समीर लाल 'समीर' की लघुकथा- फादर्स डे

पितृ दिवस पर विशेष- फादर्स-डे


वो सुबह से ही परेशान था कि भारत में अकेले रह रहे अपने पिता को इस बार फादर्स-डे पर क्या गिफ्ट दे?
दोस्तों से बातचीत की और फिर पत्नी से गहन विमर्श किया.
यूरेका! ब्रिलियेन्ट गिफ्ट आईडिया! चेहरे पर मुस्कान फैल गई.
तुरंत ऑन लाईन सर्च किया और शहर के सबसे मंहगे एवं सर्वसुविधायुक्त ‘ओल्ड-एज-होम’ की ऑनलाइन बुकिंग करते हुए पिता जी को शिफ़्ट करा दिया.
‘ओल्ड-एज-होम’ के कमरे में ऑन लाईन आर्डर किया गया एक फूलों का गुलदस्ता एवं कार्ड पिता जी का पहले से इन्तजार कर रहे थे और कार्ड पर लिखा था-
’हैप्पी फादर्स डे"
बुढ़े बाप का वज़न

दिन-ब-दिन

जितना गिरता जाता है....

बेटे को

वो उतना भारी

बोझ नज़र आता है.


पेशे से चार्टर्ड अकाऊंटेंट और अप्रवासी भारतीय लेखक समीर लाल समीर जी हिंदी ब्लॉगिंग के बेहद लोकप्रिय ब्लॉगर होने के साथ ही शब्दों के एक कुशल चितेरे हैं । किसी भी बात को सहजता से अपनी एक विशिष्ट शैली में चुटीले शब्दों के सहारे वे एक ऐसा कथानक बुनते हैं कि पाठक उनके साथ साथ उनकी अंतिम पंक्ति तक बेरोकटोक और एक ही खटके में पहुंचना चाहता है । हाल ही में उनकी एक उपन्यासिका ” देख लूं तो चलूं ” शिवना प्रकाशन , सीहोर मध्यप्रदेश से प्रकाशित होकर आई है । आज पितृ दिवस पर उनकी एक समसामयिक एवम सारगर्भित एक लघुकथा आपके समक्ष प्रस्तुत है..


***
- समीर लाल ’समीर’

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38 Responses to समीर लाल 'समीर' की लघुकथा- फादर्स डे

  1. गहन चिंतन और निर्णय पर अच्छा व्यंग्य किया और दर्द को गहरा किया .... यही है पिता के लिए कामनाएं !

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  2. निश्चित तौर पर मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो रही है ....

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  3. यही समीर जी की खासियत है कम शब्दो मे गहरी बात कह जाते हैं।

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  4. अच्छा व्यंग्य है !

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  5. मैं अपने पूरे होशहवास में कह रही हूँ कि मैं अपने बेटे के इस गिफ्ट को खुले दिल से स्वीकार करूँगी..विदेश में रह कर भी उसे अपनों की याद आई....गिफ्ट का सोचा... और दिया वही जिसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी....तन्हाँ रहूँ इससे अच्छा है कि सुविधासम्पन्न ओल्ड होम में रहूँ ...

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  6. समीर जी आज की हकीकत है ..... एक भार महसूस होता है अब बेटो को .... लेकिन अहसान पैसो का [जैसे ऋण चुका कर रशीद मांग रहे हो]

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  7. समीर भाई, बहुत अच्छी बात पर मीनाक्षी जी की प्रतिक्रिया से संतोष भी मिला। हम सबको इसी तरह तैयार रहना चाहिए। बच्चे अच्छे हों तो िचंता क्यों करनी, बुरे हों तो भी चिंता क्यों करनी। समय से उन्हें संघर्ष करना है, पिताओं का युद्ध तो खत्म होने को है।

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  8. तथ्यात्मक !श्रेष्ठ और सत्य भी !

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  9. Aah! Bahut dard bharee,gahan baat hai!

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  10. बुढ़े बाप का वज़न दिन-ब-दिन जितना गिरता जाता है..बेटे को वो उतना भारी बोझ नज़र आता है.............. गहरी अभिव्यक्ति है मन की वेदना की. अब तो समय भी कम होने लगा है इतना भर सोचने को भी .....
    अभी इसी साल, मदर्स डे पर जब मेरे पापा ने फोन उठाया था और मेरे फोन करने का मूल कारण जाने, तो उन्होंने कहा था, हँसते हुए, कि "और फादर्स डे कब होता है." और मैंने कहा था कि उसी दिन बतायेगे.
    आज सुबह से फोन लगा रही हूँ यही बताने के लिए. मगर आज ही के दिन फोन नहीं लगना था. :-(
    वैसे साल में एक दिन को मदर्स या फादर्स डे कहना मुनासिब नहीं है. फिर भी साल में एक दिन ही सही, उनकी अहमियत अपने जीवन में जो है वो जताने में अच्छा तो लगता ही है.

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  11. sir sabse pahle kahe du to gaherai bhari baat kahe di bade hi sahjata se ...aur is shandar post ko sarthak karta ye chitr to lajawab hai

    jai ho gurudev

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  12. Bahut gahan sach hai ye aaj ke samaj ka...dardnaak par sach se otprot...

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  13. समीर जी की रचनाओं में गहन अभिव्यक्ति होती है...... सटीक पंक्तियाँ ....प्रासंगिक लघुकथा

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  14. pitr diwas ko fathers day kahey to behtar hogaa har shabd ko hindi me translate karna sahii nahin lagtaa

    aur har maata pita ko bachcho kaa saath chahiyae jaese bachpan me bachcho ko unka


    kehani achchi haen

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  15. गहरी सोच के साथ बहुत ही मार्मिक पोस्ट! सच्चाई को आपने बेहतरीन रूप से प्रस्तुत किया है! बड़ा ही दर्दभरा है!

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  16. आज का सच कम लफ़्ज़ों में बहुत गहरी और सच्ची बात लिख दी आपने

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  17. बहुत मार्मिक...मानवीय संवेदनाएं बिलकुल समाप्त हो चुकी हैं..

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  18. निःशब्द हूँ ... इतनी लघु है पर कितनी गहरी है ...

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  19. निस्संदेह मार्मिक ....पर मीनाक्षी से सहमत हूँ ...... बच्चे जब ,जैसे और जितना याद कर लें संतुष्ट हो जाऊंगी ,क्योंकि अगर उनसे कुछ गलत होता है तो ये संस्कार भी उनको हमसे ही मिला है .... आभार !

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  20. इतने कम अल्फ़ाज़ में आपने एक बड़ी हक़ीक़त बयान कर दी है।
    पाताल लोक में कैसे पहुंचेगी हिंदी ब्लॉगिंग ? - Dr. Anwer Jamal

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  21. दर्द को गहरा किया

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  22. bahut hi marmik kahani aur kavita uf lajavaba
    saader
    rachana

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  23. aadhunik yug ki reet yad gift de kar yad jatana....aur gift bhi kaisa.....bahut sateek katha.

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  24. हम जो अपने पिता से पाते हैं...वो अपने बच्चों को देते है...शायद पिता को देने की आदत हो जाती है...ओल्ड होम से भी उनकी दुआएं ही निकलती होंगी...बेटे को आगे बढ़ता देख...उनका सर फक्र से उठ जाता है...और गिरती सेहत के प्रति वो और बेपरवाह हो जाते हैं...इट इज समथिंग वी ओ टू देम एंड कैननॉट पे बैक...बट कैन गिव इट टू अवर किड्स...

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  25. अब क्या कहें दादा, यह दर्द तो अपना भी है.

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  26. आज का सच यही है.कहानी कहाँ ये तो सबके सच लिखे हैं.आज ओल्ड एज होम में उसके पेरेंट्स हैं .कल हम होंगे परसों 'वो' खुद.
    जॉब के लिए दूर जाना बच्चो की मजबूरी भी तो है न्? वो भी क्या करे?अकेले रहते रहते वे हमसे दूर हो जाते हैं कोई तीसरा उनकी दुनिया में आये ये वे बेटे,बहु और बच्चे खुद सहन नही कर पाते.ये समय का बदलाव है.इसे स्वीकार करना होगा.
    अकेले मरने से बेहतर है ओल्ड एज होम जा कर रहा जाए हा हा हा
    हमारे साथ हमारे अपने वे लोग हैं जो अकेले हो गए.जब तक जियेंगे एक दुसरे का ख्याल रखेंगे.मौत ही हमे एक दुसरे से अलग करेगी.

    'ओल्ड होम से भी उनकी दुआएं ही निकलती होंगी...बेटे को आगे बढ़ता देख...उनका सर फक्र से उठ जाता है...और गिरती सेहत के प्रति वो और बेपरवाह हो जाते हैं.' नही. बच्चो को आगे बढता देख माता पीटा खुश जरूर होते हैं किन्तु ओल्ड एज होम में जीते हुए सोचते होंगे 'किनके लिए पूरा जीवन होम कर दिया?इनके लिए????जो इस उम्र में छोड़ गए'
    दादा! कम शब्दों में सचमुच 'दिल को छू लेने' वाली बात कह गए आप.

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  27. मैं तो यही कहूंगा कि ऐसे साधन सम्‍पन्‍न बेटे हर बाप को मिलें। अकेले रहें तो कम से कम सब सुविधाएं तो मिलें। ये हर दम संतान से चिपके रहने की ही जिद क्‍यों।

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  28. यह लघु कथा हमारे समय के एक अहम् सवाल की असरदार अभिव्यक्ति है। बधाई !

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  29. समीर जी, जीवन का ये बहुत बड़ा सच है शायद, पिता हो या माँ दोनों को वृधाश्रम की सुविधा भी अगर पुत्र दे दे तो भी स्वीकार्य है, कमसे कम कोई एक छत जो पराया हीं सही मिलेगा तो. कुछ के हालात तो ऐसे भी होते जिनको न घर मिलता न कोई आसरा होता और न होता कोई अपना, पर जीवन है तो जीना हीं होता. बहुत मार्मिक रचना, बधाई स्वीकारें.

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  30. Pooja Goswami to me

    आपने तो रुला ही दिया... आज के समय में बूढ़े माँ बाप नयी पीढ़ी के लिए बोझ से कम नहीं....

    पता नहीं क्यों रिश्तो मे इतना परायापन बढ़ता ही जा रहा....

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  31. आप सबके स्नेह का बहुत आभार.

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