सांवर दइया की कविताएं

                  

सांवर दइया
जब देखता हूं

जब देखता हूं
धरती को
इसी तरह रौंदी-कुचली
देखता हूँ
जव देखता हूँ आकाश को
इसी तरह अकड़े-ऎंठे
देखता हूँ
अब मैं
किस-किस से कहता फिरूँ
अपना दुख -
यह धरती : मेरी माँ !
यह आकाश : मेरा पिता !
***
बीजूका : एक अनुभूति

सिर नहीं
है सिर की जगह
औंधी रखी हंडिया
देह -
लाठी का टुकड़ा
हाथों की जगह पतले डंडे

वस्त्र नहीं है ख़ाकी
फिर भी
क्या मजाल किसी की
एक पत्ता भी चर ले कोई
तुम्हारे होते !
***

उल्टे हुए पड़े को देख कर

मेरी जड़ें
ज़मीन में कितनी गहरी हैं
यह सोचने वाला पेड़
आँधी के थपेड़ों से
उलट गया ज़मीन पर
कितने दिन रहेगा
तना हुआ मेरा पेड़-रूपी बदन ?

रोज़ चलती है
यहाँ अभावों की आँधी
धीरे-धीरे काटता है
जड़ों को जीवन

अब
यह गर्व फिजूल
मेरी जड़ें
ज़मीन में कितनी गहरी हैं ?
***

हत्भाग्य

गूंगा गुड़ के गीत गा रहा है
बहरा सराह रहा है
सजी सभा में
पंगुल पाँव सहला कर बोला -
मैं नाचूँगा ।

अँधा आगे आया
कड़क कर बोला -
तुमने ठेका ले रक्खा है
मुझे भी तो देखने दो !

कलाकार !
लो, सँभालो तुम्हारी क़लम !
***

छल

लोग कहते हैं
तू जिन्हें दाँत देता है
उन्हें चने नहीं देता
और जिन्हें चने देता है -
उन्हें दाँत !

पर मुझे तो तूने
दोनों ही दिए, दाँत और चने ।
दीगर है यह बात
कि इन दाँतों से
ये चने चबाए नहीं जाते ।
***
सूरज : चार चित्र

एक
पूरब : सागर अथाह
सूरज खेने वाला
भगा आता है ले कर
दिन-नाव ।

दो
रात : जुल्मों की राजधानी
अंधेरा : गुंडा
अकेला सूरज
जूझता है, जीतता है
मनाता है जीत उत्सव
पूरब किले खड़ा हो
उडाता है - सिंदूरी गुलाल ।

तीन
पूरब में सिंदूरी उजाला
जैसे जवान होती लड़की के
चेहरे पर आती रौनक

सिंदूरी सूरज
जैसे अभी-अभी बनवाया हो
सोने का नया टीका
भोर लड़की जवान होगी तब
काम आएगा

वह सोचती है-
कुदरत मां ।

चार
पूरब-चौक
खेले भोर-लड़की
सूरज गेंद ।
***

अनुवाद : नीरज दइया
नीरज दइया

सांवर दइया (10 अक्तूबर, 1948 - 30 जुलाई, 1992) कवि, कथाकार और व्यंग्य लेखक की हिंदी में “दर्द के दस्तावेज” (1978 ग़ज़ल संग्रह), “उस दुनिया की सैर के बाद” (1995 कविता-संग्रह), एक दुनिया मेरी भी (कहानी संग्रह) तथा राजस्थानी में अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई- प्रमुख कविता संग्रह है- मनगत, आखर री औकात, हुवै रंग हजार, आ सदी मिजळी मरै आदि । साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत।

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10 Responses to सांवर दइया की कविताएं

  1. बहुत ही बेहतरीन रचनाये.....नववर्ष की शुभकामनायें...

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  2. Neeraj jee kee sabhi rachnaen achchha prabhav chhodti hain,badhai.

    ReplyDelete
  3. priya bhai vyas jee galti se saanwar jee kii jagah neeraj chalaa gayaa hai kripya edit karke theek kar lenaa, asuvidha ke liye khed vyakt kartaa hoon.

    ReplyDelete
  4. बहुत ही अच्छी कवितायें! अपनी अलग पहचान बनाने में सक्षम कवितायें!
    सादर
    इला

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर रचनाएँ.....बधाई

    ReplyDelete
  6. सांवर दइया जी की ये कविताएं पढ़कर अभिभूत हूँ, बहुत ही सुन्दर कविताएं, प्रभावकारी।

    ReplyDelete
  7. कविताओं को पढ कर एक तृप्ति का अनुभव होता है ।

    ReplyDelete
  8. .



    श्रेष्ठ रचनाकार की श्रेष्ठ रचनाओं के लिए आभार!

    ReplyDelete
  9. .


    क्या बात है नरेन्द्र जी !
    बहुत समय हो गया नई पोस्ट लगाए …
    आशा है,सपरिवार स्वस्थ-सानंद हैं …


    स्वीकार करें मंगलकामनाएं आगामी होली तक के लिए …
    **♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥
    ~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
    ****************************************************
    ♥होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार !♥
    ♥मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !!♥


    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    ****************************************************
    ~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
    **♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥

    ReplyDelete
  10. गागर में सागर के समान दिल को लुभाने वाला सृजन रुचिकर लगा

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