नाम : संजय पुरोहित
जन्म : २१.१२.६९
शिक्षा : एम. कॉम. (व्या.प्रशासन), एम. ए. (अंग्रेजी साहित्य), पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक
प्रकाशन : मधुमती, ’पंजाब केसरी’, ’दैनिक भास्कर’, ’दैनिक युगपक्ष’ ’अग्रदूत’, युग तेवर, समीचीन, आदि समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में लघु कथाएँ, कहानियाँ प्रकाशित होती रही है। आप हिंदी, राजस्थानी और अंग्रेजी में लगातार लिखते रहे हैं तथा आपकी हिंदी कहानियो की एक पुस्तक 'कथांजलि' नाम से प्रकाशित हुई है. आपकी दूसरी पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य है
विशेष : आकाशवाणी बीकानेर से कहानियों, वार्ताओं का प्रसारण, स्थानीय टीवी कार्यक्रमों एवं वृत्तचित्रों के लिए आलेख लेखन कार्य।
संप्रति : कनिष्ठ लिपिक, जिला कलक्टर कार्यालय, बीकानेर
सम्पर्क : sanjaypurohit4u@yahoo.com
“मैंने तो ब्रदर के साथ एडजस्टमेंट कर लिया है, छह महिने फादर मेरे पास रहते हैं और छह महिने ब्रदर के पास, डिस्प्यूट की कोई गुंजाईश ही नहीं’’ एक ने कहा।
’’देट्स गुड, वैसे तुम्हारे मदर नहीं है, इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं है, वैसे हम दोनों भाईयों ने तो डिसाईड किया कि जब चाहे फादर मेरे पास रहे, मदर उसके पास या मदर मेरे पास फादर उसके पास’’
दूसरे ने कहा ’’अरे तुम तो बोलो मिस्टर, बहुत बड़े आदमी बन गए हो, तुम्हारे मदर-फादर किसके पास रहते हैं ?’’ तीसरे के लिए प्रश्न आया।
“किसी के पास नहीं’’ तीसरे ने जवाब दिया।
“व्हॉट ? तो क्या वृद्धाश्रम में.........’’ उलझन में लिपटा प्रश्न उभरा।
“नहीं, नहीं, वो बात ऐसी है कि मेरे मदर-फादर किसी के पास नहीं रहते, बल्कि मैं अपने मदर-फादर के पास रहता हूँ।’’ फिर कोई प्रश्न नहीं आया।
“बधाई हो, अब आप हमारे समधी हुए, आपकी बिटिया अब हमारी बहुरानी हुई, बधाई हो’’
“जी ! जी,, जी।’’
“मैं शीघ्र ही पण्डित जी से कोई अच्छा सा मुहूर्त निकलवाता हूँ’’
“जी’’
“देखिए! हमें ना तो कार चाहिए, ना मोटर साईकिल, ना फ्रिज़, न टीवी और नाही ही वॉशिंग मशीन, भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास।’’
“जी ! जी।’’
“मैं तो चाहूंगा कि आप इन सब के बदले कैश ही दे दें तो अच्छा रहेगा’’
“जी.............!!’’
आदतन अपराधी और हिस्ट्रीशीटर के दुखियारे पिता चल बसे। घर मे बैठक लगी। पंडितजी प्रतिदिन संध्या के समय गरुड़-पुराण सुनाते। एक दिन पंडितजी ने नचिकेता द्वारा देखे गये नर्क के वृतान्त को सुनाना शुरू किया। “अधर्मी, पापी और दूसरों को हानि पहुंचाने वाले दुष्टों को नर्क मे नाना प्रकार से यातना दी जा रही थी। किसी को कोड़े मारे जा रहे थे तो किसी को खौलते तेल में तला जा रहा था..आदि आदि। गरुड़ पुराण सुनते-सुनते मृतक पिता के आदतन अपराधी बेटे ने मन ही मन एक संकल्प लिया।
अगले दिन से गरुड़ पुराण बन्द कर दिया।
सरल किंतु सटीक..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और बेहतरीन लाघुकथाएँ !
ReplyDeleteबहुत अच्छी लघु कथाएं
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन लाघुकथाएँ| धन्यवाद|
ReplyDeleteपहली लघुकथा , लघुकथा की सभी कसौटियों पर खरी उतरती है, प्रभावी है। फिर भी दो बातें हैं,पहली उसमें अंग्रेजी शब्दों का इतना अधिक प्रयोग खटकता है। वह लघुकथा के प्रवाह को रोकता है। दूसरी बात अंतिम पंक्ति की जरूरत नहीं है।
ReplyDeleteबाकी दो लघुकथाएं अधिक प्रभावित नहीं करतीं।
बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteक्षमा चाहूँगा राजेश उत्साही जी। आधुनिक युवाओं की बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाता, तो भाव सही तरीके से उभरकर सामने नहीं आ पाते। शायद इसीलिये अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया गया है। शेष आपसे सहमत..।
ReplyDeleteBahut acchhi laghukathayen...sachhayi ke karib aur dil ko chhoti huyi...sandesh ka prawah uttam.
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteप्रथम लघुकथा अच्छी लगी !
बधाई !
लिखते रहो !
पढते भी रहो !
बहुत ही उम्दा ... सीधा सच्चा बयां
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