मोहतरम गोविन्द गुलशन साहब की हर ग़ज़ल दिल को छूने वाली है.... ....अफ़सोस ये है....कि इस पर प्रतिक्रियाएं न के बराबर हैं... जबकि हर ग़ज़ल..हर शेर उस्तादाना शायरी की मिसाल है...कमाल है साहब.............................. ये शेर- निगाह उससे मिली सिर्फ़ एक पल के लिए मैं एक पल को जिया और जी के मर भी गया
फिर ऐसा तीर चलाया नज़र से आज उसने जो घाव भर भी गया दिल के घाव कर भी गया वाह वाह.... हां- ग़मों से इस क़दर घबरा गया था मैं ’गुलशन’ मेरे क़रीब जब आई ख़ुशी तो डर भी गया इसके पहले मिसरे को लिखने में कोई त्रुटि तो नहीं हो गई? ******* मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए
दरिया जो दरमियान था, गहरा न था मगर पानी में जब पड़े तो मेरे पैर कट गए कितने कीमती शेर हैं. ******* उसे छुआ तभी दरवाज़ा-ए-यक़ीन खुला नहीं था अपनी ही आँखों पे एतबार मुझे
सदा-ए-दिल तो बहुत दूर तक पहुँचती है पुकारते तो सही दिल से एक बार मुझे वाह....वाह ....वाह.
******* ख़ुशियाँ चला हूँ बाँटने आँसू बटोर कर उल्झन है मेरे सामने हक़दार कौन है
ज़िद पर अड़े हुए हैं ये दिल भी दिमाग़ भी अब देखना है इनमें असरदार कौन है
इस पार मैं हूँ और ये टूटी हुई-सी नाव आवाज़ दे रहा है जो उस पार कौन है हर शेर बार बार पढ़ने को दिल करता है. *******
सच पसन्द करता है दिल का आईना लेकिन नामुराद आँखों में ख़्वाब पलते रहते हैं.... क्या बात है.....वाह....आखर कलश पर आज की आमद यादगार बन गई शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
ये पोस्ट मुझसे छूट गयी थी, क्यूँ और कैसे? किसी भी ग़ज़ल का कोई भी शेर ग़ज़ल से अलग करना कठिन, पूरी तरह से ग़ज़ल के रंग से सरोबार। प्रश्न भी, उत्तर भी, सलाह भी, क्या नहीं है इन अशआर में। आखर कलश का आभार गुलशन साहब से परिचय कराने के लिये। इनका कोई ब्लॉग हो तो जानना चाहूँगा।
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मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए
ReplyDeleteउनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए
वाह! वाह! क्या मतला कहा है ......शेर भी लाजवाब हैं......
मोहतरम गोविन्द गुलशन साहब की हर ग़ज़ल दिल को छूने वाली है....
ReplyDelete....अफ़सोस ये है....कि इस पर प्रतिक्रियाएं न के बराबर हैं...
जबकि हर ग़ज़ल..हर शेर उस्तादाना शायरी की मिसाल है...कमाल है साहब..............................
ये शेर-
निगाह उससे मिली सिर्फ़ एक पल के लिए
मैं एक पल को जिया और जी के मर भी गया
फिर ऐसा तीर चलाया नज़र से आज उसने
जो घाव भर भी गया दिल के घाव कर भी गया
वाह वाह....
हां-
ग़मों से इस क़दर घबरा गया था मैं ’गुलशन’
मेरे क़रीब जब आई ख़ुशी तो डर भी गया
इसके पहले मिसरे को लिखने में कोई त्रुटि तो नहीं हो गई?
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मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए
उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए
दरिया जो दरमियान था, गहरा न था मगर
पानी में जब पड़े तो मेरे पैर कट गए
कितने कीमती शेर हैं.
*******
उसे छुआ तभी दरवाज़ा-ए-यक़ीन खुला
नहीं था अपनी ही आँखों पे एतबार मुझे
सदा-ए-दिल तो बहुत दूर तक पहुँचती है
पुकारते तो सही दिल से एक बार मुझे
वाह....वाह ....वाह.
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ख़ुशियाँ चला हूँ बाँटने आँसू बटोर कर
उल्झन है मेरे सामने हक़दार कौन है
ज़िद पर अड़े हुए हैं ये दिल भी दिमाग़ भी
अब देखना है इनमें असरदार कौन है
इस पार मैं हूँ और ये टूटी हुई-सी नाव
आवाज़ दे रहा है जो उस पार कौन है
हर शेर बार बार पढ़ने को दिल करता है.
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सच पसन्द करता है दिल का आईना लेकिन
नामुराद आँखों में ख़्वाब पलते रहते हैं....
क्या बात है.....वाह....आखर कलश पर आज की आमद यादगार बन गई
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
नमस्कार ,
ReplyDeleteआज जो ग़ज़लें पढ़ने को मिलीं तो आखर कलश पर आना सार्थक हो गया ,
निगाह उससे मिली सिर्फ़ एक पल के लिए
मैं एक पल को जिया और जी के मर भी गया
फिर ऐसा तीर चलाया नज़र से आज उसने
जो घाव भर भी गया दिल के घाव कर भी गया
कोई न आएगा अब दर्द बाँटने के लिए
मेरी दुआओं में जो था असर , असर भी गया
बहुत खूब ,
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मेरा फ़साना तुमने सभी को सुना दिया
वो दर्दो-ग़म जो मेरे थे, हिस्सों में बँट गए
वाह!
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सदा-ए-दिल तो बहुत दूर तक पहुँचती है
पुकारते तो सही दिल से एक बार मुझे
वो फूल अब मेरे दिल में महकते रहते हैं
जो फूल दे के गई थी कभी बहार मुझे
बहुत खूब्सूरत तमन्ना और एह्सास
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ख़ुशियाँ चला हूँ बाँटने आँसू बटोर कर
उल्झन है मेरे सामने हक़दार कौन है
ज़िद पर अड़े हुए हैं ये दिल भी दिमाग़ भी
अब देखना है इनमें असरदार कौन है
पहले तलाश कीजिए मंज़िल की रह्गुज़र
फिर सोचिए कि राह में दीवार कौन है
समझ में नहीं आता किस शेर को तारीफ़ से अछूता रखा जा सकता है
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सच पसन्द करता है दिल का आईना लेकिन
नामुराद आँखों में ख़्वाब पलते रहते हैं
धूप मिल नहीं पाती ख़्वाब के परिन्दों को
और छाँव में उनके पंख जलते रहते हैं
लाजवाब ,बहुत उम्दा
ये पोस्ट मुझसे छूट गयी थी, क्यूँ और कैसे?
ReplyDeleteकिसी भी ग़ज़ल का कोई भी शेर ग़ज़ल से अलग करना कठिन, पूरी तरह से ग़ज़ल के रंग से सरोबार। प्रश्न भी, उत्तर भी, सलाह भी, क्या नहीं है इन अशआर में।
आखर कलश का आभार गुलशन साहब से परिचय कराने के लिये। इनका कोई ब्लॉग हो तो जानना चाहूँगा।
इसका लिंक शायद किसी वज़ह से ई-मेल नहीं हो सका। ये पोस्ट मुझसे छूट गयी थी और बाद में मैनें पढ़ी, मुझे लगता है ये बहुतों से छूटी है।
ReplyDeleteआदरणीय मित्रवर,
ReplyDeleteसादर अभिवादन.
शुक्रगुज़ार हूँ आप सबका कि आपने अपनी राय पेश की
और मुझे अपनी मोहब्बतों से नवाज़ा,
दुआओं में याद रखियेगा .
upar ki 4 hgazaleN ek se ek zabardast ! inka ek-ek sher jaandar hai!
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