संक्षिप्त परिचय:
श्री विजय सिंह नाहटा (R.A.S.)
श्री नाहटा जी की रचनाएँ ’राजस्थान पत्रिका’, ’दैनिक भास्कर’, ’मधुंमती’, ’समकालीन भारतीय साहित्य’, ’वसुधा’, ’संबोधन’ आदि में प्रकाशित।
प्रसार भारती एवम् दूरदर्शन से निरन्तर अनुप्रसारण।
शरद की ठहरी हुई शाम
शरद की ठहरी हुई शाम में
कल जलाया था अलाव
सैंकते सुर्ख ताप, बतियाते।
तुम आईं, फिर चली भी गई
उदास-सा अलाव बुझ चला
सूनी भोभर के ढेर में
कुछेक अधजली लकडयाँ
मँडे हुए बासी पदचिह्व
मँडराता, घूरता-सा मरा हुआ कोलाहल।
- तुम्हारी स्मृति अब रडकती मुझ में ?
राख के सोये हुए इस ढेर में
ज्यों दिपदिपाता एक अंगारा मद्धम
सोये हुए चैतन्य में
लो तुम अचानक देवता-सी
जग गई मुझमें
जगाती अलख निरंजन!
लो! थरप लूँ तुम्हें इस अलाव की देवी
गढ ही लूँ अपने खातिर
मौजूँ-सा मनोरम तीर्थ, पावन
- शरद सन्ध्या गहरा रही बाहर।
-------
आग की दरिया-सा रेगिस्ताँ
आग की दरिया-सा रेगिस्ताँ
धधकते अंगारों से टीबे
हहराती उठती लपट
रेतीले देह पर उग-उग आए
जख्म बेशूमार।
यकायक धूप-छाँव ः
लो गहराने लगी इकलौती बादली
झिरमिर गिरती बारिश
मरुथली की झुलसी देह पर।
गोया प्यार से सहलाती
मलहम सा लगाती, तन्मय
लहुलुहान घाव को धोती जल-फुहार से
- नया करती।
दर्द से कराह कराह उठती मरुथली
- एक खामोश चीख
बियाबाँ में गुम हो जाती।
-------
ढूँढता हूं
जब तुम न थीं
तो प्रतीक्षा थी
अब तुम हो
तो ढूँढता हूं उस प्रतीक्षा को।
-------
मेरा प्रेम है शिलालेख, यदि!
मेरा प्रेम है शिलालेख, यदि-
तो तुम्हारा मौन ः
- उस पर उत्कीर्ण लिपि।
हर बार ः
बाँच-बाँच लेता हूँ जिसे
भीतर तक उडेलता।
तपती दुपहरी
तपती दुपहरी -
यकायक
उतर आई शीतल छाँव ः
पखेरू
उतरते नभ से
अतल में डूबते
करते नया तन-मन
- विजय सिंह नाहटा (R.A.S.)
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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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सम्पादक मंडल
- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
आखर कलश की सफलता के लिए शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteVijay Nahataji ko padhana hamesh hi gahraiyon mein doob jaaana hai
ReplyDeleteदर्द से कराह कराह उठती मरुथली
- एक खामोश चीख
बियाबाँ में गुम हो जाती।
Kaash Dard hi dard ki dawa ban paata!!