डॉ. वेद व्यथित की कुछ त्रिपदी रचनाएँ

अप्रैल १९५६ में जन्मे डॉ. वेद व्यथित ने हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर पूरा करने के बाद नागार्जुन के साहित्य में राजनीतिक चेतना पर अपना शोध किया| कविता, कहानी, उपन्यास और आलोचना के क्षेत्र में निरंतर सक्रियता| मधुरिमा [काव्य नाटक], आखिर वह क्या करे [उपन्यास], बीत गये वे पल [संस्मरण], आधुनिक हिंदी साहित्य में नागार्जुन [आलोचना], भारत में जातीय साम्प्रदायिकता [उपन्यास] और अंतर्मन [ काव्य - संकलन] कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं| वे सम्प्रति भारतीय साहित्यकार संघ के अध्यक्ष, सामाजिक न्याय मंच के संयोजक और अंतर्राष्ट्रीय पुनर्जन्म एवं मृत्यु उपरांत जीवन शोध परियोजना में शोध सहायक हैं| इसके अलावा केंद्र तथा हरियाणा राज्य के अनेक संगठनों में विभिन्न पदों पर विराजमान हैं| उनकी रचनाओं का जापानी तथा पंजाबी भाषाओँ में अनुवाद हो चुका है|
त्रिपदी हिंदी काव्य की नई विधा है. यह हाइकू नही है वरन तीन पंक्तियों की ऐसी रचना है जिसमे रिदम भी है जहां थोड़े से शब्दों में काव्य का चमत्कार व रस दोनों की अनुभूति होती है. ये प्रचलित क्षणिका नही हैं पर निश्चित ही क्षणिका से भी छोटी विधा है जो क्षणिका नही तो और क्या है.
वेद जी की ऐसी त्रिपदी देश-विदेश में प्रकाशित हो चुकी है, हो सकता है आप को भी पसंद आए.
आपके समक्ष प्रस्तुत है वेदजी की कुछ त्रिपदी रचनाएँ. आशा है आपको रुचेंगी.

दिल खोल के मत रखना
वो राज चुरा लेंगे
कुछ पास नही बचना
       **

जब हाथ ठिठुरते हैं
तब मन के अलावों में
दिल भी तो जलते हैं
       **

ये आग ही धीमी है
दिल और जलाओ तो
ये आग ही सीली है
       **

चूल्हे की सिकी रोटी
अब मिलती कहाँ है माँ
तेरे हाथों की रोटी
       **

सरसों अब फूली है
देखो तो जरा इस को
किन बाहों में झूली है
       **

रिश्ते न जम जाएँ
दिल को कुछ जनले दो
वे गर्माहट पायें
       **

नदियों के किनारे हैं
हम मिल तो नही सकते
पर साथी प्यारे हैं
       **

ये प्यार की क़ीमत है
सब कुछ सह कर के भी
मुंह बंद किये रहना
       **

फूलों ने बताया था
नाज़ुक हैं बहुत ही वे
कुछ झूठ बताया था
**

दो राहें जाती हैं
मैं किस पर पैर रखूं
वे दोनों बुलातीं हैं
       **

ज्वाला भड़काती है
आँखों की चिंगारी
दिल खूब जलाती है
       **

ये आग न खो जाये
दिल में ही इसे रखना
ये राख न हो जये
       **

यह आग है खेल नही
दिल इस से जलता है
इसे सहना खेल नही
      **

आँखों ही आँखों में
जो बात कही उन से
वो बात है चर्चों में
       **

एक दिया जलता है
सो जाते हैं सब पंछी
दिल उस का जलता है
       **

आँखों में समाई है
कोई और नही देखे
तस्वीर पराई है
       **

यादों का सहारा है
यह उम्र की नदिया का
एक अहं किनारा है
       **

यह धूप है जड़ों की
इसे ज्यादा नही रुकना
लाली है गालों की
       **

आँखों में समाई है
क्यों फिर भी नही आती
ये नींद पराई है
       **

एक सुंदर गहना है
इसे मौत कहा जाता
ये सब ने पहना है
       **

यह जन्म का नाता है
इसे मौत कहा जाता
यह लिख कर आता है
**
डॉ. वेद व्यथित

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4 Responses to डॉ. वेद व्यथित की कुछ त्रिपदी रचनाएँ

  1. डॉ. वेद व्यथित की त्रिपदी रचनाएँ बहुत पसंद आईं, आपका आभार.

    ReplyDelete
  2. सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर लगा!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है !

    ReplyDelete
  3. sunder tripadiyan
    aapko badhai
    saader
    rachana

    ReplyDelete

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