दिनेश ठाकुर की पाँच नई ग़ज़लें


 











आब सब कुछ नहीं तिशनगी में
आग भी चाहिए ज़िन्दगी में.
 
गुल खिलेंगे नये ज़िन्दगी में
ग़म भी शामिल करो हर ख़ुशी में.
 
शहर डूबा है कैसी ख़ुशी में
हादसे हो रहे हैं गली में.
 
जो कभी रहता था इस गली में
ढूंढता हूँ उसे हर किसी में.
 
लहर से दोस्ती करके जाना
एक सहरा छिपा है नदी में.
 
यूँ न रह-रहके शीशे उछालो
टूट जाते हैं दिल दिल्लगी में.
 
आंसुओं को समंदर बना लो
फायदा कुछ नहीं खुदकशी में.
 
हर मुलाक़ात में ध्यान रखना
फर्क है आदमी आदमी में.
 
देखकर चेहरा हैरान क्यूँ है
नूर गुम जाता है बेबसी में.
 
ज़र ने छोड़ा पहेली बनाके
हम भी आसान थे मुफलिसी में.
 
अपना-अपना मुक़द्दर है भाई
हम अंधेरे में, तुम रोशनी में.
 
किसमें दम था जो उसको मिटाता
खुद ही मारा गया मयकशी में.
 
जिसकी खातिर भटकती है दुनिया
मिल गया वो हमें शायरी में.
 
.
न फसानों में मिली है, न किसी तफ़सीर में
वो जो इक दिलचस्प रंगत थी तेरी तस्वीर में.
 
मेरे चेहरे पर हवाएँ लिख गईं माज़ी मेरा
लाख चेहरे पाओगे तुम इस अदद तहरीर में.
 
हो गया हासिल मगर दिन-रात का है फ़ासला
ख़्वाब में कुछ और था, कुछ और है ताबीर में.
 
इस क़दर सीधा लगा कि दिल का आँगन हिल गया
किसके हाथों के निशाँ हैं देखना इस तीर में.
 
जब सुनहरी धूप का आँचल कफ़स तक आ गया
इक ग़ज़ल-सी बज उठी है पाँव की ज़ंजीर में.
 
इस ज़मीं इस आसमाँ के रंग होते और ही
लिखने वाला गर तुझे लिखता मेरी तक़दीर में.
 
नये तज्किरे और पुराने फ़साने
वो रखता है लब पर बला के ख़ज़ाने.
 
मेरी इक गुज़ारिश का हासिल यही है
बहाने, बहाने, बहाने, बहाने.
 
अजब सिलसिला है हमारे अलम का
कभी एक लम्हा, कभी हैं ज़माने.
 
हमें भी ख़बर है पसे-रहगुज़र की
कई लोग बैठे हैं दम आज़माने.
 
मैं यह सोचकर रूठा था बरसों पहले
कभी न कभी आएगा वो मनाने.
 
मेरे दिल की सूनी हवेली में अकसर
उतरती हैं परियाँ ग़ज़ल गुनगुनाने.
 
.
कशिश को यूँ भी आज़माया गया
हमें आसमाँ से गिराया गया.
 
हाँ, अहदे-वफ़ा भी निभाया गया
हमें याद करके भुलाया गया.
 
उसे दूर करके मेरी ज़ीस्त को
किसी दूसरे से मिलाया गया.
 
जो कल पत्थरों के निशाने पे थे
उन्हें आईने में सजाया गया.
 
न ग़म होगा, न होंगी मजबूरियाँ
ये सपना हमें भी दिखाया गया.
 
कफ़स खोलकर ज़ख़्मी अहसास को
हवाओं के रुख पर उड़ाया गया.
 
कभी क़हक़हे रख दिए रू-ब-रू
हँसी ही हँसी में रुलाया गया.
 
भले तिशना लब हों भले जाँबलब
तमाशा सभी को बनाया गया.
 
.
तर्के-उल्फ़त को भुलाकर देखो
नक्शे नफ़रत के मिटाकर देखो.
 
आने-जाने के रास्ते ही खुलें
कोई दीवार गिराकर देखो.
 
आरज़ू कोई तो रक्खो दिल में
आग पानी में लगाकर देखो.
 
फस्ले-गुल में ये उदासी कैसी
इन दरख्तों को हिलाकर देखो.
 
गर उठे दिल में अज़ीयत-तलबी
फिर उसी शहर में जाकर देखो.
 
हिज्र ने छीन लिया है क्या-क्या
मेरी हालत कभी आकर देखो.
*******
-दिनेश ठाकुर

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36 Responses to दिनेश ठाकुर की पाँच नई ग़ज़लें

  1. ...जो कभी रहता था इस गली में ,,, ढूंढता हूँ उसे हर किसी में...वाह ! क्या बात है. दिनेश ठाकुर साहब की पांचों ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक...ऐसी स्तरीय रचनाएँ दिया करें..ब्लॉग की गरिमा बढती है.. शायर और ब्लॉग दोनों को बधाई.

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  2. panchon ghazalon ka har sher lajwab hai.Dinesh ji ki ghazlen pahle bhi kai blog aur jaal patrikaon par padh chuka hun. unke kalam mein tazgi bhi hai,sadgi bhi aur gehrai bhi.sabse badi baat yah hai ki unka apna alag rang hai, jo unhen is daur ke doosre shayron se alag karta hai.in ghazalon ke liye bahut-bahut shukriya.
    -yash mittal

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  3. शायर और ब्लॉग दोनों को बधाई.

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  4. युवा शायर की परिपक्व सोचवाली गज़लें पढ़कर आनंद मिला. शुभकामनायें.

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  5. सभी ग़ज़लें दिल छूने वाली हैं/...'मेरी इक गुज़ारिश का हासिल यही है...बहाने, बहाने, बहाने...' क्या कहने! बहुत खूब!! दिनेश जी की ग़ज़लें संवेदनाओं की नई ज़मीन पर ले जाती हैं/ बस, कुछ जगह प्रूफ की गलतियाँ मज़ा किरकिरा करती हैं/ प्लीज, इन्हें सुधार लें/ जैसे 'नूर गुम जाता है' होना चाहिए/ एक शेर में 'पासे-रहगुज़र' की जगह 'पसे-रहगुज़र' होना चाहिए/ एक और जगह आपने 'पांव की' के बदले 'पांव कि' पब्लिश किया है/ वैसे इन शानदार ग़ज़लों के लिए आखरकलश बधाई का हकदार है/
    ...तसनीम अख्तर

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  6. आखर कलश पर पहली बार सही अर्थोँ मेँ ग़ज़ल पढ़ने को मिली।काफी हद तक ग़ज़ल की बहरें यहां मौज़ूद थीँ।रद्दीफ औ काफ़िया का बेहतर निर्वाह हुआ।ग़ज़ल लिखी नहीँ कही जाती है और कहन की कमजोरी अख़रती है। केवल बात ओ संवेदना के कविता तो हो सकती है मगर ग़ज़ल नहीँ।ग़ज़ल का कहन तमीज़ मांगता है।इधर थोक मेँ ग़ज़ल लिखी जा रही है मगर उन मेँ से ग़ज़ल होती ही नहीँ या कम ही होती हैँ।प्रयोग भी हो तो सलीके से हो।अच्छी ग़ज़लोँ की प्रस्तुति के लिए भाई दिनेश ठाकुर व आपको बधाई!
    -ओम पुरोहित'कागद' omkagad.blogspot.com

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  7. आखर कलश पर पहली बार सही अर्थोँ मेँ ग़ज़ल पढ़ने को मिली।काफी हद तक ग़ज़ल की बहरें यहां मौज़ूद थीँ।रद्दीफ औ काफ़िया का बेहतर निर्वाह हुआ।ग़ज़ल लिखी नहीँ कही जाती है और कहन की कमजोरी अख़रती है। केवल बात ओ संवेदना के कविता तो हो सकती है मगर ग़ज़ल नहीँ।ग़ज़ल का कहन तमीज़ मांगता है।इधर थोक मेँ ग़ज़ल लिखी जा रही है मगर उन मेँ से ग़ज़ल होती ही नहीँ या कम ही होती हैँ।प्रयोग भी हो तो सलीके से हो।अच्छी ग़ज़लोँ की प्रस्तुति के लिए भाई दिनेश ठाकुर व आपको बधाई!
    -ओम पुरोहित'कागद' omkagad.blogspot.com

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  8. सुन्दर भाव और बेबाक बयानी ! वाह वाह वाह !

    ReplyDelete
  9. सभी ग़ज़लें दिल छूने वाली हैं/...'मेरी इक गुज़ारिश का हासिल यही है...बहाने, बहाने, बहाने...' क्या कहने! बहुत खूब!!

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  10. आब सब कुछ नहीं तिशनगी में
    आग भी चाहिए ज़िन्दगी में.
    ................
    .

    जब सुनहरी धूप का आँचल कफ़स तक आ गया
    इक ग़ज़ल-सी बज उठी है पाँव कि ज़ंजीर में.
    .....................

    मेरे दिल की सूनी हवेली में अकसर
    उतरती हैं परियाँ ग़ज़ल गुनगुनाने.
    .......................
    कफ़स खोलकर ज़ख़्मी अहसास को
    हवाओं के रुख पर उड़ाया गया.
    .....................

    गर उठे दिल में अज़ीयत-तलबी
    फिर उसी शहर में जाकर देखो.......

    एहसासों की शक्लें दिखी हैं ग़ज़ल में
    दिल से इनको गुनगुनाकर भी देखो , बहुत ही बढ़िया

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  11. ग़ज़ल तो ग़ज़ल, एक अच्‍छा शेर कहना भी कठिन काम है और पॉंच कामयाब ग़ज़लें एक साथ, भाई दिनेश जी आप तो ग़ज़ल कारखाना उपनाम रख सकते हैं।
    बधाई।

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  12. भाई आखरकलश की टीम ने इस बार तो कमाल ही कर दिया! क्या लाजवाब ग़ज़लें पेश की हैं...एक-एक शेर ऐसा कि सीधा दिल में उतर गया> किस-किस शेर का जिक्र किया जाए...
    ज़र ने छोड़ा पहेली बनाकर
    हम भी आसान थे मुफलिसी में...
    या
    इस ज़मीं इस आसमाँ के रंग होते और ही
    लिखने वाला गर तुझे लिखता मेरी तकदीर में....
    और
    अजब सिलसिला है हमारे अलम का
    कभी एक लम्हा कभी हैं ज़माने...
    दिनेश जी का अंदाज़े-बयां वाकई काफी हटकर है> आपको तसनीम जी की बात पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि कुछ जगह प्रूफ की गलतियाँ रह गई हैं>इन्हें ज़रूर सुधार लें> और तिलक राज जी ने भी 'ग़ज़ल का कारखाना' की बात खूब की है, लेकिन इस मजाक से हटकर देखें, तो बेहिचक कहा जा सकता है कि दिनेश ठाकुर जी भरपूर संभावनाओं वाले नौजवान शायर हैं> बधाई! बधाई!!
    तृप्ति भटनागर

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  13. बेहद उम्दा ग़ज़लें हैं...जितनी बार पढो, नए मायने सामने आते हैं...इन ग़ज़लों को पढ़कर ग़ज़ल लिखने वाले विद्यार्थी बहुत कुछ सीख सकते हैं...क्या आखरकलश दिनेश जी का पता या फ़ोन नम्बर दे सकता है?
    ...राकेश शर्मा

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  14. हर एक ग़ज़ल एक से बढ़ कर है किसकी तारीफ़ करें.इस बेहतरीन पोस्ट के लिए शुक्रिया

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  15. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति! उम्दा प्रस्तुती!

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  16. यूँ तो दिनेश जी की सभी ग़ज़लें लाजवाब हैं, लेकिन पहली ग़ज़ल में उन्होंने काफियों का जिस खूबी के साथ इस्तेमाल किया है, वह खास तौर पर काबिले-गौर है.
    आजकल ग़ज़लों में ऐसे नए प्रयोग कम ही देखने को मिलते हैं. नए प्रयोग करना और नयी बात कहना, ग़ज़ल में यह सोने में सुहागे की तरह है. समझ नहीं आता कि दिनेश जी की इन पुरअसर ग़ज़लों को सुबह के ताज़ा फूल कहूँ या रात की महकती चांदनी. उन्हें बधाई और आखर कलश का हार्दिक आभार.
    पहली बार आपके पोस्ट ने ऐसी ग़ज़लें पेश की हैं, जो ग़ज़ल की नजाकत और असर की कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती हैं.
    -रजनीश जैन

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  17. आखर कलश ने इस बार निहायत खूबसूरत ग़ज़लें छलकाई हैं.
    इस कदर सीधा लगा कि दिल का आँगन हिल गया
    किसके हाथों के निशाँ हैं देखना इस तीर में.
    क्या कहने ! जितनी तारीफ की जाये, कम होगी.
    -देवेन्द्र रस्तोगी

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  18. har ghazal ka ek-ek sher khule dil se daad ka hakdar hai.ghazlen to khoob likhi ja rahi hain, lekin salike se kaise likha jata hai, in ghazlon ko padhkar seekha ja sakta hai.dinesh ji ko bhi badhai aur aakhar kalash ko bhi.
    ..surbhi avasthi

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  19. क्या भाव, क्या कथ्य, क्या बिम्ब और क्या नयापन...दिनेश जी की ग़ज़लें हर नज़रिए से खास लगती हैं. आखर कलश ने उनकी पाँच नई ग़ज़लें पढने का मौका दिया. तबीयत खुश हो गई.
    कविता गोयल

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  20. दिनेश ठाकुर जी!
    आब सब कुछ नहीं तिशनगी में
    आग भी चाहिए ज़िन्दगी में.
    इस मतले ही में इतनी वैचारिक
    ऊर्जा है कि इस पर काफी कुछ
    कहा जा सकता है। तबीयत खुश हो
    गई । दिल से वाह निकली। दूसरी
    गजलें भी रोचक और प्रभावकारी हैं।
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  21. अब टिप्पणियां भी अच्छी आ रही है! इसका मतलब है कि, अब पढ़ा जा रहा है वरना अच्छी लगी ,बेहतरीन, सुन्दर व प्रभावशाली जैसे विशेषणोँ से भरी छोटी छोटी टिप्पणियां नाहक ही आ रही थीँ।

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  22. अब टिप्पणियां भी अच्छी आ रही है! इसका मतलब है कि, अब पढ़ा जा रहा है वरना अच्छी लगी ,बेहतरीन, सुन्दर व प्रभावशाली जैसे विशेषणोँ से भरी छोटी छोटी टिप्पणियां नाहक ही आ रही थीँ।

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  23. कुछ टिप्पणीकार किसी रचना पर अपनी एक ही टिप्पणी की दो कॉपी पेस्ट कर देते हैं...समझ नहीं आता कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं..शायद उन्हें विश्वास नहीं है कि पहली टिप्पणी लगी होगी या नहीं....फिर ये जरूरी भी नहीं है कि रचना पढने वाला प्रत्येक पाठक टिप्पणी करे...आज ऐसे लोग ज्यादा हैं जो अपनी उपस्तिथि दर्ज करवाने के लिए बिना पढ़े ही टिप्पणी कर देते हैं......बस उनका नाम.... ब्लॉग में रहना चाहिए... !

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  24. कुछ साल पहले दिल्ली में लगे पुस्तक मेले में एक ग़ज़ल संग्रह हाथ लगा था..'हम लोग भले हैं काग़ज़ पर'...यह दिनेश ठाकुर जी का पहला संग्रह था, जिसकी भूमिका में मशहूर शायर और फ़िल्मी गीतकार गुलज़ार साहब ने लिखा था ...'उनकी (दिनेश जी की) ग़ज़लें पढ़कर महसूस होता है की बड़े खुश-शक्ल होंगे, खुश-मिज़ाज होंगे, सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी होगा, क्योंकि ये तमाम खूबियाँ उनके शेरों में नज़र आती हैं...'
    उस संग्रह को पढ़कर यह तो साफ़ हो गया था कि ग़ज़ल की गणित ही नहीं, इसकी रूह की भी दिनेश जी को गहरी समझ है...लेकिन इस बार आखर कलश में उनकी नई ग़ज़लें पढ़कर यह बात और शिद्दत से महसूस हुई कि दिनेश जी के विचारों का दायरा और विस्तृत हुआ है, उनकी ग़ज़लों में गहराई और बड़ी है...ग़ज़ल बेहद मुश्किल विधा है, पर दिनेश जी बड़ी सादगी और सहजता से अपनी बात कह जाते हैं....खासकर इन शेरों को शायद ही कोई पढने वाला भुला पाए...
    देखकर चेहरा हैरान क्यूँ है
    नूर गुम जाता है बेबसी में...
    ----------
    लहर से दोस्ती करके जाना
    एक सहरा छिपा है नदी में...
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    न फसानों में मिली है न किसी तफ़सीर में
    वो जो इक दिलचस्प रंगत थी तेरी तस्वीर में...
    ---------
    नए तज्किरे और पुराने फ़साने
    वो रखता है लब पर बला के खजाने...
    -------
    यूँ सभी ग़ज़लें संवेदनाओं और ताजगी से भरपूर हैं...अब आखर कलश की यह ज़िम्मेदारी है कि उसकी टीम भविष्य में रचनाओं के चयन में इस स्तर को बरकरार रखे...

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  25. पहली बार आखर कलश पर ऐसी ग़ज़लें पढने को मिलीं, जिनका एक-एक शेर नगीने जैसा है/ दिनेश जी के बारे में और जानने तथा उनकी और ग़ज़लें पढने की इच्छा है/ आखर कलश अगर उनका संपर्क सूत्र दे सके तो हम जैसे ग़ज़ल लिखना सीखने वालों का बहुत भला होगा/

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  26. aajkal dinesh thakur sahab ko kai jagah niymit padhne ko mil raha hai.makhmoor sahab par unka lekh dil chhoo gaya tha aur ab aakhar kalash mein unki nai ghazalen padhkar anand aa gaya.shayri ho to aisi, jo seedhe dil mein utar jaye.dinesh ji aur aakhar kalash ko badhai.
    --antima kinger

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  27. दिनेश ठाकुर साहेब के मोतियों जैसे अशआर के बारे में हेमलताजी ने जो मुख़्तसर बात कही है, मैं उससे इत्तफाक रखता हूँ**
    दरअसल, ग़ज़ल लिखना नगीने जड़ने से भी मुश्किल काम है** वज़न का ख़याल रखना होता है, रदीफ़ और काफ़िये की बंदिश का ख़याल रखना होता है ** ज़रा सी गड़बड़ ग़ज़ल की लय बिगाड़ देती है **
    दिनेश साहेब को पढ़कर लगता है कि वे न सिर्फ ग़ज़ल की बारीकियों से बखूबी वाकिफ हैं, बल्कि उनका मुताला भी ग़ज़ब का है..वरना इस किस्म के गहरे शेर हर शायर के पास नज़र नहीं आते...
    मेरे चेहरे पर हवाएँ लिख गईं माज़ी मेरा
    लाख चेहरे पाओगे तुम इस अदद तहरीर में.
    ***************
    मेरी इक गुज़ारिश का हासिल यही है
    बहाने, बहाने, बहाने, बहाने.
    **************
    मेरे दिल की सूनी हवेली में अकसर
    उतरती हैं परियाँ ग़ज़ल गुनगुनाने.
    ***************
    उसे दूर करके मेरी ज़ीस्त को
    किसी दूसरे से मिलाया गया.
    ***************
    आरज़ू कोई तो रक्खो दिल में
    आग पानी में लगाकर देखो.
    ***************
    अल्लाह जनाब दिनेश ठाकुर को लम्बी उम्र अता करे, ताकि उनकी तरफ से ऐसी और पुरअसर ग़ज़लें पढने को मिलें**

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  28. कई साल पहले 'सारिका' में दिनेश ठाकुर जी की कुछ ग़ज़लें पढने को मिली थीं : तब के दो शेर आज तक याद हैं...
    पेड़ पौधे सलीब लगते हैं
    सारे मंज़र अजीब लगते हैं..
    फासले इस कदर बढे तुमसे
    आजकल सब करीब लगते हैं..
    .इन शेरों में जो ताजगी है, उसी का और विस्तार दिनेश जी की नई ग़ज़लों में महसूस होता है..आखर कलश ने उनकी जो ग़ज़लें पेश की हैं, सभी असरदार हैं...हर शेर में गहराई है और ताजगी भी, जो मौजूदा दौर के कई शायरों के कलाम में कम ही देखने को मिलती है...अगर दिनेश जी मेरी गुस्ताखी को माफ़ करें, एक शेर उन्हें नज्र कर रहा हूँ...
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिख रहे हो
    किसे देखकर आजकल लिख रहे हो....
    ...लोकेश आनंद

    ReplyDelete
  29. आखरकलश की टीम ने इस बार तो कमाल ही कर दिया! क्या लाजवाब ग़ज़लें पेश की हैं...दिनेश ठाकुर जी भरपूर संभावनाओं वाले उम्दा शायर हैं बधाई! बधाई!!
    बहुत बहुत आभार आखर कलश को कि हमें अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिल रही हैं. आखर कलश जहां वरिष्ठ रचनाकारों को स्थान प्रदान कर रहा है, वहीं युवा लेखकों को भी प्रोत्साहन दे रहा है, जो कि सराहनीय कार्य है. एक बार पुनः आभार!!

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  30. उम्दा ग़ज़लों के लिए दिनेश ठाकुर को हार्दिक बधाई.09818032913

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  31. DINESH THAKUR SAHAB KI GHAZALEN PASAND AAYI. UNAKA AUR AAKHAR KALASH KA BAHUT-BAHUT SHUKRIYA. AAP SHAYRON KE KALAAM KE SATH UNKA PATAA BHI DEN, TO BAHUT ACHCHHA HOGA.

    ReplyDelete
  32. वाह दिनेश साहब ज़ज्बात व शेरियत से लबरेज़ है आपकी ग़ज़लों के अयाग .गज़ब ..सर

    ReplyDelete
  33. वाह वाह जनाब दिनेश ठाकुर साहिब क्या कहने
    बहुत उमदा ग़ज़लें लेकर आए हैं आप
    पढ़ कर आनन्द आ गया
    भर पूर रवानी,तग़ज़्ज़ुल और अंदाज़े-बयाँ
    सब कुछ तो है
    आपकी ख़िदमत में एक शे’र नाचीज़ की जानिब से हाज़िर है
    बतौर दाद क़ुबूल फ़रमाएं

    आपकी बात ज़माने से अलग होती है
    ग़ैर मुमकिन है कोई आपका सानी होना

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  34. waah sir ji bahut khoob gazalen kahi hai badhai sweeekaren....................

    ReplyDelete
  35. waah sir ji bahut acchh gazlen hain wakai badhai sweekaren

    ReplyDelete

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