अविनाश वाचस्‍पति का आलेख - खुश है जमाना आज पहली तारीख है ...

अविनाश वाचस्‍पति




एक अप्रेल पर विशेष







मूर्ख दिवस कहीं जाता नहीं है वो तो यहीं बसा रहता है सबके दिमाग में। बस सिर्फ होता यह है कि एक अप्रैल को वह उकसाए जाने पर अपनी पूर्णता में सिर उठाता है और अपने वजूद का ऐलान कर देता है और देखिए सब उसके प्रभाव में बह जाते हैं या मोहग्रसित हो जाते हैं।
अब सुबद्धि सुप्‍त ही पड़ी रहे तो उसेकी ओर किसी का ध्‍यान नहीं जाता है। पर मूर्खता सिर उठाती है तो सबको अपनी तरफ ताकता पाती है और अपनी तरफ ताकने या घूरने के अहसास से दिमाग खुदबखुद असमंजस की स्थिति में आकर ताबड़तोड़ मूर्खताएं कर बैठना है और जिनमें ये मूर्खताएं सिर उठाने लगती हैं वे पहले बरस भर से दिमाग में कुलबुला रही होती हैं।
वैसे मूर्खता को जितना दबाया जाता है वो उससे भी अधिक तेजी से कुलांचे मारती है। एक रबर की ठोस गेंद की माफिक, अब आप दिमाग को रबर की ठोस गेंद भी मान सकते हैं, जिसे जितने वेग से दबाया जाता है वो उससे भी अधिक वेग से आपके दवाब से मुक्ति के लिए छटपटाती है और मौका पाते ही चौगुनी ताकत से ऊपर की ओर उछलती है। नतीजा, जिनको नहीं दिखलाई दे रही थी, उनको भी दिखलाई दे जाती है और यही मूर्खता का बाजारीकरण है जगह-जगह पर आप सेल में सामान बिकता देखकर इस अहसास में जकड़ते जाते हैं। मानो, आपको फ्री में मिल रहा है सामान और खूब सारा बेजरूरतीय सामान खरीद कर अपना घर भर लेते हैं। सर्दियों में गर्मियों के कपड़ों के ढेर और गर्मियों में सर्दियों के। सेल सदा बेमौसम ही लगाई जाती है क्‍योंकि सेल समान कुछ भी नहीं है। यह बाजार का चालाकीकरण है।
इसी का और अधिक चालाकीकरण करते हुए आजकल दुकानों में एक के साथ चार या दो के साथ दस जींस, शर्ट इत्‍यादि फ्री में दी जाती हैं विद 80 प्रतिशत छूट के साथ, जबकि यह सरेआम लूट ही होती है। पता नहीं हम सब यह क्‍यों मान लेते हैं कि कोई भी विक्रेता, निर्माता या दुकानदार फ्री में हमें बेचेगा।  इसे बाजारू कलात्‍मकता कहा जा सकता है। जिसमें हम अपने को महाबुद्धिमान समझ कर अपनी मूर्खता का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहे होते हैं अपनी जेब से नोट लुटा लुटाकर।
इसी प्रकार आजकल मोबाइल फोन के आने से मूर्खता की संभावनाओं में घनघोर इजाफा हुआ है और मोबाइल की तरह मूर्खों की भरमार हो गई है। रोजाना नई स्‍कीमें लांच की जा रही हैं जो कि नि:संदेह मूर्ख बनाने की फैक्‍टरियां हैं – तीस रुपये खर्च करके दो हजार एसएमएस एक महीने में फ्री। यह मूर्खता एक रुपये रोजाना की दर से बेची जा रही है। इसी प्रकार कई मूर्खताएं दस रुपये रोजाना अथवा 200 रुपये महीने में भी धड़ल्‍ले से बिक रही हैं जिनमें आपको एक खास अपने नेटवर्क पर अनलिमिटेड टॉक टाइम दिया जाता है और आप अपने जीवन के कीमती पलों को फिजूल की बातें कर करके गर्क कर लेते हैं और अपनी बुद्धिमानीय कला पर मोहित होते हैं। अब भला एक या दस रुपये रोज खर्च करके सुविधाएं फ्री मिलना – क्‍या वास्‍तव में रुपये लेकर मूर्ख नहीं बनाया जा रहा है तो यह व्‍यापार खूब फल रहा है और फूल रहा है और फूल बन रहे हैं हम सब।
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अविनाश वाचस्‍पति
साहित्‍यकार सदन, पहली मंजिल, 195 सन्‍त नगर, नई दिल्‍ली 110065 मोबाइल 09868166586/09711537664

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4 Responses to अविनाश वाचस्‍पति का आलेख - खुश है जमाना आज पहली तारीख है ...

  1. avinash ji ne bilkul sahi kaha..........moorkh banne ke liye jab koi khud ko prastut kar de to samne wala uska fayada kyun na uthaye.....sarthak lekh.

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  2. हम अपने आपको सबसे बड़ा बुद्दिमान समझते हैं..यही हमारी मूर्खता है...आज जो विश्वास करता है...वही लुटा जा रहा है.....अविनाश जी का व्यंग्य अच्छा बन पड़ा है...बधाई.

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  3. मूर्ख दिवस और एक शिक्षा......

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  4. व्‍यंग्‍य का उद्देश्‍य आपको स्‍पष्‍टत: ज्ञात है यह आपके इस व्‍यंग्‍य से स्‍पष्‍ट हो गया। मूर्खता की पराकाष्‍ठा समझते बूझते मूर्ख बनने में ही है।

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