सूर्यकुमार पांडेय की हास्य-व्यंग्य कविता - यह ’लव-चतुर्दशी‘ है!

 

 


वेलेन्टाईन डे पर विशेष



आकांक्षा मिलन की, हर हृदय में बसी है।
तितली संवर रही है, भौंरों में दिलकशी है।
त्योहार प्रिय-मिलन का, बेचैन रूपसी है।
चौदह फरवरी आई, यह ’लव-चतुर्दशी‘ है।


यह पर्व है प्रणय का, सबसे नया-निराला।
इस दिन खुली धरा पर, है ’लव‘ की पाठशाला।
मस्ती का पाठ जारी, छलके है प्रेम-प्याला।
है फूल की दुकां पर, हर इश्क करने वाला।


है ’गिफ्ट‘ कोई देता, कोई ’गुलाब‘ लाया।
कोई प्रिया को देने को ’कार्ड‘ ले के आया।
वैरी जमाने ने था, पहरा कडा बिठाया।
प्रेमी युगल जुगत कर, घर से निकल ही आया।


मिलने को आशिकों ने, अपनी कमर कसी है।
चौदह फरवरी आई, यह ’लव-चतुर्दशी‘ है।


इस ’वेलंटाइन-डे‘ के, देखो नए नजारे।
नयनों की झील में कुछ, डूबे नदी किनारे।
हैं ब्याह की ललक में, सपने सभी कुंआरे।
होने लगा है कुछ-कुछ, अब दिल में भी हमारे।


’एफएम‘ पे, रेडियो पे हैं प्रेम-धुन के गाने।
हैं ’कॉलर-ट्यून‘ में भी, इस ’डे‘ के ही तराने।
ऐसे में जवां दिल भी, माने तो कैसे माने।
डैडी से कर रही है, लैला नए बहाने।


जाए वो कैसे, संशय के ’जाम‘ में फंसी है।
चौदह फरवरी आई, यह ’लव-चतुर्दशी‘ है।


नजरों के हैं इशारे, ये सीन क्या ही दिलकश।
ढेरों हसीन जोडे, बतिया रहे हैं हंस-हंस।
पार्कों में, होटलों में, बिखरा गुलाबी मधु-रस।
जो मिल न पाए, करते वो ’मेल‘ या ’एसएमएस‘।


जय हो, तुम्हारी जय हो, हे संत वेलंटाइन।
तुम आए तो उतरा है, ये वसंत वेलंटाइन।
लव के सुमन खिले हैं दिग्दिगंत वेलंटाइन।
होने लगा है मौसम रसवंत वेलंटाइन।


हर पुष्प अब ’पुरुरवा‘, हर लता ’उर्वशी‘ है।
चौदह फरवरी आई, यह ’लव-चतुर्दशी‘ है।


है कौन यहां पर जो, है प्यार नहीं करता।
वह बात अलग है, वह इजहार नहीं करता।
सच्चा मगर जो प्रेमी, दुनिया से नहीं डरता।
लेकिन जमाना जालिम, स्वीकार नहीं करता।


जालिम जमाने, ’लव‘ की डाली को यूं न काटो।
पोथी मोहब्बतों की, दीमक न बन के चाटो।
नफरत की खाइयों को, सद्भावना से पाटो।
बूढों को फूल भेंटो, बच्चों में प्यार बांटो।


गर प्यार है जगत में, तब ही खुशी-हंसी है।
चौदह फरवरी आई, यह ’लव-चतुर्दशी‘ है।

*******
- सूर्यकुमार पांडेय

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7 Responses to सूर्यकुमार पांडेय की हास्य-व्यंग्य कविता - यह ’लव-चतुर्दशी‘ है!

  1. WAH WAH WAH WAH.............................................MAZA AA GAYA JI PADH KAR. BADHAAI.

    ReplyDelete
  2. वाह भई वाह। क्‍या पकड़ है आपकी लव चतुर्दशी पर। और केवल विषय ही नहीं प्रस्‍तुति पर भी।


    इक मौजू
    अंगड़ाई लिये
    यौवन की रानाई लिये

    और अंत में सार रूप है
    चिंतन की गहराई लिये।

    ReplyDelete
  3. waah waah..........behtreen prastuti.

    ReplyDelete
  4. sunder prastuti....
    जालिम जमाने, ’लव‘ की डाली को यूं न काटो।
    पोथी मोहब्बतों की, दीमक न बन के चाटो।
    नफरत की खाइयों को, सद्भावना से पाटो।
    बूढों को फूल भेंटो, बच्चों में प्यार बांटो।

    ye panktiya badee sashakt lagee..........aur accha sandesh detee...........

    ReplyDelete
  5. सुन्दत लाजवाब प्रस्तुति. पाण्डेय जी के काव्य पटाखे ऐसे ही होते हैं.

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  6. सुन्दर और प्रभावशाली रचना है । बहुत बधाई ।

    ReplyDelete

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