मैं एक बून्द
बारिश की
तुम्हारी हथेली पर गिरी
मोती बन गई।
२.
दराज में बन्द हैं पिता
दस्तख़त के साथ
तमाम दस्तावेजों में
जिनकी उपस्थिति
दर्ज़ करा दी जायेगी
बेहद जरुरी होने पर
३.
मेरे शहर की धूप में
बिखरे हुये हैं
कुछ मोती से दिन
छत की मुंडेर पर
बैठी है एक उदास शाम
चाँदनी सी बिछी हैं रातें
आंगन में
और
बूढे दरख्त पर
अब भी लटका हुआ है
मेरा आधा-अधूरा प्यार।
४.
बंद लिफाफे
की तरह
चले आते है लोग
वक्त-वेवक्त
मौसम-बेमौसम
पूछते
मेरे घर का पता।
५.
उम्मीद के दरवाजे
बंद हो गये हैं
ताले पड गये हैं
दूरियों के
इन्तजार की एक खिडकी
खुली है अब तक
जहाँ से आती है
धूप
हवा
बारिश
और तुम्हारी याद।
६.
पक्की मिट्टी वाली औरतें
सिन्दूर,पाजेब का पर्याय बन
लांघती हैं दहलीज
गढ़ती हैं नये आकार में
रोज़ खुद को
चक्की पर पिसती
बारीक और बारीक
चुल्हे पर सिकती दोनों पहर
भरती बर्तन भर
पानी सी झरती
ढुल जाती
आखरी बून्द तक
कई कई बार
धुली चादर सी
बिछ जाया करती
बिस्तर पर।
***
चित्रा सिंह समकालीन साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती हैं. आपकी रचनाप्रक्रिया के मर्म को आपकी कविताओं में व्यक्त वस्तु चेतना, रूप संवेदन एवं शिल्पविधान के चित्रण में स्पष्टतः समझा जा सकता है.
हंस, वागर्थ, साक्षात्कार, समकालीन कविता, वसुधा, वस्तुतः दैनिक भास्कर, नवभारत, नईदुनिया, आँचलिक जागरण, लोकमत आदि में कविताओं और लेखों का प्रकाशन।
विगत दशक से आकाशवाणी भोपाल से निरन्तर कविताओं का प्रसारण के साथ-साथ दो कहानियाँ- नीलगिरी और छूटती परछाई, भी प्रसारित।
दूरदर्शन भोपाल में काव्य पाठ और युवा काव्य संध्या में भागीदारी, दूरदर्शन के काव्याँजली कार्यक्रम में निरन्तर कविताएँ प्रसारित।
सम्प्रतिः क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान भोपाल में रसायन शास्त्र विभाग में सहायक प्राध्यापक
पताः
एम २७, निराला नगर
दुष्यंत कुमार मार्ग
भोपाल।
रोज़ खुद को
ReplyDeleteचक्की पर पिसती
बारीक और बारीक
चुल्हे पर सिकती दोनों पहर
भरती बर्तन भर
पानी सी झरती
ढुल जाती
आखरी बून्द तक
sunder abhivyakti
sari kavitayen bahut sunder hain
badhai
rachana
आदरणीय चित्रा सिंह जी को सादर अभिवादन - उनकी रचनाओं के बारे में कुछ कहना छोटा मुंह बड़ी बात होगी, पढवाने के लिए आभार.
ReplyDeletebahut hi sunder bhav stri ki yehi niyati hai...
ReplyDeleteबहुत खूब ....!!
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं प्रभावी हैं ......
नरेंद्र जी चित्रा जी से कहियेगा सरस्वती-सुमन के लिए भी क्षणिकाएं भेजें जो क्षणिका विशेषांक निकल रहा है ...
या उनका फोन न. उपलब्ध कराएं .....
जहाँ से आती है
ReplyDeleteधूप
हवा
बारिश
और तुम्हारी याद।
bahut khub. Kitane sade aur sunder shabd.
meena
बहुत सारगर्भित क्षणिकाएँ ... अंतिम विशेष असर छोडती हुई
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं ..आभार ।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत क्षणिकायें हैं सभी एक से बढकर एक हैं।
ReplyDeleteछोटी छोटी..किन्तु सशक्त रचनायें...बहुत उम्दा!! बधाई!
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएँ ।
ReplyDeleteचित्रा सिंह की सभी कविताएं बहुत प्रभावकारी हैं, मन को छूती हैं। इतनी सुन्दर कविताओं के लिए चित्रा जी को और आपको बधाई !
ReplyDeleteचित्रा जी का ई मेल आई डी मिल सकता है क्या ?
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletechitra jee ki bahut hee sargarbhit rachnaen padwane ke liye aabhar
ReplyDeletechitra singh ki sabhi kavitayen...sch me lajabab hain!
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