डॉ.अभिज्ञात की तीन ग़ज़लें


डॉ.अभिज्ञात
 

परिचय- जन्म 1962। शिक्षा-एमए पीएचडी। अब तक छह कविता संग्रह, दो उपन्यास और कहानी संग्रह प्रकाशित। पेशे से पत्रकार। पता-40 , ओल्ड कलकत्ता रोड, पोस्ट-पातुलिया, टीटागढ़, कोलकाता-700119








1.
सौ बार सरे-राह सफ़र छोड़ना पड़ा।।
मंज़िल पे हर परिन्द को पर छोड़ना पड़ा।।

पुश्तैनी घर की जब मेरे दहलीज़ गिर पड़ी
घर को बचाने के लिए घर छोड़ना पड़ा।।

दहशत के लिए हो रहे हैं हमले चारसू
हमलों के ही ज़वाब में डर छोड़ना पड़ा।।

अब तो मिला जो काम वही रास आ गया
जब बिक नहीं सका तो हुनर छोड़ना पड़ा।।

इनसान ने डंसने की रवायत संभाल ली
सांपों को शर्म आयी जहर छोड़ना पड़ा।।

2.
मेरी पुरनम कहानियां सुनकर।।
दिल की डूबें न कश्तियां सुनकर।।

तेरे चर्चे में फूलों की खुशबू
पास आती हैं तितलियां सुनकर।।

दूल्हा बाज़ार से ख़रीदेंगे
क्या कहेंगी ये बेटियां सुनकर।।

वह मुझे याद कर रही होगी
लोग टोकेंगे हिचकियां सुनकर।।

सच भी उसको लगे बहाने सा
ख़त्म होंगी न दूरियां सुनकर।।

3.
तू मुझे चाह ले संवर जाऊं।।
या कहे टूट कर बिखर जाऊं।।

रास्ता कौन मेरा तकता है
लौटकर किसलिए मैं घर जाऊं।।

तू सफ़र में हो तो ये मुमकिन है
मैं संग-ए-मील सा गुज़र जाऊं।।

जो न पूछे तो तेरा ज़िक्र करूं
कोई पूछे तो मैं मुकर जाऊं।।

इश्क़ का मर्ज़ लाइलाजी है
चाहे अमृत पिऊं, ज़हर खाऊं।
*******

- डॉ.अभिज्ञात
   40
, ओल्ड कलकत्ता रोड, पोस्ट-पातुलिया, टीटागढ़, कोलकाता-700119


  ईमेल abhigyat@gmail.com

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6 Responses to डॉ.अभिज्ञात की तीन ग़ज़लें

  1. इनसान ने डंसने की रवायत संभाल ली
    सांपों को शर्म आयी जहर छोड़ना पड़ा।
    Abhgyaat Ji,
    Aap ki gazalen dekhin. Behadd achhi lagin. kuch shayar to sach moch kamaal hain.
    Thanks for sharing.

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  2. दहशत के लिए ..... डर छोड़ना पड़ा का जवाब, अब तो मिला .... हुनर छोड़ना पड़ा की मजबूरी और इनसान ने डसने ....जहर छोड़ना पड़ा की आज की इंसानी फितरत का जवाब नहीं।

    और सबसे उपर
    जो न पूछे तो तेरा ज़िक्र करूं
    कोई पूछे तो मैं मुकर जाऊं।।
    का अंदाज़ काबिल्र तारीफ़ है।
    बधाई।

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया लगा आपका ग़ज़ल! एक से बढ़कर एक शेर हैं! इस उम्दा प्रस्तुती के लिए बधाई!

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति भाषा, लय, प्रवाह, उन्माद,विरह औए मर्म सब कुछ एक साथ!!!!!!!!!!!!!! .सभी गज़लें एक से बढ़ कर एक पर पहली वाली
    "सौ बार सरे-राह सफ़र छोड़ना पड़ा" एक एक शब्द एक एक बात सीधे दिल पर वार कर गयी और सिर्फ ये ही नहीं आर पर भी निकाल गयी बहुत बेहतरीन .आभार नरेन्द्र जी का भी इस लाज़वाब प्रस्तुती के लिए

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  5. bhaut achhhi lagi abhigyaat ji apki teeno gazale..
    c

    ReplyDelete
  6. manjil pe har parind ko,par Chodna pada,bahut khoob,behtareen panktiyan.

    ReplyDelete

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