वो भिखारी

-सुनील गज्जाणी
कचरे की ढेरी पे,
मानो सिंहासन पे हो बैठा,
जाने किस उधेड-बुन में,
अपने गालो पे हाथ धरे,
कचरे में पडे एक आईने में,
अक्स देखता अपना,
निहारता अपने को,
एक भिखारी।
सभ्य कॉलोनी के घरो का,
नाकारा सामान,
कूडा-करकट,
कचरा पात्र में,
कॉलोनी के बीचो बीच भरा पडा,
बीनता ढूंढता,
जाने क्या,
उस ढेर में,
वो भिखारी।

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10 Responses to वो भिखारी

  1. congratulation for your own blog
    i have read most of your creation like so good
    all of them is readable and so mamorable and useful our socities and current moments . wish you all the best keep it up
    may god bless you
    Markanday Ranga

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  2. सुनील जी, आदाब
    ....कचरे की ढेरी पे,
    मानो सिंहासन पे हो बैठा.....
    कविता की शुरूआत ही इतनी मज़बूत है...
    कि अंत तक सिर्फ़ और सिर्फ़
    बधाई के ही शब्द जबान पर आ रहे हैं...

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  3. Shubhkamnayen Sunil ji..yatharth ko likhne ki kala hi asli kala hai.
    bahut khoob.

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  4. sunil ji,

    shayad vo bhikhari waha apna astitwa dhundta hai..........

    sunder kalpana....

    sorry apke blog tak bahut der se pahucha lekin bahut acha laga.........

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  5. namaskar sunil ji , gareebi ka hamare desh mein koi ant nahin ...nice poem

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  6. Sunil ji
    aapki rachna ka tatv bahut hi anukool laga aur aapki soch shabdon mein khoob saji hai. daad ke saath

    ReplyDelete
  7. Sunil jee aapki yeh yatharyh kavita vo bhakhari bahut hee prabhav shali tatha dil ko chhu jaati hai,badhai.

    ReplyDelete
  8. Sunil ji ki kavita mein ek khas baat hai..soch ko shabdon mein bunne ki mahirta...bahut khoob abhivyakt hui hai

    ReplyDelete

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