सड़क किनारे खड़ी औरत
कभी अकेले नहीं होती
उसका साया होती है मजबूरी
आंचल के दुख
मन में छिपे बहुत से रहस्य
औरत अकेली होकर भी
कहीं अकेली नहीं होती
सींचे हुए परिवार की यादें
सूखे बहुत से पत्ते
छीने गए सुख
छीली गई आत्मा
सब कुछ होता है
ठगी गई औरत के साथ
औरत के पास
अपने बहुत से सच होते हैं
उसके नमक होते शुरीर में घुले हुए
किसी से संवाद नहीं होता
समय के आगे थकी इस औरत का
सहारे की तलाश में
मरूस्थल में मटकी लिए चलती यह औरत
सांस भी डर कर लेती है
फिर भी
जरूरत के तमाम पलों में
अपनी होती है
***
इन्होंने अपनी मीडिया प्रयोग की शुरूआत 10 साल की उम्र से की और जालंधर दूरदर्शन की सबसे कम उम्र की एंकर बनीं। लेकिन टेलीविजन के साथ पूर्णकालिक जुड़ाव 1994 से हुआ। इन्होंने अपने करियर की शुरूआत जी टीवी से की, फिर करीब 7 साल तक एनडीटीवी से जुड़ी रहीं और वहां अपराध बीट की हेड बनीं। तीन साल तक भारतीय जनसंचार संस्थान में अध्यापन करने के बाद ये लोकसभा टीवी के साथ बतौर एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर जुड़ गईं। चैनल के गठन में इनकी एक निर्णायक भूमिका रही। यहां पर वे प्रशासनिक और प्रोडक्शन की जिम्मेदारियों के अलावा संसद से सड़क तक जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को एंकर भी करती रहीं।
इसके बाद वर्तिका सहारा इंडिया मीडिया में बतौर प्रोग्रामिंग हेड नियुक्त हुईं और सहारा के तमाम न्यूज चैनलों की प्रोग्रामिंग की जिम्मेदारी निभाती रहीं।
इस दौरान इन्हें प्रिंट मीडिया के साथ भी सक्रिय तौर से जुड़ने का मौका मिला और वे मासिक पत्रिका सब लोग के साथ संयुक्त संपादक के तौर पर भी जुड़ीं। इस समय वे त्रैमासिक मीडिया पत्रिका कम्यूनिकेशन टुडे के साथ एसोसिएट एडिटर के रूप में सक्रिय हैं।
प्रशिक्षक के तौर पर इन्होंने 2004 में लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए पहली बार मीडिया ट्रेनिंग का आयोजन किया। इसी साल भारतीय जनसंचार संस्थान, ढेंकानाल में वरिष्ठ रेल अधिकारियों के लिए आपात स्थितियों में मीडिया हैंडलिंग पर एक विशेष ट्रेनिंग आयोजित की। इसके अलावा टीवी के स्ट्रिंगरों और नए पत्रकारो के लिए दिल्ली, जयपुर, भोपाल, रांची, नैनीताल और पटना में कई वर्कशॉप आयोजित कीं। आईआईएमसी, जामिया, एशियन स्कूल ऑफ जर्नलिज्म वगैरह में पत्रकारिता में दाखिला लेने के इच्छुक छात्रों के लिए आयोजित इनकी वर्कशॉप काफी लोकप्रिय हो रही हैं।
2007 में इनकी किताब लिखी- 'टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता' को भारतेंदु हरिश्चंद्र अवार्ड मिला। यह पुरस्कार पत्रकारिता में हिंदी लेखन के लिए भारत का सूचना और प्रसारण मंत्रालय देता है। इसके अलावा 2007 में ही वर्तिका को सुधा पत्रकारिता सम्मान भी दिया गया। चर्चित किताब - 'मेकिंग न्यूज' (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित ) में भी वर्तिका ने अपराध पर ही एक अध्याय लिखा है।
2009 में वर्तिका और उदय सहाय की किताब मीडिया और जन संवाद प्रकाशित हुई। इसे सामयिक प्रकाशन ने छापा है। यह वर्तिका की तीसरी किताब है। 1989 में वर्तिका की पहली किताब (कविता संग्रह) मधुर दस्तक का प्रकाशन हुआ था।
बतौर मीडिया यात्री इन्हें 2007 में जर्मनी और 2008 में बैल्जियम जाने का भी अवसर मिला। 2008 में इन्होंने कॉमनवैल्थ ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन के चेंज मैनेजमेंट कोर्स को भी पूरा किया।
इन दिनों वे मीडिया पर ही दो किताबों पर काम कर रही हैं। हिंदुस्तान, जनसत्ता, प्रभात खबर आदि में मीडिया पर कॉलम लिखने के अलावा ये कविताएं भी आम तौर पर मीडिया पर ही लिखना पसंद करती हैं।
वर्तिका की रूचि मीडिया ट्रेनिंग में रही है। वे उन सब के लिए मीडिया वर्कशाप्स आयोजित करती रही हैं जो मीडिया को करीब से जानना-समझना चाहते हैं।
कविता अंत में आकर बिखर गई सी लगती है।
ReplyDeleteजब औरत अकेली नहीं होती तो डरती क्यों है ?
ReplyDeleteडॉ. वर्तिका नंदा को पहले भी पढ़ा सुना है. कविता का आरम्भ सशक्त है लेकिन भाई राजेश उत्साही से सहमत होना भी जरूरी है, मेरा ही नहीं, वर्तिका नंदा का भी.
ReplyDeletesundar.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पैर पहली बार आए है बहुत ही सुंदर भाव की रचना है
ReplyDeletesaarthak prastuti samay mile kabhi to aaiyegaa meri post par aapka svagat hai..http://mhare-anubhav.blogspot.com/
ReplyDeletesunder bhav
ReplyDeletebadhai
rachana
खामोश दर्द....विचारनीय
ReplyDeleteखामोश दर्द....विचारनीय
ReplyDeleteसींचे हुए परिवार की यादें
ReplyDeleteसूखे बहुत से पत्ते
छीने गए सुख
छीली गई आत्मा
पंक्तियाँ एक पीड़ित औरत का तमाम दर्द उकेरने में सफल हैं ....
निश्चित तौर पर वर्तिका नंदा जी अच्छा लिखती हैं ....
शुरीर ....?
jarurat ke tamaam palon men
ReplyDeleteapni hoti hai.
vakei aourat ishwar ki sundar rachna hai,kitne sangarsho ko mehsusti tatha jhelti huee ek satya ka nirmaan karti hai,badhai.
behad khubsurat..
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