हमारे साध कुछ मुगालते रहते हैं
हम उम्र भर उन्हें पालते रहते हैं
कुछ यादें हर पल साथ रहती हैं
कुछ ग़म उम्र भर सालते रहते हैं
फैसले जो सबसे जरूरी होते हैं
हम न जाने क्यूं टालते रहते हैं
बच्चे तो अपनी दुनिया बसा लेते हैं
माँ-बाप तस्वीरें संभालते रहते हैं
नेकी कर दरिया में डाल नहीं पाते
गुनाह कर दरिया में डालते रहते हैं
ग़ज़ल २.
हर इंसान के दिल में गर इंसानियत आ जाये
यकीं मानिये ज़मी पर उतर कर जन्नत आ जाये
दिल तो खुदा ने बनाया है मुहब्बत के वास्ते
वो दिल ही क्या जिसमें जरा भी नफरत आ जाये
देख कर शहर की फजां हर माँ करती है दुआ
कि उसका बच्चा वापस सही सलामत आ जाये
हजारों ऐब आ जायेंगे उस एक मुफ्लिस में
जिसके हिस्से में बस जरा सी दौलत आ जाये
जब कुछ नहीं है तो खुद को समझता है खुदा
क्या हो गर इंसां में खुदा सी ताक़त आ जाये
ख़त्म हो जायेंगे मंदर औ मस्जिद के झगड़े
गर इंसान को सलीका-ए-इबादत आ जाये
हर वक़्त रखिये आखिरी सफ़र की तैयारी
न जाने कब कहाँ लम्हा-ए-रुखसत आ जाये
ग़ज़ल ३.
हर तरह के तजुर्बे ज़िन्दगी में मिलते हैं
कुछ अंधेरों के पते रोशनी में मिलते हैं
कभी हम एक ही घर में रहा करते थे
आज कल शादी और गमी में मिलते हैं
तमाम उम्र आसमानों में उड़ते रहते हैं
मगर आखिर में सब जमीं में मिलते हैं
कोई न कोई खूबी हर इंसां में होती है
कुछ न कुछ ऐब हर किसी में मिलते हैं
होश में अक्सर झूठ बोलने वाले भी
सच बोलते हैं जब बेखुदी में मिलते हैं
बुरे लोगों में भी अच्छाई ढूंढते रहो
कभी-कभी खजाने गंदगी में मिलते हैं
***
फैसले जो सबसे जरूरी होते हैं
ReplyDeleteहम न जाने क्यूं टालते रहते हैं
aesa hi hota hai
होश में अक्सर झूठ बोलने वाले भी
सच बोलते हैं जब बेखुदी में मिलते हैं
lajavab
ख़त्म हो जायेंगे मंदर औ मस्जिद के झगड़े
गर इंसान को सलीका-ए-इबादत आ जाये
kash aesa ho
aapki tino gazalen bahut achchhi hain
bahut bahut badhai
rachana
bhut achchha likha hai bdhai
ReplyDeleteडॉ विजय की तीनों गज़लें बहुत पसंद आईं...उम्दा!!
ReplyDeleteआदरणीया देवी नागरानी जी ने अपनी प्रतिक्रिया मेल द्वारा प्रेषित की-
ReplyDeleteHamare sindhi bhai ki ghazal ka yehshilp saundary bahut hi tarasha hua laga.
ख़त्म हो जायेंगे मंदर औ मस्जिद के झगड़े
गर इंसान को सलीका-ए-इबादत आ जाये
Vaah Kya khoob kaha hai. Bahut bahut badhayi is nageenedari ke liye
Devi Nangrani
बच्चे तो अपनी दुनिया बसा लेते हैं
ReplyDeleteमाँ-बाप तस्वीरें संभालते रहते हैं
***
ख़त्म हो जायेंगे मंदर औ मस्जिद के झगड़े
गर इंसान को सलीका-ए-इबादत आ जाये
***
कभी हम एक ही घर में रहा करते थे
आज कल शादी और गमी में मिलते हैं
***
विजय कुमार जी को पहले पढने का मौका नहीं मिला था लेकिन आज उन्हें पढ़ कर उनके हुनर का अंदाज़ा हो गया है...तीनों ग़ज़लें बेहतरीन हैं और नयापन लिए हुए हैं...उन्हें और पढने का जी कर रहा है...उनके ग़ज़ल संग्रह का बेताबी से इंतज़ार रहेगा...उनकी ग़ज़लें हम तक पहुँचाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया...
नीरज
बहुत बढ़िया...हरेक शेर लाजवाब
ReplyDeleteबेहतरीन गज़लें !
ReplyDeleteबच्चे तो अपनी दुनिया बसा लेते हैं
ReplyDeleteमाँ-बाप तस्वीरें संभालते रहते हैं
देख कर शहर की फजां हर माँ करती है दुआ
कि उसका बच्चा वापस सही सलामत आ जाये..
Bahut khub ! eakse badhkar eak..bahut 2 badhai..
bure logon men bhee achchhai dhoonte raho
ReplyDeletekabhee-kabhee khajane gandagee men milte hain.
bahut achchhi gajlon ke liye badhai.