ली, ख़ुदा बख्श लाइब्रेरी पटना जैसे कई स्तरीय संगठनों द्वारा आयोजित कई प्रोग्रामों और सेमिनारों में अनेकों बार भागीदारी.अनेक अवार्ड,पुरस्कार से सम्मानित
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रेंग रहे हैं साये अब वीराने में


धूप उतर आई कैसे तहख़ाने में


जाने कब तक गहराई में डूबूँगा 


तैर रहा है अक्स कोई पैमाने में


उस मोती को दरिया में फेंक आया हूँ


मैं ने सब कुछ खोया जिसको पाने में


हम प्यासे हैं ख़ुद अपनी कोताही से


देर लगाई हम ने हाथ बढ़ाने में


क्या अपना हक़ है हमको मालूम नहीं


उम्र गुज़ारी हम ने फ़र्ज़ निभाने में


वो मुझ को आवारा कहकर हँसते हैं


मैं भटका हूँ जिनको राह पे लाने में


कब समझेगा मेरे दिल का चारागर


वक़्त लगेगा ज़ख्मों को भर जाने में


हंस कर कोई ज़ह्र नहीं पीता आलम


किस को अच्छा लगता है मर जाने में


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दरियाओं पर अब्र बरसते रहते हैं

और हमारे खेत तरसते रहते हैं


अपना ही वीरानी से कुछ रिश्ता है


वरना दिल भी उजड़ते बसते रहते हैं


उनको भी पहचान बनानी है अपनी


औरों पर आवाजें कसते रहते हैं


बच्चे कैसे उछलें, कूदें, जस्त भरें


उन की पीठ पे भारी बसते रहते हैं


उनके दिल में झांकें इक दिन हम आलम


जिन  के हाथों में गुलदस्ते रहते हैं
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बीच भंवर में पहले उतारा जाता है

फिर साहिल से हमें पुकारा जाता है


ख़ुश हैं यार हमारी सादालौही  पर


हम ख़ुश हैं क्या इसमें हमारा जाता है


पहले भी वो चाँद हमारा साथी था


देखें! कितनी दूर सितारा जाता है


कबतक अपनी पलकें बंद रखोगे तुम


क्या आँखों से कोई नज़ारा जाता है


दुनिया की आदत है इसमें हैरत क्या


कांच के घर पर पत्थर मारा जाता है


कब आएगा तेरा सुनहरा कल आलम


इस चक्कर में आज हमारा जाता है
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संपर्क:      आलम ख़ुर्शीद, कार्यालय : लेखा निदेशक (पी), जी.पी. ओ. कैम्पस , पटना - ८०० ००१ .
ई मेल:      alamkhurshid9@gmail,com

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3 Responses to आलम ख़ुर्शीद की तीन गज़लें

  1. aalam khursheed ji ki gazlen padhin or tippani harnot ji ke liye chhod di.hai na kagad ka kamal!
    ab lo bhai aalam khursheed aap ki gazlon ke liye badhaie.

    ReplyDelete
  2. आलम खुर्शीद जी की
    तीनों गज़लें बहुत पसंद आईं
    उन्हें मुबारकबाद .

    ReplyDelete

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