ग़ज़लः 1
उड़ गए बालो-पर उड़ानों में
सर पटकते हैं आशियानों में.
जल उठेंगे चराग़ पल भर में
नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते
धर्म के नाम पर हुआ पाखंड
कट गए बालो-पर, मगर हमने
वलवले सो गए जवानी के
बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’
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ग़ज़लः 2
आंधियों के भी पर कतरते हैं
गै़र तो गै़र हैं चलो छोड़ो
जिंदगी इक हसीन धोका है
राह रौशन हो आने वालों की
खौफ़ तारी है जिनकी दहशत का
कल तलक सच के रास्तों पर थे
हम भला किस तरह से भटकेंगे
आदमी देवता नहीं फिर भी
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देवी नागरानी
न्यू जर्सी
bahut khoobsoorat gazal ...
ReplyDeleteItni sundar rachnaon se ru-b-ru karaneka shukriya!
ReplyDeletewaah.........ek se badhkar ek sher hain har gazal ka........shukriya padhwane ka.
ReplyDelete... प्रभावशाली प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteAaj Devi Nagrani ki gazal pdhi.Dil k bhut hi Aas-pas thi.
ReplyDeleteGer to ger h chlo chodo.
Hem to bus dosto se dertye h.
Devi nagrani n bhut hi marmik likha h.
Payra or madhur lokhne k liye Dhanyabad.
NARESH MEHAN
आदाब,
ReplyDeleteदेवी नागरानी जी के कलाम में हमेशा पुख़्तगी देखी जाती है.
उनका गहन चिंतन शायरी में ढलकर सामने आता है, तो कलाम अपनी बुलंदी पर होता है.
दोनों ग़ज़लों के सभी शेर दिल को छू गये हैं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
शानदार गजले
ReplyDeleteMeri prerna ko zinda rakhne paane mein aap sabhi ki shubhkamnayein shamil rahengi. aapka aabhar shabdon mein nahin kar pa rahi hoon..
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