माँ
समझौतों में पूरी हुई
पिता
संघर्षों में
दोनों ही का दिया
कुछ-कुछ है मेरे पास
पूरा किस में हूँगा
पता नहीं...
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अनिवार्यता
जानते हुए तुम्हारा चरित्र
मैं विवश हूं
अपने चरित्र प्रमाण-पत्र पर
कराने के लिए तुम्हारे हस्ताक्षर
यह मेरी इच्छा नहीं
मजबूरी है
एक अदद सरकारी नौकरी के लिए
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की
अलोकतांत्रिक व्यवस्था की अनिवार्यता
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जो पुल पार कर आते हैं
जो पुल पार कर आते हैं
निश्चित ही घमासान मचाते हैं
दिखते ही नहीं उन्हें कभी
पुल के नीचे बहती
स्रोतवाहिनी के निर्मल बहाव
किनारों के घाव
गहरे में उतरे जाते नंगे पांव
इस पार से
उस पार पहुंचने को आतुर
पसीने से नहाया मल्लाह, नाव
जो पुल पार कर आते हैं
निश्चित ही घमासान मचाते हैं
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वे लोग
बिरले ही होते हैं वे लोग
जो एक अधूरी उम्र में
कर जाते हैं
बड़े, महत्त्वपूर्ण
और पूरे काम व नाम
अधिकतर लोगों की
बीत जाती है पूरी उम्र
फ़िर भी
रह ही जाते है
पूरे होने से
छोटे-छोटे काम
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औरों के लिए ही क्यों?
सबके
नाप-तौल
मोल-भाव है तुम्हारे पास!
कभी खुद को भी तो
जांचों!
परखो यार!
सारे के सारे
बाट, मीटर
औरों के लिए ही क्यों?
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जैसे जिनके धनुष
न तुम कम
न मैं कम
वह भी कम नहीं वीर
जैसे जिनके धनुष हैं
वैसे उनके तीर!
तुम्हारी पीठ -१
जो तुम्हारी पीठ पर दिखता है
अगर चेहरे पर दिख जाता
मैं निश्चित ही बच जाता
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तुम्हारी पीठ -२
न सही चेहरा
पीठ ही सही
तुम्हारा दिया
कुछ तो है मेरे पास
पार उतर जाऊंगा
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तुम्हारी पीठ -३
जब तक नहीं मिले
मुझे मेरी राह
है मेरी चाह
लदा रहूं तुम्हारी पीठ पर
मुझे पता है-
तुम्हारी पीठ
पीठ नहीं
बैशाखी है उस गंतव्य के लिए
जहां मुझे पहुंचना है
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पहाड़ा प्रेम का
मारजा की स्कूल में
भारणी की तरह
एक नहीं
कई- कई बार पढाया गया
याद हो जाने पर भी
फ़िर- फ़िर
दोहराया, रटाया गया
उम्र ही बीत, रीत गई
पर
हो ही नहीं पाया याद
ढंग से आज तलक
पहाड़ा प्रेम का
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गुब्बारा प्रेम का
झूठे!
कमीने!
नीच!
दगाबाज़!
बास्टर्ड!
अहसान फ़रामोश!
मैंने तुम्हें क्या समझा था,
और तुम क्या निकले!
कुछ ऎसे ही जुमले तो बचे रह जाते हैं
हर रिश्ते- सम्बन्ध में
एक-दूसरे के लिए
जब फ़ूटता है-
गुब्बारा प्रेम का
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नवनीत पांडे हमारे समय के साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी लेखनी हिंदी और राजस्थानी भाषा में समवेत रूप से शब्दों और भावों का एक सुरमई संसार रचती हैं। आपकी कविता आम आदमी की कविता है जो हर मोड़ पर कहीं न कहीं किसी न किसी मोड़ पर मिल ही जाती है। ऐसे ही कुछ शब्दचित्र आपक सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है।
हर कविता लाजवाब दिल पर गहरा वार करती हुयी और सोचने को मजबूर करती हुयी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविताये है आम आदमी के जीवन से जुडी सच्चाई पर ....
ReplyDeleteअधिकतर लोगों की
बीत जाती है पूरी उम्र
फ़िर भी
रह ही जाते है
पूरे होने से
छोटे-छोटे काम....यह जीवन की कटु सच्चाई जिसे बहुत ही सहज रूप में लिखा है ...नवनीत जी और आखर कलश को बधाई
...उम्र ही बीत, रीत गई
ReplyDeleteपर
हो ही नहीं पाया याद
ढंग से आज तलक
पहाड़ा प्रेम का ...
बहुत सहज कविताये है.
नवनीत जी, बधाई.
आखिर कलश की वापिसी की बधाई! बेहतरीन कविताएँ।
ReplyDeleteSUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE NAVNEET PANDEY JI KO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN .
ReplyDeleteSUNDAR BHAVABHIVYAKTI KE LIYE NAVNEET PANDEY JI KO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN .
ReplyDeleteBhai नवनीत पाण्डे ki kavitayen bahut pasand aai!
ReplyDeleteनवनीत पाण्डे Rajasthan ke khyat nam kavi evam kathakar hain |
unki kavitayen padhna ek anubhav se gujarna hai |
unki kavitayen prastut karne ke liye aabhar evam badhai !
खूबसूरत शब्दचित्र।
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