संजय आचार्य ’वरुण’ |
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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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सम्पादक मंडल
- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
प्रिय वरुण जी आप की कविता संवेदना पूर्ण है मेरी शुभ कामनाएं
ReplyDeleteachha likhate hai.
ReplyDeleteएक पलक में चाँद छुपा है
ReplyDeleteएक पलक मे सूरज
कई समन्दर सबके भीतर
इसमें कैसा अचरज
जब काया का चित्र उकेरो
मुझसे कह देना
बहुत खूबसूरत संजय, बहुत खूब, वाकई, लाजवाब, यह पंक्तियां अब मेरी जुबान चढ गई, भूल जाओ तो मुझसे कह देना ।
संजय आचार्य "वरुण" का गीत ...."मुझसे कह देना" में ..अंधियारे से लड़ना हो तो मुझसे कह देना....अर्थ उम्र का मिल जाए तो मुझसे कह देना...वाह ! क्या बात है. बहुत बढ़िया..इस गीत के अंतिम अंतरे में लगता है कोई शब्द छूट गया है..खैर, टाइप में कोई त्रुटि रह गई होगी...बहुत बहुत बधाई....कवि वरुण और आखर कलश की टीम ..यानी ... दोनों को....
ReplyDeleteजब उजास की बात करो तो
ReplyDeleteमुझ से कह देना
mujhe bhi kahna.......main is kalam me aur bhar dungi
बहुत सुन्दर !
ReplyDeletesanjay ji, aapki rachna bahut hi sunder hai or jo shabad apne use kiye hai wo bhi ati sunder hai badhai ho - sanjay janagal
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
ReplyDeleteएक अच्छा गीत।
ReplyDeletesundar rachna ....manbhawan
ReplyDeleteसंजय वरूण मेरे सर्वाधिक पसंदीदा कवि हैं, उनकी कविताओं में गहन अनुभूतियों का स्पर्श ठण्डी हवा ज्यूं मन को सहला जाता है, नैराश्य के घोर तमस में भी संजय द़ढ प्रतिज्ञ हो जीवन को नये कोण से देखने का इशारा करता है, मुझसे कह देना, यह पंक्ति ही पाठक के साथ किसी के होने का अहसास कराती है ऐसा लगता है कि वह अकेला नहीं है, जीवन में चाहे जितने तमस के कांटे हों, उजाले की हूंकार भरने के लिए कवि तत्पर है, शुभाभिलाषाएं संजय के लिए और आभार आखर कलश को ऐसे सच्चे शब्द छलकाने के लिए
ReplyDeleteएक किनारे सत्य खडा है एक किनारे मेला
ReplyDeleteबीच में है इस दुनिया का आता जाता रेला
चलना हो उस पार अगर तो
मुझसे कह देना
वाह, कितनी सुन्दर पंक्तियां है, संजय एक उभरते हुए कवि हैं किंतु इनकी पंक्तियां परिपक्वता का संकेत करती हैं, कुकुरमुत्तों की तरह उग आए ढेरों कवियों के बीच संजय का काव्य सुकुन प्रदान करता है, संजय हिन्दी काव्य की पारम्पिरिक पीढी के सच्चे उत्तराधिकारी हैं मेरी शुभ कामनाएं और संजय, संजय बने रहें यही कामना है
जीवन की बारहखडी बांची
ReplyDeleteशब्द नहीं घड पाया
जितना-जितना भरा स्वयं को
उतना खाली पाया
लग रहा है कि इस कवि का प्रशंसक बनना पडेगा
क्या करुं संजय जी ? आपकी कविताओँ पर मैने टिप्पणियां भेजी हैँ उतनी तो शायद किसी ने किसी को नहीँ भेजी होगी।छपी लेकिन एक भी नहीँ।चलो कोई बात नहीँ-अब ले लो बधाई!
ReplyDeleteबधाई!
Congratulation sanjay ji Acharya ‘Varun’ for your poetry "mujhe kah dena" its shows moral support there is various kind of support on behalf of good human being. This poetry treat us that we should think good and positive and trying to moral support to each other.
ReplyDeleteI hurt so badly to know that some respective writer or person are giving comments and use words like ‘KUKKURMUTTA’ on other writers with personal bad intention. I think every writer is respective with his/her creation and thinks. And he is trying to put their thing to others..we have to encourage..not hurt him.. THANKS WITH REGARDS
MHNE BHI KE DIYA...SANJAY JI KAVITA TO THE CHOKHI E LIKHO PAN FOTU AA BHAGVATACHARJI JISI KIYAN LAGA MELI HE... KAVIYAVAN KARTE-KARTE KATHA KARNE RI MANN ME AAVAN LAGI KYA... MUJHKO KAH DENA...
ReplyDeleteHarish B. Sharma, Bhopal
‘जीवन की बारहखडी बांची
ReplyDeleteशब्द नहीं घड पाया
जितना-जितना भरा स्वयं को
उतना खाली पाया......!‘
क्या खूब लिखा है ! जीवन की बारह्खडी पढने वाले सामाजिक सरोकारों और मन के विचलन से उबरने में ही जिंदगी खपा देते हैं, शब्दों का स्वरूप कब निखारे-निहारे ? अर्थवाद के काल के मुहाने पर खडा जोगी मन भला भरी जेब के स्वप्न कैसे देखे ?
भाई संजय, बहुत-बहुत बधाई और शुभेच्छाएं !
रवि पुरोहित