गोविन्द गुलशन की गजलें













1.


अभी सलीब पे पहुँचा अभी उतर भी गया                            
वो एक पल जो अज़ीयत का था गुज़र भी गया

उसे तलाशने निकला तो दर--दर भी गया
उसी का ज़िक्र मिला मैं जिधर-जिधर भी गया

निगाह उससे मिली सिर्फ़ एक पल के लिए
मैं एक पल को जिया और जी के मर भी गया

फिर ऐसा तीर चलाया नज़र से आज उसने
जो घाव भर भी गया दिल के घाव कर भी गया

कोई आएगा अब दर्द बाँटने के लिए
मेरी दुआओं में जो था असर, असर भी गया

लगी है भीड़ अब उसकी निगाह के पीछे
वो अपनी जान जो हम पर निसार कर भी गया


ग़मों की भीड़ से घबरा गया था मैं इतना
ख़ुशी क़रीब जब आई मेरे तो डर भी गया
*******
2.
मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए
उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए

दरिया जो दरमियान था, गहरा था मगर
पानी में जब पड़े तो मेरे पैर कट गए

आया ख़याले-आशियाँ उड़ते हुए मुझे
फैले हुए हवा में, जो पर थे सिमट गए

मेरा फ़साना तुमने सभी को सुना दिया
वो दर्दो-ग़म जो मेरे थे, हिस्सों में बँट गए

नींदें उचट गईं मेरी आँखों से और फिर
ये हुआ कि ख़्वाब-सलौने उचट गए

देखा जब उसको सामने,रौशन हुए चराग़              
दिल के तमाम रास्ते फूलों से पट गए
*******
3.
क़रार देके किया जिसने बेक़रार मुझे
है इंतिज़ार उसी पल का इंतिज़ार मुझे

उसे छुआ तभी दरवाज़ा--यक़ीन खुला
नहीं था अपनी ही आँखों पे एतबार मुझे

तसल्लियों की ज़रूरत नहीं रही मुझको
तड़पता छोड़ दो रहने दो अश्कबार मुझे

ये और बात कि आँसू हुए हैं ख़र्च मगर
समझ तो गया ख़्वाबों का कारोबार मुझे

जो प्यास है तो क़रीब आओ और बुझालो प्यास
मैं एक दरिया हूँ समझो रेगज़ार मुझे

सदा--दिल तो बहुत दूर तक पहुँचती है
पुकारते तो सही दिल से एक बार मुझे

वो फूल अब मेरे दिल में महकते रहते हैं
जो फूल दे के गई थी कभी बहार मुझे

बहार आई हैगुलशनमें ऐसी अब के बरस
हसीन लगने लगे हैं गुलों से ख़ार मुझे
*******
4.
उल्फ़त का दर्दो-ग़म का परस्तार कौन है
दुनियाँ में आँसुओं का तलबगार कौन है

ख़ुशियाँ चला हूँ बाँटने आँसू बटोर कर
उल्झन है मेरे सामने हक़दार कौन है

ज़िद पर अड़े हुए हैं ये दिल भी दिमाग़ भी
अब देखना है इनमें असरदार कौन है

पहले तलाश कीजिए मंज़िल की रह्गुज़र
फिर सोचिए कि राह में दीवार कौन है

इस पार मैं हूँ और ये टूटी हुई-सी नाव
आवाज़ दे रहा है जो उस पार कौन है
*******
5.
दिल-जलों की बस्ती में दिल तो जलते रहते हैं
आग हो कि शबनम हो घर बदलते रहते हैं

रास्ते हों कैसे भी चाहे कोई मंज़िल हो
क़ाफ़िले मुसीबत के साथ चलते रहते हैं

आँसुओं से वाबस्ता इसलिए हैं ये आँखें
दिल के रेगज़ारों में ग़म पिघलते रहते हैं

सच पसन्द करता है दिल का आईना लेकिन
नामुराद आँखों में ख़्वाब पलते रहते हैं

धूप मिल नहीं पाती ख़्वाब के परिन्दों को
और छाँव में उनके पंख जलते रहते हैं

आँधियों के आने से हौसला नहीं घटता
टूट जाती हैं शाख़ें पेड़ फलते रहते हैं 
**************
-गोविन्द गुलशन




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7 Responses to गोविन्द गुलशन की गजलें

  1. मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए
    उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए
    वाह! वाह! क्या मतला कहा है ......शेर भी लाजवाब हैं......

    ReplyDelete
  2. मोहतरम गोविन्द गुलशन साहब की हर ग़ज़ल दिल को छूने वाली है....
    ....अफ़सोस ये है....कि इस पर प्रतिक्रियाएं न के बराबर हैं...
    जबकि हर ग़ज़ल..हर शेर उस्तादाना शायरी की मिसाल है...कमाल है साहब..............................
    ये शेर-
    निगाह उससे मिली सिर्फ़ एक पल के लिए
    मैं एक पल को जिया और जी के मर भी गया

    फिर ऐसा तीर चलाया नज़र से आज उसने
    जो घाव भर भी गया दिल के घाव कर भी गया
    वाह वाह....
    हां-
    ग़मों से इस क़दर घबरा गया था मैं ’गुलशन’
    मेरे क़रीब जब आई ख़ुशी तो डर भी गया
    इसके पहले मिसरे को लिखने में कोई त्रुटि तो नहीं हो गई?
    *******
    मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गए
    उनसे मिला तो मुझसे उजाले लिपट गए

    दरिया जो दरमियान था, गहरा न था मगर
    पानी में जब पड़े तो मेरे पैर कट गए
    कितने कीमती शेर हैं.
    *******
    उसे छुआ तभी दरवाज़ा-ए-यक़ीन खुला
    नहीं था अपनी ही आँखों पे एतबार मुझे

    सदा-ए-दिल तो बहुत दूर तक पहुँचती है
    पुकारते तो सही दिल से एक बार मुझे
    वाह....वाह ....वाह.

    *******
    ख़ुशियाँ चला हूँ बाँटने आँसू बटोर कर
    उल्झन है मेरे सामने हक़दार कौन है

    ज़िद पर अड़े हुए हैं ये दिल भी दिमाग़ भी
    अब देखना है इनमें असरदार कौन है

    इस पार मैं हूँ और ये टूटी हुई-सी नाव
    आवाज़ दे रहा है जो उस पार कौन है
    हर शेर बार बार पढ़ने को दिल करता है.
    *******

    सच पसन्द करता है दिल का आईना लेकिन
    नामुराद आँखों में ख़्वाब पलते रहते हैं....
    क्या बात है.....वाह....आखर कलश पर आज की आमद यादगार बन गई
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

    ReplyDelete
  3. नमस्कार ,
    आज जो ग़ज़लें पढ़ने को मिलीं तो आखर कलश पर आना सार्थक हो गया ,
    निगाह उससे मिली सिर्फ़ एक पल के लिए
    मैं एक पल को जिया और जी के मर भी गया

    फिर ऐसा तीर चलाया नज़र से आज उसने
    जो घाव भर भी गया दिल के घाव कर भी गया

    कोई न आएगा अब दर्द बाँटने के लिए
    मेरी दुआओं में जो था असर , असर भी गया

    बहुत खूब ,

    *********************************
    मेरा फ़साना तुमने सभी को सुना दिया
    वो दर्दो-ग़म जो मेरे थे, हिस्सों में बँट गए

    वाह!

    *******************************

    सदा-ए-दिल तो बहुत दूर तक पहुँचती है
    पुकारते तो सही दिल से एक बार मुझे

    वो फूल अब मेरे दिल में महकते रहते हैं
    जो फूल दे के गई थी कभी बहार मुझे

    बहुत खूब्सूरत तमन्ना और एह्सास

    ********************************

    ख़ुशियाँ चला हूँ बाँटने आँसू बटोर कर
    उल्झन है मेरे सामने हक़दार कौन है

    ज़िद पर अड़े हुए हैं ये दिल भी दिमाग़ भी
    अब देखना है इनमें असरदार कौन है

    पहले तलाश कीजिए मंज़िल की रह्गुज़र
    फिर सोचिए कि राह में दीवार कौन है

    समझ में नहीं आता किस शेर को तारीफ़ से अछूता रखा जा सकता है

    *******************************************


    सच पसन्द करता है दिल का आईना लेकिन
    नामुराद आँखों में ख़्वाब पलते रहते हैं

    धूप मिल नहीं पाती ख़्वाब के परिन्दों को
    और छाँव में उनके पंख जलते रहते हैं

    लाजवाब ,बहुत उम्दा

    ReplyDelete
  4. ये पोस्‍ट मुझसे छूट गयी थी, क्‍यूँ और कैसे?
    किसी भी ग़ज़ल का कोई भी शेर ग़ज़ल से अलग करना कठिन, पूरी तरह से ग़ज़ल के रंग से सरोबार। प्रश्‍न भी, उत्‍तर भी, सलाह भी, क्‍या नहीं है इन अशआर में।
    आखर कलश का आभार गुलशन साहब से परिचय कराने के लिये। इनका कोई ब्‍लॉग हो तो जानना चाहूँगा।

    ReplyDelete
  5. इसका लिंक शायद किसी वज़ह से ई-मेल नहीं हो सका। ये पोस्‍ट मुझसे छूट गयी थी और बाद में मैनें पढ़ी, मुझे लगता है ये बहुतों से छूटी है।

    ReplyDelete
  6. आदरणीय मित्रवर,
    सादर अभिवादन.
    शुक्रगुज़ार हूँ आप सबका कि आपने अपनी राय पेश की
    और मुझे अपनी मोहब्बतों से नवाज़ा,
    दुआओं में याद रखियेगा .

    ReplyDelete
  7. upar ki 4 hgazaleN ek se ek zabardast ! inka ek-ek sher jaandar hai!

    ReplyDelete

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