सुभाष नीरव की लघुकथा और गीत


 











इन्सानियत का धर्म - लघुकथा

       उनका सिंहासन खतरे में था। और उसकी रक्षा तो उन्हें करनी ही थी। हर हाल में, हर कीमत पर। वे जानते थे कि लोग धर्म के नाम पर जान की बाजी लगा देने को हर समय तैयार रहते हैं। बस, उनका एक ही इशारा काफ़ी है। और उन्होंने सिंहासन बचाने के लिए यही किया भी।
            काली रात के सन्नाटे में विधर्मियों का सफाया कर अगली सुबह लोग उनकी और उनके सिंहासन की जय-जयकार कर रहे थे। तभी, किसी ने उनके कान में फुसफुसाकर कुछ कहा। सुनते ही उनके चेहरे का रंग बदल गया। वे दल-बल समेत अस्पताल की ओर भागे। विधर्मियों के एक दल ने उनके बेटे पर जानलेवा हमला किया था। उनकी भृकुटियां तन गईं। वे क्रोध में कांपने लगे। इस हमले का जवाब देने के बारे में सोचने लगे। तभी, अस्पतालवालों से उन्हें मालूम हुआ कि उनके बेटे को ज़ख्मी हालत में अस्पताल पहुंचाने वाला और अपना खून देकर उसकी जान बचाने वाला, दोनों ही विधर्मी थे!

*************
गीत
माँ ने छोड़ी आस,
भाग बेटी का फूटा है 
बापू की आँखों का
इक सपना टूटा है।
लिख-लिख पाती 
भेजी-भिजवाईं, आया न 
अम्माँ की आँखें 
पथराईं, आया न
पढ़-लिख कर बेटा 
शहरी हो बैठा 
घर -गाँव से नाता 
उसका टूटा है।
सर पे कर्जे का
इक बोझा भारी है 
दिल पे चलती 
बेबसी की आरी है
ब्याह न पाया बिटिया 
तंगी के चलते 
परसाल किया था
वो रिश्ता टूटा है।
कंगाली में आटा गीला 
क्या खाएं 
सोच में हैं कि जिएं
या 
मर जाएं
वक़्त के हाथों छ्ले गए 
बतलाएं क्या 
उम्मीदों का एक
घरौंदा टूटा है।
**************
संक्षिप्त परिचय:
सुभाष नीरव

 जन्म:         27–12–1953, मुरादनगर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा:         स्नातक, मेरठ विश्वविद्यालय

कृतियाँ:                 यत्किंचित’, ‘रोशनी की लकीर’ (कविता संग्रह)
दैत्य तथा अन्य कहानियाँ’, ‘औरत होने का गुनाह
आखिरी पड़ाव का दु:ख’(कहानी-संग्रह)
कथाबिंदु’(लघुकथासंग्रह),
मेहनत की रोटी’(बाल कहानी-संग्रह)

लगभग 12 पुस्तकों का पंजाबी से हिंदी में अनुवाद, जिनमें
काला दौर, कथा-पंजाब 2, कुलवंत सिंह विर्क की चुनिंदा पंजाबी कहानियाँ, पंजाबी की चर्चित लघुकथाएं, तुम नहीं समझ सकते(जिन्दर का कहानी संग्रह), छांग्या रुक्ख(बलबीर माधोपुरी की दलित आत्मकथा) और रेत (हरजीत अटवाल का उपन्यास) प्रमुख हैं।

सम्पादन अनियतकालीन पत्रिका प्रयासऔर मासिक मचान

ब्लॉग्स:                 सेतु साहित्य( उत्कृष्ट अनूदित साहित्य की नेट पत्रिका )

वाटिका(समकालीन कविताओं की ब्लॉग पत्रिका)

साहित्य सृजन( साहित्य, विचार और संस्कृति का संवाहक)

              गवाक्ष (हिंदीपंजाबी के समकालीन प्रवासी साहित्य की प्रस्तुति)

सृजनयात्रा ( सुभाष नीरव की रचनाओं का सफ़र)


पुरस्कार/सम्मान:             हिन्दी में लघुकथा लेखन के साथ-साथ  पंजाबी-हिन्दी लघुकथाओं के श्रेष्ठ अनुवाद के लिए माता शरबती देवी स्मृति पुरस्कार, 1992’ तथा मंच पुरस्कार, 2000’ से सम्मानित।

सम्प्रति :      भारत सरकार के पोत परिवहन मंत्रालय
 


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7 Responses to सुभाष नीरव की लघुकथा और गीत

  1. ...लघुकथा ...गीत ... दोनो ही प्रसंशनीय हैं, बधाईंया...बधाईंया!!!

    ReplyDelete
  2. गुमराह का कोई धर्म नहीं होता, और धर्म की प्रतिबद्धता गुमराह नहीं होने देती, इसकी पुष्टि करती हुई लघुकथा।
    गॉव से जो शहर को जाता है
    क्‍यूँ वहीं पर ठहर वो जाता है।

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  3. लघुकथा के माध्यम से उठा सबसे बड़ा मुद्दा.
    कविता..पर एक शायर का ख़्याल मुलाहिज़ा फ़रमायें-
    अब ख़ुद को बेच डालूं कि ईमान बेच दूं
    बेटी के हाथ रंगे-हिना मांगने लगे.

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  4. धर्म के नाम पर चल रहे संप्रदायों पर कड़ा प्रहार है यह लघुकथा...

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  5. आपने लघुकथा के माध्यम से धार्मिक उन्माद भड़काने वालों की अच्छी खबर ली है।इस कथा में मुखौटेबाजों का मुखौटा भी उतरा है। बधाई!
    सद्भावी-डॉ०डंडा लखनवी

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