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नरेश मेहन जी की सभी कविताएँ बहुत मर्मस्पर्शी और यथार्थपरक हें. शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteनरेश जी कविता अपनी सादग़ी की वजह से अलग हो जाती है....उनकी कविता में और उन में सादग़ी बची रहे........
ReplyDeleteअनुभव के आँगन से निकली पाती
ReplyDeleteजो शब्दों में ढलकर आ गयी है..
मन को छू गयी आपकी कवितायेँ...नरेश मोहन जी बधाई
आभार आपका...व्यास जी...
सभी कवितायें झंझोड देने वाली सोचने को विवश करती है।
ReplyDeletesabhi rachnayen ek se badhkar ek lagi....
ReplyDeletesari rachnaaye ek se badh kar ek hain....agar inhe ek ek kar ke prakashit kiya jata to acchha hota taki har rachna par alag se tippani ki ja sake.
ReplyDeletehar rachna socho ko jhakjhor dene wali aur yatharthparak hai.
सरोकारों की कविताएँ हैं ....
ReplyDeleteकिस रचना को चुना जाए ये एक बहुत बड़ा प्रश्न है
ReplyDeleteहर रचना स्वयं में मुकम्मल और उम्दा है चाहे वो ’आतंकवाद’हो ,’सिर’,,’अकेलापन” हो या ’बचपन’
्बधाई हो !!
सहज और सरल कविताएं हैं। पर थोड़ी कसावट की आवश्यकता है।
ReplyDeleteSabhi rachnayen bahut marmsparshi lagi "patta"bahut hi pasnd aayi...bahut 2 badhai..
ReplyDeleteबहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचनाएँ। बधाई
ReplyDeleteनरेश मेहन जी की सभी कविताएँ सहज और सरल हैं....बधाई....
ReplyDeletePAPA KO PADH KE AISA LAGA KI MAIN HAMESHA SE UNHI KE AANGAN ME THI. ANANYA MEHAN
ReplyDeletePAPA KO PADH KE AISA LAGA, KI MAIN HAMESHA SE UNHI KE AANGAN ME THI. ANANYA MEHAN
ReplyDeletePAPA KO PADH KE AISA LAGA KI, MAIN HAMESHA SE UNHI KE AANGAN ME THI. ANANYA MEHAN
ReplyDeletePAPA KO PADH KE AISA LAGA KI, MAIN HAMESHA SE UNHI KE AANGAN ME THI. ANANYA MEHAN
ReplyDeleterachna mein yathaarth ka bahut sateek chitran hai jise har insaan mehsoos karta hai. bhaavpurn prastuti keliye Naresh ji ko badhai.
ReplyDeleteनरेश जी कविता अपनी सादग़ी की वजह से अलग हो जाती है....उनकी कविता में और उन में सादग़ी बची रहे........
ReplyDeletebhai naresh ji. aapki rachnao ne dil ko choo liya. yese hi rachna path karte rhe, yhi dua h.
ReplyDeletenaresh ji. aapki kavitai dil ko chhoo gai. yese yi kavitai likhte rhe. subhkamnai
ReplyDeleteनरेश मेहन की समस्त कविताएं न केवल साधारण भाषा में लिखी गई हैं बल्कि सामान्य जनजीवन से जुड़ी हुई है। इस लिये इन कविताओं को सभी वर्ग के लोग पढ और समझ सकते है।
ReplyDeleteनरेश जी कविता अपनी सादग़ी की वजह से अलग हो जाती है....उनकी कविता में और उन में सादग़ी बची रहे........
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteप्रकृति के मर्म को उकेरने वाले मासूम मगर सजग कवि नरेश मेहन की इन शानदार कविताओं की प्रस्तुति के लिए "आखर कलश" परिवार साधुवाद का पात्र है ! समस्त कविताएं अंतर्मन को छूती हैं ! इन कविताओं में अपने परिवेश एवम मिट्टी की खुश्बू आती है ! अच्छी कविताओं के लिए नरेश मेहन को हार्दिक बधाई ! जय हो !
भाई नरेश मेहन की कविताओं का सच हमारे बहुत पास का यथार्थ है जिसमें हमारे सामने हमारी परंपराएं, संस्कार और आस्थाओं के साथ बहुत कुछ बदलता जा रहा है। कवि मेहन की रचनाओं में इस बदलते समय के जो मर्मस्पर्शी सामाजिक चित्र वे रेखांकित किए जाने योग्य है, एक पुरानी सर्वविदित बात यहां लिख रहा हूं कि सर्वाधिक कला वहां होती है जहां वह दिखाई नहीं देती.. अस्तु इतनी सरल, सहज और आत्मिक रचनाओं के लिए कवि और संपादक दोनों को बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeletewww.drdaiya.blogspot.com