यूके से प्राण शर्मा की ग़ज़लें

प्राण शर्मा
जन्म : १३ जून १९३७ को वजीराबाद (अब पाकिस्तान) में।
शिक्षा : दिल्ली विश्वविद्यालय से एम ए बी एड
कार्यक्षेत्र :
प्राण शर्मा जी १९६५ से लंदन-प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका 'पुरवाई' में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आपने लंदन में पनपे नए शायरों को कलम माजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाएँ युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, 'वीर अर्जुन' एवं 'हिन्दी मिलाप' में प्रकाशित होती रही हैं। वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं। वे अपने लेखन के लिये अनेक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं तथा उनकी लेखनी आज भी निरंतर चल रही है।
प्रकाशित रचनाएँ :'सुराही' (कविता संग्रह)

(1)
सोच की भट्टी में सौ-सौ बार दहता है
तब कहीं जाकर कोई इक शेर कहता है
हर किसी में होता है नफ़रत का पागलपन
कौन है जो इस बला से दूर रहता है
बात का तेरी करे विश्वास क्यों कोई
तू कभी कुछ और कभी कुछ और कहता है
टूट जाता है किसी बच्चे का दिल अक्सर
ताश के पत्तों का घर जिस पल भी ढहता है
यूँ तो सुनता है सभी की बातें वो लेकिन
अच्छा करता है जो अक्सर मौन रहता है
हाय री मजबूरियाँ उसकी गरीबी की
वो अमीरों की जली हर बात सहता है
धूप से तपते हुए ए `प्राण`मौसम में
सूख जाता है समंदर कौन कहता है

(2)
हर चलन तेरा कि जैसे राज़ ही है
ज़िन्दगी तू ज़िन्दगी या अजनबी है
कुछ न कुछ तो हाथ है तकदीर का भी
आदमी की कब सदा अपनी चली है
टूटते रिश्ते, बदलती फ़ितरतें हैं
क्या करे कोई, हवा ऐसी चली है
क्यों न हो अलगाव अब हमसे तुम्हारा
दुश्मनों की चाल तुम पर चल गयी है
आदमी दुश्मन है माना आदमी का
आदमी का दोस्त फिर भी आदमी है
कुछ तो अच्छा भी दिखे उसको किसीमें
आँख वो क्या जो बुरा ही देखती है
`प्राण` औरों की कभी सुनता नहीं वो
सिर्फ़ अपनी कहता है मुश्किल यही है

(3)
मेरे दुखों में मुझ पे ये एहसान कर गये
कुछ लोग मशवरों से मेरी झोली भर गये
पुरवाइयों में कुछ इधर और कुछ उधर गये
पेड़ों से टूट कर कई पत्ते बिखर गये
वो प्यार के ए दोस्त उजाले किधर गये
हर ओर नफरतों के अँधेरे पसर गये
अपनों घरों को जाने के काबिल नहीं थे जो
मैं सोचता हूँ कैसे वो औरों के घर गये
हर बार उनका शक़ की निगाहों से देखना
इक ये भी वज़ह थी कि वो दिलसे उतर गये
तारीफ़ उनकी कीजिये औरों के वास्ते
जो लोग चुपके - चुपके सभी काम कर गये
यूँ तो किसी भी बात का डर था नहीं हमें
डरने लगे तो अपने ही साये से डर गये

(4)
तुझसे दिल में रोशनी है
ए खुशी तू शमा सी है
आपकी संगत है प्यारी
गोया गुड़ की चाशनी है
बारिशों की नेमतें हैं
सूखी नदिया भी बही है
मिट्टी के घर हों सलामत
कब से बारिश हो रही है
नाज़ क्योंकर हो किसीको
कुछ न कुछ सबमें कमी है
कौन अब ढूँढे किसी को
गुमशुदा हर आदमी है
बाँट दे खुशियाँ खुदाया
तुझको कोई क्या कमी है
***

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10 Responses to यूके से प्राण शर्मा की ग़ज़लें

  1. बहुत उम्दा शायरी है आपकी. यूं तो तमाम छंद अच्छे हैं मगर मुझे आपका पहला छंद सबसे ज्यादा खूबसूरत लगा. तीसरे छंद की सातवीं पंक्ति में "अपनों घरों को जाने के काबिल नहीं थे जो" में अगर 'अपने घरों....लिखा जाए तो अधिक अच्छा लगेगा. इसी प्रकार चौथे छंद की अंतिम पंक्ति "तुझको कोई क्या कमी है" को अगर "तुझको क्या कोई कमी है" के रूप में लिखा जाए तो शायद बेहतर हो सकता है. शायर का नजरिया इससे मुख्तलिफ भी हो सकता है क्योंकि ये रचना उनकी अपनी है और ये उनका अपना ही अंदाजे-बयां हो !

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  2. priya bhai Pran Sharma jee aapki gajlon se gujarte hue bahut achchha lagaa.inn gajlon ne man ko bahut gehre chhu liya hai.itni behtreen gajlon ke liye meri aur se badhai sweekaren.

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  3. गज़ब की गज़लें. प्राण जी की हर गज़ल लाजवाब होती है. मैंने जब से उनकी गज़लें पढ़नी प्रारंभ की हैं नजर पड़ने पर बिना पढ़े रह ही नहीं पाता. वह अपने समय के उत्कृष्ट गज़लकार हैं.

    रूपसिंह चन्देल

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  4. सारी ही गजलें अच्छी लगीं।
    नाज़ क्योंकर हो किसीको
    कुछ न कुछ सबमें कमी है ।
    लोग अगर इस तरह सोचने लगें तो संभल जायें किन्तु ऐसा कहाँ होता है!
    सादर
    इला

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  5. सोच की भट्टी में सौ-सौ बार दहता है
    तब कहीं जाकर कोई इक शेर कहता है

    ज़िन्दगी की सच्चाइयों से रु-ब-रु कराती शानदार गज़लें।

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  6. सभी रचनाएँ बहुत उम्दा है. ये एक शेर बहुत ख़ास लगा. जिन्दगी में इतना सरल नहीं होता सब कुछ. एक शेर कहने में भी सोच को भट्टी में तपना होता है फिर पूरी गज़ल और ज़िंदगी कहनी हो तो? बहुत गहन लेखनी...
    सोच की भट्टी में सौ-सौ बार दहता है
    तब कहीं जाकर कोई इक शेर कहता है

    प्राण शर्मा जो को शुभकामनाएँ.

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  7. आदरणीय प्राण शर्मा जी आपकी ग़ज़लें कई बार पढ़ चुका आजकल और ज्ञानोदय में साथ -साथ छपे भी हैं |आपकी बेबाक कहन मन को प्रभावित करती है |भाषा की सहजता भी मन को मोह लेती है |आभार

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  8. यूँ तो सुनता है सभी की बातें वो लेकिन
    अच्छा करता है जो अक्सर मौन रहता है
    ****
    टूटते रिश्ते, बदलती फ़ितरतें हैं
    क्या करे कोई, हवा ऐसी चली है
    ****
    अपनों घरों को जाने के काबिल नहीं थे जो
    मैं सोचता हूँ कैसे वो औरों के घर गये
    ****
    नाज़ क्योंकर हो किसीको
    कुछ न कुछ सबमें कमी है

    सादे सरल लफ्ज़ और गहरी सीधे दिल में उतरती बातें...ये प्राण साहब की शायरी की सबसे बड़ी विशेषता है...वो बात को सहज ढंग से कहते हैं..अपनी बातों में उलझाते नहीं...इसीलिए आज भी उनकी ग़ज़लें बहुत चाव से पढ़ीं जाती हैं...इश्वर से प्रार्थना है वो उन्हें स्वस्थ रखे ताकि वो सालों साल इसी तरह लिखते रहें...

    नीरज

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  9. देवमणि पाण्डे-
    प्राणजी नमस्कार! सभी ग़ज़लों में नयापन और ताज़गी है। बधाई!

    `प्राण` औरों की कभी सुनता नहीं वो
    सिर्फ़ अपनी कहता है मुश्किल यही है

    तारीफ़ उनकी कीजिये औरों के वास्ते
    जो लोग चुपके-चुपके सभी काम कर गये

    ReplyDelete
  10. saawn ki pahli foohar see tajgi ke ahsaas samete huve hain Pram ji ki gzalen Sadhuwaad

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